- Back to Home »
- Knowledge / Science »
- गोल्डन पार कर .... डायमंड जुबली की तरफ बड़ता रेडियो ......
Posted by : achhiduniya
25 January 2015
रेडियो ने किए 87 साल पूरे ....
रेडियो के कुल 87 साल हो गए. हिन्दुस्तान में
अलग-अलग संदर्भों से इसका एक अपना और लगभग व्यवस्थित इतिहास है लेकिन कोई जाकर
सत्तर साल के उन दर्जियों से, इतनी ही उम्र के बढ़ई,
लुहारों,चटाई बुननेवाले कामगारों और साड़ी का
काम करनेवाले फनकारों से पूछे कि अगर ये रेडियो न होता तो आपके काम पर क्या असर
पड़ता ? दिलचस्प अनभव और स्टोरी निकलकर आएगी. आपने कभी गौर
किया है- उनकी सिलाई मशीन, हथौड़े, लकड़ी
छीलनेवाली मशीन के आगे रेडियो की आवाज दब जाती है, हमें और
आपको कुछ भी सुनाई नहीं देता लेकिन इसी शोर और रेडियो के बीच एक तीसरी धुन बनती है
जो काम कर रहे इन कारीगरों, फनकारों की बीच बिल्कुल सप्तक की
शक्ल में बजती रहती है. आप थोड़ी देर खड़े होकर महसूस कीजिएगा।
घर
की खिड़की पर रेडियो बजा कर अपनी प्रेमिका तक अपने दिल की बात को पहूंचाना। आपको
लगेगा कि इन सबके लिए ये ज्यादा मायने नहीं रखता कि रेडियो से आवाज आ रही है या
नहीं,
क्या प्रसारित हो रहा है..मायने बस ये रखता है कि उनकी तेज आती-जाती
सांसों के बीच एक तरंगधैर्य है। रोमांटिक मूड में कजरा
मोहब्बत बाला, अंखियों में ऐसा डाला , डमडम डिगा डिगा..... और फूल वैल्युम में मीना ओ मीना.. दे दे प्यार दे प्यार दे प्यार
दे रे जब बजता तो प्रियतम का गुस्सा
सातबें आसमान पर होता...गुस्से में होता या नाराज होता तो रेडियो प्रियतम तक मेरे
दिल की बात इस तरह पहूंचाता तेरी गलियों
में न रखेगें कदम आज के बाद.... या
फिर चांदी की दिवार न तोड़ी प्यार भरा दिल
तोड़ दिया।
निराश के उस क्षण में जब जीवन का होना न होने जैसा लगा तो रेडियो ने
आहिस्ते से मां की तरह लोरियां सुनाई....
तुमको चलना होगा, तुमको चलना होगा...,रूक जाना नहीं तुम कहीं हार के, ओ राही ओ राही तुमसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूँ मैं..... जिन्दगी के उस मोड़ पर जब प्रेम या कैरियर का चुनाव करना था तो रेडियो का
गीत दिल उसे दो जो जान दे दे.....
का अन्तरा.... जो सोंचते रहोगे तो काम न चलेगा, जो बढ़ते चलोगे तो
रास्ता मिलेगा । प्रियतम गुस्से में होती या नाराज होती तो रेडियो उसे मनाता तुम
रूठा न करो, मेरी जान, मेरी जान निकल
जाती है...। आज भले ही हाई टेक जमाना है
पर रेडियो को पिछड़ने के लिए छोड़ दिया गया है।
मोबाईल में आज भी रेडियो एफएम ही
बजती है पर वह भी सिर्फ महानगरों में, ग्रामीण ईलाकों में
रेडियो मोबाइल पर नहीं बज पाता। स्मार्ट मोबाइल के लिए भी कोई बढ़िया ऐप्स नहीं है।
और बाजार में बिकने वाला रेडियो भी ठीक से फ्रिक्येन्सी नहीं पकड़ता। जो एक-एक सांस
के साथ अपनी फ्रीक्वेंसी फिट कर रहा है.हम मीडिया की कक्षाओं में रेडियो की न जाने
कितनी विशेषताएं लिखाते-पढ़ाते हैं.
लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि आधे घंटे के लिए छात्र
को दर्जी, लुहार, बढ़ई या पान पर कत्था
लगाते पनबाड़ी के साथ कर दिया जाए तो फिर उन्हें अलग से कुछ भी बोलने-बताने की
जरूरत नहीं होगी. 87 साल के इस रेडियो को बहुत-बहुत मुबारकवाद. ये हमारे बीच इसी
तरह धड़कता रहे तमाम नए तामझाम के आने के बावजूद भी गोल्डन पार कर .... डायमंड
जुबली की तरफ बड़ता रेडियो ......हमेशा हमारे साथ
रहे ।