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- प्लास्टिक की बजाय स्टील के कंटेनर क्यू....? करे इस्तेमाल..
Posted by : achhiduniya
29 March 2015
एल्युमीनियम फॉइल से 2-6 मिलीग्राम तक एल्युमीनियम का
अंश खाने में पहुंच......
प्लास्टिक का चलन इतना बड़ता जा
रहा है,जहॉ लोग सब्जी या किराना सामान लाने के लिए मार्केट
जाने से पहले कपड़े की थैली लेकर चलते थे। वही शहर मे आज थैली न लेकर जाना एक प्रतिष्ठा
[स्टेट्स सिंबाल] माना जाता है अगर कोई लेकर चला भी जाए तो उसे गाँव खेड़े से आया व्यक्ति
समझा जाता है।
इसके चलते प्लास्टिक की कैरी बैग ,प्लास्टिक के
डब्बे इत्यादी का तेजी से निर्माण और बीक्री हो रही है जिसका भविष्य मे क्या....? नुकसान हो सकता है आइए उस पर एक नजर डालते है। खाने-पीने के सामान के डिब्बों, कंटेनर्स, सीडी, डीवीडी और बोतलों आदि के
निर्माण के लिए पॉलीकार्बोनिक प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। इसमें बाइफेनोल-ए
(बीपीए) कैमिकल होता है जो महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है।
शिकागो की
बायोसाइंटिस्ट डॉ. जॉडी फ्लॉज ने जब बीपीए के महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव को
लेकर अध्ययन शुरू किया तो पता चला कि इससे उनके अंडाशय पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
शोध के अनुसार खाना बनाने वाले प्लास्टिक के बर्तनों के इस्तेमाल से कई तरह की
बीमारियां हो सकती हैं। इन बर्तनों में खाना बनाने से गर्भवती महिलाओं और उनके भूर्ण
पर असर
पड़ता है।
बच्चे के थायरॉयड हॉर्मोन का स्तर गिरता है और उसके दिमाग का विकास भी
रूक सकता है। इसी तरह एल्युमीनियम फॉइल भी हमारे स्वास्थ्य को काफी नुकसान
पहुंचाते हैं। इस बात को प्रमाणित करने के लिए डॉ. फ्लॉज ने चुहिया को बीपीए
सोल्यूशन की खुराक दी और उन्होंने पाया कि अन्य चुहियाओं की तुलना में बीपीए खुराक
लेने वाली चुहिया का अंडाशय छोटा था। सामान्य प्रजननीय विकास के लिए जिम्मेदार
हार्मोन्स भी सामान्य से कम स्त्रावित हो रहे थे। एल्युमीनियम फॉइल ऑक्सीजन और
प्रकाश को पूरी तरह अवरूद्ध कर देता है, जिससे हमारे खाने में
बैक्टीरिया नहीं पनपता।
एल्युमीनियम फॉइल से 2-6 मिलीग्राम तक एल्युमीनियम का
अंश खाने में पहुंच जाता है। जिससे कैंसर, पाचन तंत्र की गड़बड़ी, याददाश्त कमजोर होना और बांझपन
जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए कभी भी गर्म-गर्म चपाती को
फॉइल में ना लपेटें रखना भी हो तो पहले टिश्यू पेपर और फिर फॉइल का प्रयोग करें
वर्ना कैमिकल कम्पाउंड पाचनतंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। चपाती को प्लास्टिक
की बजाय स्टील के कंटेनर में रखें। जहां तक हो सके ताजा बना खाना ही खाएं।
इनके
निर्माण में एक खास कैमिकल का प्रयोग होता है, जिसे पीएफओए कहते है। ऎसे बर्तनों के लगातार
इस्तेमाल से पैंक्रियाज, लिवर और
टेस्टिस (पौरूष ग्रंथि) संबंधी कैंसर, कोलाइटिस, प्रेग्नेंसी में हाइपरटेंशन
जैसी समस्याएं हो सकती हैं। नॉनस्टिक कुकवेयर की कोटिंग निकलने या उसमें कोई स्क्रेच
आने पर
जब इनमें खाना बनाया जाता है तो हीट से निकलने वाले विषैले पदार्थ खाने को दूषित
करते हैं। इसलिए किसी साधारण पैन में थोड़ा-सा नमक डालकर दो मिनट गर्म करें। अब यह
बर्तन भी नॉन स्टिक की तरह ही काम करेगा।