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- वित्तीय कंगाली की तरफ बढ़ता पाकिस्तान....
Posted by : achhiduniya
14 July 2018
स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान
ने छह महीने में तीन बार रुपए का मूल्याकन्न किया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। आयात में
कमी नहीं आई अलबत्ता निर्यात में मामूली वृद्धि हुई, जो ऊंट
के मुंह में जीरे जैसी साबित हुई। पाकिस्तान के वित्तीय
घाटे का हाल और भी खराब है। चालू आर्थिक वर्ष में देश का घाटा 14103 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। कच्चे तेल की कीमतों
में बढ़ोत्तरी होने के कारण साल समाप्त होने तक यह घाटा 16 अरब
डॉलर पहुंच जाने की आशंका है। पिछले साल भी यह घाटा 9135
अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के
जानकारों का कहना है कि शासन चलाने वाले उनकी नहीं सुनते। फौज की अपनी दिलचस्पियां
हैं और वो इतनी गहराई से संकट को समझना ही नहीं चाहती। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान से
जुड़े रहे अर्थशास्त्नी मुश्ताक खान तो साफ कहते हैं कि मुल्क के नीति निर्माता
घाटे में कमी का प्रयास नहीं कर रहे हैं। कर्ज लेकर घी पीने की आदत से पाकिस्तान
ने अपने को अलग नहीं किया तो देश में आर्थिक अराजकता का खतरा है। कर्ज हर समस्या
का समाधान नहीं है।
पाकिस्तान को एक सहारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी मिलता रहा है। तीस बरस में पाकिस्तान बारह बार इस संस्था के दरवाजे खटखटा चुका है। पांच साल पहले मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को 617 अरब डॉलर की मदद की थी। इस बार चुनाव के बाद जो भी नई सरकार आएगी, उसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जाना ही होगा। हो सकता है वर्तमान अंतरिम सरकार को ही चुनाव संपन्न कराने तक धन का बंदोबस्त करने के लिए इस संस्था के पास जाना पड़े। सिर्फ डेढ़ महीने में पाकिस्तान का खजाना पूरी तरह खाली हो जाएगा। इसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने वित्तीय कंगाली को चुनावी मुद्दा बना लिया है। इमरान खान अपनी सभाओं में साफ-साफ कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो पहला काम मुद्राकोष से मदद लाने का करेंगे, जिससे पाकिस्तान को अकाल आर्थिक मौत से बचाया जा सके।
पाकिस्तान को एक सहारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी मिलता रहा है। तीस बरस में पाकिस्तान बारह बार इस संस्था के दरवाजे खटखटा चुका है। पांच साल पहले मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को 617 अरब डॉलर की मदद की थी। इस बार चुनाव के बाद जो भी नई सरकार आएगी, उसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जाना ही होगा। हो सकता है वर्तमान अंतरिम सरकार को ही चुनाव संपन्न कराने तक धन का बंदोबस्त करने के लिए इस संस्था के पास जाना पड़े। सिर्फ डेढ़ महीने में पाकिस्तान का खजाना पूरी तरह खाली हो जाएगा। इसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने वित्तीय कंगाली को चुनावी मुद्दा बना लिया है। इमरान खान अपनी सभाओं में साफ-साफ कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो पहला काम मुद्राकोष से मदद लाने का करेंगे, जिससे पाकिस्तान को अकाल आर्थिक मौत से बचाया जा सके।