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- राफेल पर राहुल को दिया दसॉ एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक ट्रैपियर ने जवाब....
Posted by : achhiduniya
13 November 2018
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2 नवंबर को दसॉ सीईओ पर झूठ बोलने का आरोप लगाया था। कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि दसॉ ने अनिल अंबानी की कंपनी को 284 करोड़ रुपये दिए और अंबानी ने उसी पैसे से जमीन खरीदी। दसॉ के सीईओ पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए राहुल ने तंज कसा था कि दसॉ केवल मोदी को बचा रही है और जांच होगी, तो पीएम नहीं टिक पाएंगे। इस बीच राफेल डील को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच इस फाइटर जेट को बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक ट्रैपियर ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों को खारिज किया है।
ट्रैपियर ने एक इंटरव्यू में इस डील को लेकर राहुल के सभी
आरोपों को बेबुनियाद बताया। न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में ट्रैपियर ने कहा, मैं
झूठ नहीं बोलता। मैं पहले जो भी कहा और अब कह रहा हूं वह सच और सही है। उन्होंने
कहा कि दसॉ-रिलायंस जॉइंट वेंचर (जेवी) के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट को लेकर पूर्व
राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान सही नहीं था। ट्रैपियर से जब पूछा गया कि
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि दसॉ रिलायंस ग्रुप को ऑफसेट पार्टनर
चुनने को लेकर झूठ बोल रहा है तो उन्होंने कहा, मेरी छवि झूठ बोलने वाले व्यक्ति की नहीं है।
मेरी पॉजिशन पर आकर आप झूठ बोलने का रिस्क नहीं ले सकते।
अपने इंटरव्यू में
ट्रैपियर ने कहा उनका कांग्रेस पार्टी के साथ डील करने का पुराना अनुभव है।
कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा की गई इस टिप्पणी से वह दुखी हैं। ट्रैपियर ने कहा, हमारा
कांग्रेस पार्टी के साथ लंबा अनुभव है। हमारी 1953 में भारत के साथ हुई डील भारत के पहले पीएम
नेहरू के साथ थी। हम लंबे समय से भारत के साथ काम कर रहे हैं। हम किसी पार्टी के
लिए काम नहीं करते हैं। हम भारतीय वायु सेना और भारत सरकार को फाइटर जेट जैसे
रणनीतिक प्रॉडक्ट सप्लाई करते हैं। यह सबसे ज्यादा जरूरी है। जब उनसे रिलायंस को
ही ऑफसेट पार्टनर चुनने के पीछे के कारणों पर दबाव देकर पूछा गया, जबकि
रिलायंस के पास फाइटर जेट बनाने का कोई अनुभव नहीं है। ट्रैपियर ने साफ किया कि
इसमें निवेश किया गया पैसा सीधे तौर पर रिलायंस को नहीं जाएगा, बल्कि
यह एक जॉइंट वेंचर को जाएगा। दसॉ भी इसका हिस्सा है। उन्होंने कहा, हम
रिलायंस में पैसा नहीं लगा रहे हैं।
यह पैसा जॉइंट वेंचर में लगाया जाएगा। जहां तक
इस डील की बात है, मेरे
पास इंजिनियर्स और वर्कर्स हैं, जो इसे लेकर काफी आगे हैं। वहीं दूसरी तरफ, हमारे
पास रिलायंस जैसी भारतीय कंपनी है, जो इस जॉइंट वेंचर में पैसा लगा रही है और वह
ये अपने देश को विकसित करने के लिए कर रहे हैं। इसलिए कंपनी यह भी जान सकेगी कि
एयरक्राफ्ट कैसे बनाए जाते हैं। सरकार के बनाए गए नियमों के मुताबिक, इस
डील में रिलायंस 51
प्रतिशत पैसा लगाएगा और दसॉ को 49 प्रतिशत पैसा लगाना है। उन्होंने बताया, हमें
एक साथ 800
करोड़ रुपये 50:50 के
अनुपात में लगाने हैं। कुछ समय के लिए काम शुरू करने और कर्मचारियों को भुगतान
करने के लिए हमने पहले ही 40
करोड़ रुपये लगाए हैं, लेकिन
यह 800
करोड़ रुपये तक बढ़ेगा। इसका मतलब है कि दसॉ को आने वाले 5
सालों में 400
करोड़ रुपये लगाने हैं। ट्रैपियर ने कहा कि ऑफसेट के लिए दसॉ के पास 7
साल हैं। ट्रैपियर ने कहा,
पहले 3
साल के दौरान, हम
इस बात की जानकारी नहीं देंगे कि हम किसके साथ काम कर रहे हैं। हमनें पहले 30
कंपनियों के साथ अग्रीमेंट किया है, जो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक 40
प्रतिशत ऑफसेट हिस्सा है।
इसमें रिलायंस का हिस्सा 10 प्रतिशत है। बाकी का 30
प्रतिशत दसॉ और अन्य कंपनियों के बीच है। जब ट्रैपियर से एचएएल के साथ शुरुआती
अग्रीमेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यदि पूर्व की 126
एयरक्राफ्ट डील आगे बढ़ती तो वह एचएएल (हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड) और मुकेश
अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस के साथ काम करने में भी कोई परेशानी नहीं होती।
उन्होंने कहा, क्योंकि
126
एयरक्राफ्ट की डील सहजता से नहीं हुई और भारत सरकार को फ्रांस से तुरंत 36
एयरक्राफ्ट डील करनी पड़ी। इसके बाद मैंने रिलांयस के साथ काम जारी रखने का फैसला
किया। यहां तक कि एचएएल ने भी पिछले कुछ दिन पहले कहा था कि वे इस ऑफसेट का हिस्सा
होने में रूचि नहीं रखते हैं।