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- अदालत की अवहेलना या अवमानना कब और क्यू मानी जाती है....?
अक्सर यह बात सुनने में आती है की किसी व्यक्ति के द्वारा चाहे वह राजनीति या किसी भी सरकारी या गैर सरकारी प्रशासनिक पद पर रहते हुए अदालत की अवहेलना या अवमानना की गई। आपको जानना चाहिए कि जो शब्द या फ्रेज़ आप किताबों, फिल्मों और खबरों में अक्सर सुनते रहे हैं, वो वास्तव में है क्या...? क्या आपको कोर्ट की अवमानना का पूरा मतलब पता है? कब कोर्ट की अवमानना होती है और कब नहीं, क्या आपको ये मालूम है? जान बूझकर न्यायिक संस्थाओं पर हमलों से सुरक्षा, बेवजह की आलोचना से बचाव और न्याय प्रणाली की अथॉरिटी को कम आंकने वालों को सज़ा देने के लिए जो कानूनी कॉंसेप्ट है, उसे कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट या अदालत की अवहेलना या अवमानना के नाम से समझा जाता है। कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट का विचार सदियों पुराना है। इंग्लैंड में यह एक आम

कायदा था जो राजा की न्यायिक शक्ति को बचाता था और बाद में राजा के नाम पर न्याय करने वाले जजों के पैनल के फैसलों की सुरक्षा के काम आया। जजों के आदेशों का पालन न करना सीधे राजा का अपमान समझा गया। समय के साथ समझ ये बनी कि जजों के आदेश न मानना, जजों या अदालत के दिए आदेश में बाधा पैदा करना, उनके खिलाफ किसी ढंग से निरादर व्यक्त करना दंडनीय
अपराध है। कानून के मुताबिक कोर्ट की अवहेलना को दो भागों सिविल और क्रिमिनल में रखा गया है। सिविल मामले में सीधी बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था कोर्ट के निर्देश का पालन न करे या कोर्ट के किसी निर्देश का जान बूझकर उल्लंघन करे। क्रिमिनल कण्टेम्प्ट के मामले को समझना थोड़ा पेचीदा है। यह अस्ल में तीन तरह का हो सकता है:-1. किसी कोर्ट की अथॉरिटी को नीचा दिखाना या नीचा दिखाने की मंशा, अपमान करना या अपमान की मंशा शब्दों, संकेतों या एक्शनों से स्पष्ट हो। 2. किसी न्यायिक कार्यवाही में पूर्वाग्रह पैदा करना या हस्तक्षेप करना। 3. न्यायिक क्षेत्र में दखलंदाज़ी या रुकावट पैदा करना। कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट के मामले में सज़ा का प्रावधान भी सरल है यानी छह महीने तक की कैद या 2 हज़ार रुपये तक का जुर्माना। क्या नहीं होता कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट? न्यायिक कार्यवाहियों को लेकर सही और सटीक रिपोर्टिंग करना इस कानून के दायरे में नहीं आता यानी इसलिए किसी को इस कानून के तहत सज़ा नहीं दी जा सकती। किसी केस की सुनवाई हो जाने या उसे खारिज किए जाने के बाद किसी न्यायिक आदेश पर गुणवत्ता के आधार पर किया गया सटीक विश्लेषण भी कण्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में नहीं आता।