- Back to Home »
- Knowledge / Science »
- क्या उम्र बढ़ने के साथ याद्दाश्त कमजोर हो जाती है जाने असली वजह....?
Posted by : achhiduniya
31 October 2020
लोग खुद को उत्साहित और जोश में महसूस करने की स्थिति को मनोविज्ञान में सकारात्मक प्रभाव कहते हैं। शोधकर्ताओं ने सकारात्मक प्रभाव और याद्दाशत कमजोर होने,बढ़ती उम्र लिंग,शिक्षा,निराशा और नकारात्क प्रभाव के बीच के संबंध की पड़ताल की। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध कि वरिष्ठ लेखिका क्लॉडिया हासे ने बताया,हमारी पड़ताल से पता चला है
कि उम्र बढ़ने के साथ याद्दाश्त कमजोर हो जाती है। इंसान की याद्दाश्त प्रकृति की बहुत ही अनोखी देन है,लेकिन इसके साथ जुड़ी समस्याएं विज्ञान के लिए आज भी बहुत जटिल चुनौती हैं। इंसान अपनी सारी यादें उम्र भर सहेज कर नहीं रखा पाता। ओल्ड एज में इस याद्दाश्त को कायम नहीं रख पाना आम बात है। याद्दाश्त कायम कर पाने के लिए कई शोध हुए हैं। ताजा शोध के नतीजों में कहा गया है कि सकारात्मक नजरिया यादाश्त कायम रखने में मददगार साबित हो सकता है। पहले के अध्ययनों से पता चला है
कि बहुत से शारीरिक और भावनात्मक कारक जीवनभर तक हमारी याद्दाश्त को कायम रखने की क्षमता पर नकरात्मक प्रभाव डालते हैं। साइकोलॉजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित इस नए अध्ययन से पता चला है कि जो लोग खुद को उत्साहित और जोश में महसूस करते हैं उन लोगों को अधिक उम्र में याद्दाश्त कम होने का अनुभव होने की संभावना कम हो जाती है। ये नतीजों इन शोधों में से एक माना जा रहा है जो हेल्दी एजिंग पर सकारात्मक सोच के प्रभाव में की जा रही हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने 991 मध्य आयु और अधिक उम्र के अमेरिकी व्यस्कों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिन्होंने तीन समयावधियों के राष्ट्रीय अध्ययन में भाग लिया था। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्नातक और अध्ययन की प्रमुख लेखिका एमिली हिटनर ने बताया कि ऊंचे
स्तर के सकारात्मक प्रभाव वाले व्यक्तियों में एक दशक के समय में बहुत तेजी से याद्दाश्त कम नहीं हुई। उन्होंने पाया कि उन लोगों में याद्दाश्त तेजी से कम हुई जिनमें सकारात्मक प्रभाव का स्तर कम या नहीं था। भविष्य में होने वाले शोध सकारात्मक प्रभाव और याद्दाश्त में संबंध स्थापित करने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य और सामाजिक संबंध जैसे कारक शामिल कर सकते हैं। याद्दाश्त का संबंध आमतौर पर शारिरिक स्वास्थ्य से भी जोड़कर देखा जाता है। कहा भी जाता है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ दिमाग रह सकता है।