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- गाड़ी चलाते वक्त सो जाना या अचानक से नींद आना बड़ी बीमारी के लक्ष्ण....?
Posted by : achhiduniya
01 January 2022
जब कोई काम करते हुए आपका कोई दोस्त या परिवार का सदस्य अचानक
सो जाए। किसी से बातचीत के बीच एकाएक नींद आ जाए या सबसे मुश्किल बात कि कोई
ड्राइव करते हुए सो जाए। यह नींद की कमी, कमजोरी
या आलस नहीं है, बल्कि तंत्रिका संबंधी बीमारी नारकोलेप्सी है।
नारकोलेप्सी मरीज की दिनचर्या और जीवन पर भारी असर डाल सकती है। इसमें रैम यानी
रैपिड आई मूवमेंट वाली नींद ज्यादा होती है,जिसमें
सपने आते हैं,मस्तिष्क सक्रिय रहता है और मरीज को पूरी नींद के बाद भी नींद
की कमी महसूस होती है।
सामान्य अवस्था में रैम 20
प्रतिशत तक होता है, जबकि भारी नींद नॉन-रैम स्लीप
की श्रेणी में आती है, जिसमें मस्तिष्क को आराम मिलता
है। यह कई कारणों के मेल से होने वाला मर्ज है। अधिकतर मामले मस्तिष्क में एक
न्यूरोकेमिकल हाइपोक्रीटिन की कमी के कारण सामने आते हैं, जो कि नींद और जागृत अवस्था पर नियंत्रण करता है। कई ऐसे मामले
भी सामने आए हैं,जिनमें एच1एन1 विषाणु यानी स्वाइन फ्लू के विषाणुओं के संक्रमण के बाद मरीज
को नारकोलेप्सी की शिकायत हुई। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि स्वाइन फ्लू
के विषाणु सीधे इस बीमारी को बुलावा देते हैं या फिर
बीमारी के लिए उद्दीपक का काम
करते हैं। यह बीमारी आनुवंशिक भी होती है। कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता भी
नारकोलेप्सी के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती है, इसलिए कुपोषित किशोरों या युवाओं में इसकी आशंका अधिक है। इसके
लक्षणों की शुरुआत किशोरावस्था से लगभग 25 की
उम्र के बीच होती है और वक्त के साथ बीमारी बढ़ती जाती है। इसके कुछ लक्षणों में
शामिल हैं:- दिन के समय बार-बार नींद आना। नारकोलेप्सी के मरीज बिना संकेत, कभी भी,
कहीं भी सो जाते हैं। यह नींद
कुछ मिनटों से लेकर लगभग आधे घंटे की हो सकती है। उठने के थोड़ी देर बाद ही मरीज
को दोबारा नींद आ जाती है। मांसपेशियों से एकाएक नियंत्रण खोना:- यह स्थिति
कैटाप्लेक्सी कहलाती है, जिसमें शरीर की लगभग सारी
मांसपेशियां थोड़ी देर के लिए शिथिल हो जाती हैं। हकलाना, मरीज का एकाएक गिर जाना या सिर का लगातार हिलना जैसी बातें
दिखाई पड़ती हैं। आमतौर पर यह किसी तीव्र भावना जैसे हंसी, गुस्सा आदि के दौरान होता है। स्लीप पैरालिसिस:-
नींद के एपिसोड
से ठीक पहले कई बार मरीज चलने, बोलने या कुछ भी करने में
असमर्थ हो जाता है। यह अवस्था भी कुछ सेकंड्स से लेकर कुछ मिनटों तक चलती है। इन
लक्षणों के अलावा नारकोलेप्सी से प्रभावित व्यक्ति को मतिभ्रम, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया एवं रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जैसी
परेशानियां भी हो सकती हैं। कई बार काम करते हुए मरीज को नींद आ जाती है और नींद
में ही वह काम करने का अभिनय करने लगता है, जो कि
उसके लिए जानलेवा भी हो
सकता है। यह बीमारी न केवल मरीज की निजी और बाहरी जिंदगी
में अवरोध पैदा करती है, बल्कि लोग भी ऐसे व्यक्ति के
बारे में गलत धारणा बना लेते हैं। इसे बीमारी न समझकर आलस समझना मरीज का
आत्मविश्वास तोड़ देता है। स्कूली बच्चों की पढ़ाई व करियर इसके कारण काफी
प्रभावित होता है। भावनाओं के अतिरेक जैसे हंसी, गुस्सा, खुशी के दौरान मांसपेशियों से संतुलन खोने का डर मरीज को
धीरे-धीरे लोगों से काटता जाता है और वो भावनाओं के इजहार से डरने लगता है। खाना
बनाते हुए या गाड़ी चलाते हुए स्लीप अटैक आने से मरीज की जान पर बन
आती है। यह
बीमारी जेनेटिक होती है,लेकिन हर पीढ़ी में रोग की
तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है,जबकि किसी पीढ़ी में रोग नहीं
के बराबर भी हो सकता है। रोग की पहचान के तरीकों में ओवरनाइट स्लीप स्टडी और
कंप्लीट स्लीप स्टडी होती है ताकि बीमारी की गंभीरता का आकलन किया जा सके व देखा
जा सके कि मरीज को नारकोलेप्सी से जुड़ा हुआ कोई अन्य स्लीप डिसऑर्डर तो नहीं। इसी
आधार पर इलाज किया जाता है, जिसके तहत मरीज की नींद को
नियंत्रित करते हैं। कई बार कुछ स्टिमुलेटिंग एजेंट्स भी दिए जाते हैं ताकि मरीज
दिन के समय सक्रिय रह सके। इसके लिए स्लीप स्पेशलिस्ट से मिलना मदद कर सकता
है।