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- किसका होगा तीर-कमान कौन बनेगा शिवसेना का सिपहसालार..क्या कहता है चुनाव आयोग का नियम..?
Posted by : achhiduniya
26 June 2022
महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी पर {शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी} गठबंधन सरकार पर बगावत का ग्रहण लग गया है,जिसके चलते
शिवसेना के मामले में एकनाथ शिंदे की अगुआई वाला बागी गुट 41 विधायकों के समर्थन
का दावा कर रहा है। हो सकता है कि शिवसेना
के चुनाव चिह्न तीर-कमान को लेने के लिए वह चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाए अगर ऐसा
होता है तो चुनाव आयोग को पैरा 15 के तहत प्रक्रिया अपनाते हुए समर्थन की जांच
करके अपना फैसला देगा। एकनाथ शिंदे भले ही शिवसेना के ज्यादातर
विधायकों के अपने
पाले में होने का दावा कर रहे हों, लेकिन शिवसेना पर हक जमाने
और चुनाव चिह्न तीर-कमान को पाने की उनकी तथाकथित कोशिश की राह आसान रहने वाली नही।
इसकी वजह है,चुनाव आयोग के नियम और प्रक्रिया। किसी भी
पार्टी को मान्यता देने और उससे जुड़े चुनाव चिह्न को आवंटित करने का काम चुनाव
आयोग करता है। चुनाव आयोग किसी भी पार्टी को मान्यता देने और चुनाव चिह्न आवंटित
करने का काम 1968 के चुनाव चिन्ह
(आरक्षण और आवंटन) आदेश के तहत करता है। इंडियन
एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबि, जब भी किसी राजनीतिक दल में
विधायिका के बाहर विभाजन का मुद्दा उठता है तो 1968 के सिंबल ऑर्डर का पैरा 15
लागू होता है। इस पैरा में लिखा है कि जब आयोग संतुष्ट हो जाए कि किसी मान्यता
प्राप्त राजनीतिक दल में विरोधी गुट या समूह हैं,जिनमें से हरेक
दावा कर रहा हो कि वही पार्टी है, तब चुनाव आयोग मामले के
सभी उपलब्ध तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों
के
प्रतिनिधियों की सुनवाई करेगा अन्य इच्छुक व्यक्तियों की भी बात सुनेगा। उसके बाद
तय करेगा कि कौन सा प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। आयोग चाहे तो ऐसे किसी प्रतिद्वंद्वी गुट या
समूह में से किसी को भी ये अधिकार न दे। प्रेस खबर के मुताबिक, किसी पार्टी में विवाद होने पर चुनाव आयोग पहले ये देखता है कि किस गुट के
पास कितना समर्थन है। ये संगठन और विधायिका, दोनों के स्तर
पर देखा जाता है। आयोग उस दल की शीर्ष समितियों
और निर्णय लेने वाले निकायों की
पहचान करता है। फिर ये पता लगाता है कि उनके कितने सदस्य या पदाधिकारी किस गुट का
समर्थन करते हैं। आयोग इस दौरान हर खेमे को समर्थन देने वाले सांसदों और विधायकों
की गिनती भी करता है। उसके बाद अपना फैसला देता है। चुनाव आयोग का ये नियम मान्यता
प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के विवादों पर लागू होता है। पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों
में मतभेद के मामलों में चुनाव आयोग आमतौर पर प्रतिद्वंद्वी गुटों को सलाह देता है
कि वे अपने मतभेदों को अपने
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