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- इंग्लिश के बाद हिंग्लिश' होगी MBBS पढ़ाई का वैकल्पिक माध्यम...MP-सरकार का ऐलान
Posted by : achhiduniya
24 July 2022
मध्य प्रदेश चिकित्सा शिक्षा विभाग के
अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार एमबीबीएस प्रथम वर्ष के लिए अंग्रेजी के तीन
स्थापित लेखकों की पहले से चल रहीं किताबों को हिन्दी में ढालने का काम पूरा करने
की ओर बढ़ रही है और ये पुस्तकें नए सत्र में विद्यार्थियों के हाथों में पहुंचकर
चिकित्सा शिक्षा की सूरत बदल सकती हैं। बीते दिनो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 26 जनवरी को इंदौर में
गणतंत्र दिवस समारोह में घोषणा की थी कि राज्य में मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में भी
कराई जाएगी ताकि अंग्रेजी न जानने वाले
प्रतिभावान विद्यार्थी भी डॉक्टर बनकर जीवन
में आगे बढ़ सकें। इसके बाद राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग की
अध्यक्षता में आयोजित बैठक के फैसले के मुताबिक सात फरवरी को एक उच्चस्तरीय समिति
गठित की गई थी। अमृत महोत्सव यानी आजादी के 75 साल बाद मध्य प्रदेश में एमबीबीएस
पाठ्यक्रम की पढ़ाई का वैकल्पिक माध्यम बनने जा रही है। इस सिलसिले में लंबे समय से
चल रही महत्वाकांक्षी कवायद सितंबर के आखिर में शुरू होने वाले नए अकादमिक सत्र
में अपने मुकाम पर पहुंच सकती है। राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग के एक अधिकारी
ने बताया कि नए अकादमिक सत्र
में देश के प्रमुख हिन्दी भाषी प्रांत में निजी और
सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों के एमबीबीएस प्रथम वर्ष के कुल 4,000 विद्यार्थियों को अंग्रेजी के साथ ही हिन्दी की किताबों से
भी पढ़ाई का विकल्प मिल सकता है। वहीं एक संबंधित समिति के सदस्य और फिजियोलॉजी के
पूर्व सह प्राध्यापक डॉ. मनोहर भंडारी ने बताया कि राज्य के चिकित्सा
महाविद्यालयों के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले 60 से 70 प्रतिशत
विद्यार्थी हिन्दी माध्यम के होते हैं और अंग्रेजी की किताबों के
कारण उन्हें सबसे
ज्यादा समस्या प्रथम वर्ष में ही होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य में
मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में भी पहले की तरह जारी रहेगी, हालांकि शिक्षकों से अपील की गई है कि वे खासकर एमबीबीएस
पाठ्यक्रम की कक्षाओं में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा दें। अधिकारी ने बताया कि
मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय परीक्षार्थियों को 'हिंग्लिश' (हिन्दी और अंग्रेजी का
मिला-जुला स्वरूप) में लिखित परीक्षा, प्रायोगिक
परीक्षा और मौखिक परीक्षा (वाइवा) देने का विकल्प काफी पहले ही प्रदान कर चुका है
जिसके उत्साहजनक नतीजे प्राप्त हुए हैं। अधिकारी ने बताया कि निजी
प्रकाशकों की ये
किताबें शरीर रचना विज्ञान (एनाटॉमी), शरीर
क्रिया विज्ञान (फिजियोलॉजी) और जैव रसायन विज्ञान (बायोकेमिस्ट्री) विषयों से
संबंधित हैं,
जिन्हें बड़े पैमाने पर छापकर विद्यार्थियों तक
पहुंचाने से पहले 55 विशेषज्ञ शिक्षकों की मदद से अलग-अलग स्तरों पर जांचा जा रहा
है। समिति के सदस्य और फिजियोलॉजी के पूर्व सह प्राध्यापक भंडारी ने कहा कि राज्य
के चिकित्सा महाविद्यालयों के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले 60 से 70
प्रतिशत विद्यार्थी हिन्दी माध्यम के होते हैं और अंग्रेजी
की मोटी-मोटी किताबों के
कारण उन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत प्रथम वर्ष में ही होती है। चिकित्सा शिक्षा के
लिए हिन्दी पुस्तकें तैयार करने के सरकारी कार्यक्रम से जुड़े एक जानकार ने कहा,इन किताबों को अंग्रेजी से हिन्दी में ढालते वक्त हमने खास
ध्यान रखा है कि पढ़ाई-लिखाई और पेशेवर जगत में मूलतः अंग्रेजी में ही इस्तेमाल
होने वाली तकनीकी शब्दावली के बेवजह हिन्दी अनुवाद से बचा जाए ताकि विद्यार्थियों
को अहम शब्दों के बारे में कोई भ्रम न रहे। उन्होंने मिसाल के तौर पर बताया कि
हिन्दी माध्यम की किताबों में ओस्मोलेरिटी को परासारिता लिखने के बजाय ओस्मोलेरिटी ही लिखा गया है और इसी तरह ब्लड प्रेशर को रक्तचाप लिखने
के बजाय ब्लड प्रेशर ही रहने दिया गया है।
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