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घोर लापरवाही-जान से खिलवाड़,मरीज है प्राइवेट अस्पतालों के लिए ATM मशीन सिर्फ पैसा निकालने के लिए कर रहे इस्तेमाल ....हाईकोर्ट सख्त
Posted by : achhiduniya
26 July 2025
हाईकोर्ट ने निजी अस्पताल और नर्सिंग होम पर तीखी
टिप्पणी करते हुए
कोर्ट ने कहा कि निजी अस्पताल मरीजों को सिर्फ पैसा निकालने के लिए एटीएम की
तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इलाहाबाद कोर्ट ने 2008 के एक मामले में लापरवाही के आरोपी
एक डॉक्टर को राहत देने से इनकार कर दिया, जिसमें सर्जरी में कथित देरी के
कारण एक भ्रूण की मौत हो गई थी। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने डॉ.अशोक कुमार राय
की याचिका खारिज करते हुए कहा कि डॉक्टर सर्जरी के लिए सहमति लेने और ऑपरेशन करने
के बीच हुई 4-5 घंटे
की देरी को उचित नहीं ठहरा पाए, जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण की मौत हो गई। कोर्ट ने कहा कि ऐसे डॉक्टरों की
रक्षा की जानी चाहिए जो पूरी लगन और सावधानी से काम करते हैं, लेकिन
उन लोगों को सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए जिन्होंने उचित सुविधाओं, डॉक्टरों
और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम खोल रखे हैं और मरीजों से सिर्फ पैसे ऐंठ
रहे हैं। कोर्ट ने यह भी पाया कि एनेस्थेटिस्ट को लगभग साढ़े तीन बजे बुलाया गया
था, जिससे
संकेत मिलता है कि अस्पताल में तैयारी और सुविधाओं का अभाव था। इलाहाबाद कोर्ट ने
कहा कि यह पूरी तरह से दुर्घटना का मामला है, जहां डॉक्टर ने मरीज को भर्ती कर
लिया और मरीज के परिवार के सदस्यों से ऑपरेशन के लिए अनुमति लेने के बाद भी समय पर
ऑपरेशन नहीं किया, क्योंकि उनके पास सर्जरी करने के लिए अपेक्षित डॉक्टर (यानी एनेस्थेटिस्ट)
नहीं था।
कोर्ट ने इसे एक क्लासिक मामला बताया, जिसमें बिना किसी कारण के ऑपरेशन
में 4-5 घंटे
की देरी हुई और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भ्रूण की मृत्यु का कारण लंबे समय तक प्रसव
पीड़ा बताया गया। कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य स्पष्ट रूप से मरीज को धोखा देने की गलत
मंशा को दर्शाता है। इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को तुच्छ मुकदमों
से बचाया जाना चाहिए, लेकिन यह संरक्षण तभी लागू होगा जब चिकित्सा पेशेवर ने अपने कर्तव्य को कुशलता
से निभाया हो। इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि रोगी के भर्ती होने का समय, सर्जरी
का समय और रोगी के परिवार से सहमति लेने का समय इस मामले में तीन महत्वपूर्ण पहलू
हैं, जिन
पर साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद विचार किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि 29 जुलाई 2007 को
एक एफआईआर दर्ज कराई गई थी। आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता के छोटे भाई की गर्भवती
पत्नी को देवरिया में डॉ.अशोक कुमार राय के नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था।
परिवार ने सुबह 11 बजे सिजेरियन सर्जरी के लिए सहमति दी थी,लेकिन
सर्जरी शाम 5:30 बजे
की गई, तब
तक भ्रूण की मृत्यु हो चुकी थी। आरोप है कि परिवार द्वारा आपत्ति जताने पर नर्सिंग
होम के कर्मचारियों और सहयोगियों ने उनकी पिटाई भी की। एफआईआर में यह भी कहा गया
है कि डॉक्टर ने 8,700 रुपये लिए और 10,000 रुपये अतिरिक्त मांगे, साथ
ही डिस्चार्ज स्लिप भी जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत ने मेडिकल बोर्ड की
रिपोर्ट पर भरोसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि पाया गया कि महत्वपूर्ण
दस्तावेज जैसे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और दूसरे ऑपरेशन थिएटर नोट बोर्ड के सामने पेश
नहीं किए गए थे।