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- स्पर्म को नुकसान पहुंचाने वाले एक से ज्यादा रसायन......
Posted by : achhiduniya
26 February 2015
डिटर्जेंट, प्लास्टिक
और सन्सक्रीन को बनाने में ऐसे केमिकल पाए गए.....
सर के
बाल से लेकर पैर के नाखूनो तक सभी लोग आज कंपनी के उत्पादनों पर इस कदर निर्भर होते
जा रहे मानो इनके पहले जैसे जीवन मे लोग कभी जीए ही नही,लेकिन उसकी उत्पादन के गुणवनता की परख किए बिना ही विज्ञापनो की चकाचौंध मे
देखा-देखी मे पड़ कर अपने जीवन से खिवाड़ करते जा रहे है। सांसों में
सनसनाती ताजगी लाने वाला टूथपेस्ट आपकी मर्दानगी को निशाना बना सकता है। शोधकर्ताओं
का मानना है कि जलती-तपती धूप से बचाने वाला सन्स्क्रीन लोशन, रंग-बिरंगे साबुन
और प्लास्टिक के खिलौनों जैसे रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली चीजों से सीधा
संपर्क इंसानी स्पर्म की सेहत के लिए ठीक नहीं है।
शोधकर्ताओं ने इन्हीं
चीजों को पुरुषों में बढ़ती नपुंसकता का जिम्मेदार ठहराया है। शोध बताता है कि रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों
को बनाने में आमतौर पर तीन में से एक ऐसा नॉन-टॉक्सिक केमिकल जरूर पाया जाता है, जो पुरुषों की
स्पर्म कोशिकाओं को बुरी तरह प्रभावित करता है। पुरुषों में बढ़ती नपुंसकता की यही
वजह है।डेनमार्क
के कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ने इस शोध को किया है। इसके मुताबिक, आमतौर पर इस्तेमाल
होने वाली चीजों में 96 तरह के रसायन इस्तेमाल होते हैं, जिनमें से 30 कैट्सपर नाम के
प्रोटीन पर बुरा असर डालते हैं, जो स्पर्म की गतिविधियों में सहायक होता है।
हॉस्पिटल
के प्रोफेसर स्काबेक ने 1991 में पहला सबूत खोजा था, जिसने साबित किया
कि 50 से भी कम वर्षों में स्पर्म की तादाद घटकर आधे के करीब रह गई
है। हालिया रिसर्च को ईएमबीओ जर्नल में जगह दी गई है। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी
हॉस्पिटल की प्रोफेसर नील्स स्काबेक के मुताबिक, परेशानी की बात यह
है कि अगर स्पर्म को नुकसान पहुंचाने वाले एक से ज्यादा रसायन हों, तो दुष्परिणाम
किसी कॉकटेल इफेक्ट की तरह तेजी से होते हैं। जैसा पहले माना जाता रहा है, उससे कहीं खतरनाक
ढंग से ये रसायन अंत:स्रावी ग्रंथियों को नुकसान पहुंचाते हैं। पहली बार है जब
किसी स्टडी ने शुक्राणु को प्रभावित करने वाले मानव-निर्मित कारकों को ढूंढ निकाला
है। इन नतीजों से उन चीजों को लेकर और चिंता जगी है, जिन्हें अभी तक सुरक्षित माना जा रहा था।
इससे नियामक संस्थाओं को अपने सुरक्षित मानकों के निर्धारण के बारे में फिर से
सोचना होगा। हो सकता है कि आगे चलकर रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले कुछ
प्रॉडक्ट्स प्रतिबंधित हो जाएं। यह स्टडी दरअसल स्पर्म की गिरती तादाद और तेजी से
फैलती पुरुष नपुंसकता पर हो रहे बड़े रिसर्च का एक हिस्सा है। कुछ
मामलों में देखा गया कि ये रसायन फीमेल सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन की प्रवृत्ति को
ऐंटि एंड्रोजन यानी काफी कुछ मेल सेक्स हार्मोन के तौर पर बदलते देखे गए।
यह
पुरुषवादी जनजतंत्र में एक तरह से हस्तक्षेप भी है।वैज्ञानिकों
ने पाया कि रोजाना काम आने वाली चीजों जैसे डिटर्जेंट, प्लास्टिक और सन्सक्रीन
को बनाने में ऐसे केमिकल पाए गए, जो स्पर्म के प्रवाह में बाधा डालते हैं, जो उत्साह के जल्द
खत्म होने और समय से पहले स्खलन की बड़ी वजह बनते हैं।
हैरानी की बात यह कि इन
समस्याओं को पैदा करने के लिए जितनी मात्रा में केमिकल की मौजूदगी की जरूरत होती
है, उससे कहीं ज्यादा केमिकल रोजमर्रा की चीजों के जरिए शरीर में
प्रवेश कर जाता है।