- Back to Home »
- Knowledge / Science »
- चमकीले ताज की काली सच्चाई..........?
Posted by : achhiduniya
08 March 2015
“ताज महल” या “ममी महल”……..?
ताज की सुंदरता से कौन वाकिफ नही इसके[ताज
महल] भारत देश ही नही विदेश मे भी मुरीदों की कोई कमी नही लेकिन कुछ बाते जिससे लोग
अनजान है। मुगल इतिहास का एक टुकड़ा ऐसा भी है जो बताता है कि एक बेटे ने जीते जी
ही नहीं मरने के बाद भी बाप की आखिरी ख्वाहिश नहीं मानी। जी हां, वह अभागा बाप शाहजहां था और वो जिद्दी बेटा
औरंगजेब था। औरंगजेब अगर बाप की दिली इच्छा पूरी करता तो ताज में अकेली मुमताज की
ही कब्र होती और पीछे काला ताज महल भी होता।
लेखक व पत्रकार अफसर अहमद की किताब “ताज महल या ममी महल”….? में शाहजहां के इंतकाल के
वक्त हुईं सारी गतिविधियों से पर्दा उठाया गया है।दरअसल, आगरा
किले में कैद शाहजहां का जब 22 जनवरी 1666 के दिन इंतकाल हुआ तो उसके कफन दफन की तैयारी आनन फानन में शुरू गई।
शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम के आदेश के बाद दो शख्स खान कलादार और ख्वाजा पूल
गुसलखाना (बाथरूम) में बुलवाए गए। जहां आरा बेगम की इच्छा के मुताबिक यह दोनों
बुजुर्ग मुशमम्म बुर्ज से जहां बादशाह का इंतकाल हुआ था लाश को करीब के कमरे में
ले गए और उन्हें नहलाया और कफन लपेटने के बाद संदल (चंदन) के संदूक में शव को बंद
किया।
इस दौरान किले के दरवाजों की खिड़कियां खोल दी गईं और सय्यद मोहम्मद कनूजी और
काजी कुरबान (काजीउल कजात) अकबराबाद को आखिरी रस्म लिए बुलाया गया। और बुर्ज का
नसीब दरवाजा जो बंद था खोलकर लाश को बाहर निकाला। इसी बीच औरंगजेब को आनन-फानन में
ये फैसला करना पड़ा की उसके पिता यानी शाहजहां की लाश आखिर कहां दफनाई जाए। वैसे
भी बाप-बेटों के रिश्तों का अंदाजा सभी को था इसलिए शाहजहां के शव को दफनाने के
लिए तेजी से काम शुरू हो गया।
लेकिन मामला उसे कहां दफन किया जाए, इसे लेकर उलझ गया। किताब 'ताज महल या ममी महल?’
में इतिहास के इस मोड़ पर भी विस्तार से रोशनी डाली गई है। किताब के
अनुसार शाहजहां ने वसीयत की थी कि उसे ताज के ठीक पीछे मेहताब बाग में दफन किया
जाए। लेकिन औरंगजेब को जब बाप की इस वसीयत के बारे में मालूम पड़ा तो वह मुश्किल मे
पड़ गया। अगर वह ऐसा करता तो उसे ताज के पीछे एक और बड़ी इमारत बनानी पड़ती और ये
कोशिश भी करनी पड़ती की उसके वालिद का मकबरा उसकी मां से किसी तरह कमतर न रहे,
शाही रिवाज के मुताबिक।
औरंगजेब के लिए यह एक मुश्किल घड़ी थी। वो
दरअसल ऐसा नहीं करना चाहता था। दो वजहों से, एक लगातार लड़ाई
से शाही खजाना खाली हो गया था, दूसरा मकबरे बनाने को वह
फिजूल खर्ची मानता था। वह धर्म संकट में था, अगर बाप की बात
नहीं मानता तो ये कहा जाता कि उसने बाप की आखिरी इच्छा तक पूरी नहीं की। औरंगजेब
ने तब एक तरकीब का इस्तेमाल किया। इससे बचने के लिए उसने इस्लामिक कायदों का हवाला
देते हुए शाही उलेमाओं से राय ली कि क्या.....? अगर बाप ऐसी
कोई वसीयत करे जो इस्लाम की रोशनी में सही न हो तो क्या....?
उसे मानना चाहिए। उलेमाओं ने कहा कि अगर ऐसा है तो उसे माना जाना सही नहीं है।
बस
यहीं से औरंगजेब को अपने बचाव का रास्ता मिल गया। औरंगजेब ने तब तर्क दिया था कि
उसके बाप को उसकी मां यानी मुमताज महल से कमाल दर्जे की मुहब्बत थी।
इसलिए उन्हें
मां के बराबर ही ताज में दफन किया जाए।इस तरह वो धर्मसंकट से बच गया। बाद में आगरा
का सूबेदार होशदार खान सल्तनत के अन्य प्रमुख लोगों के साथ जल्दी सुबह के वक्त
जनाजे को नदी के किनारे लाया और वहां से ताज महल के अंदर मुमताज की मजार के करीब
रखा। सय्यद मोहम्मद व काजी कुरबान और अन्य साथ आए हुए लोगों ने नमाज-ए-जनाजा पढ़ा
और लाश को गुंबद के अंदर दफन किया।
औरंगजेब ऐसा न करता तो शायद जो काले ताज सरीखे
मकबरे की बात इतिहास में लंबे समय चलती रही है वो शायद औरंगजेब ने बनवाया होता वो भी
भारी मजबूरी में। ऐसे और भी कई चौंकाने वाले खुलासे करने वाली इस किताब का ई वर्जन
हाल में एमेजन वेबसाइट पर लॉन्च हुआ है। इसका ई वर्जन किंडल फोर्म में मौजूद है।
किताब अंग्रेजी भाषा में ई संस्करण लॉन्च हुई है। इसे इस लिंक पर क्लिक करके देखा जा सकता है।[साभार]