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- भूलो सभी को माँ - बाप को भूलो नही .......
Posted by : achhiduniya
19 March 2015
'इंसान' एक दुकान है, और 'जुबान' उसका
ताला........
माँ –बाप के चरणों मे स्वर्ग होता है ऐसा शास्त्रो मे अनेकों प्रकार के उदाहरण सुनने और पड़ने को मिलते है। अपने भाग्य को सवारने और जीवन मे तकलीफ़ों से छुटकारा पाने के लिए इंसान हर यत्न करता है जिससे उसे शांती,सुख ,समर्धी,खुशहाली प्राप्त हो। हर इंसान चाहता है कि जब वह आंखें खोले, एक नए दिन की शुरुआत करे, तो उसके मन में आशा और उत्साह का संचार हो।
इंसान' एक दुकान है, और 'जुबान' उसका ताला जब ताला खुलता है, तभी मालुम पड़ता है,कि दूकान 'सोने' कि है, या 'कोयले की। एक दिन
तरुण कॉलेज से घर आने के लिये निकला आसमान में बादल
थे...लग रहा था कि बारिश होने वाली थी। इसलिए सोचा कि घर जल्दी पहुँच जाऊँ पर
रास्ते में ही बारिश शुरू हो गई और मैं भीग गया...!!! घर जाते ही बड़ी बहन ने कहा
-:थोड़ी देर रुक नही सकते थे...? बड़े
भाई ने कहा कहीं साइड में खड़े हो जाते ...?
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पापा ने कहा -:खड़े कैसे हो जाते..!! जनाब को बारिश
में भीगने का शौक जो है..? इतने
में मम्मी आई और सिर पर टॉवेल रखते हुऐ बोली -: ये बारिश भी ना...थोड़ी देर रुक जाती
तो मेरा बेटा घर आ जाता...!!!'माँ' तो 'माँ' होती है.. शास्त्रों
में ऐसा कहा गया है कि हाथों में ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती, तीनों का वास होता है. 'आचारप्रदीप' के एक श्लोक में कहा गया है:कराग्रे वसते लक्ष्मी:
करमध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।। (गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित ‘नित्यकर्म पूजाप्रकाश’ के अनुसार) इस श्लोक का एक अन्य पाठ भी प्रचलित है, जो इस तरह है: ऊं कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये
सरस्वती।
करमूले च गोविंद: प्रभाते कुरुदर्शनम्।। इसका मतलब है, हथेली के सबसे आगे के भाग में लक्ष्मीजी, बीच के भाग में सरस्वतीजी और मूल भाग में ब्रह्माजी
निवास करते हैं। इसलिए सुबह दोनों हथेलियों के दर्शन करना करना चाहिए। शास्त्रों
में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ 'तीर्थ' भी होते हैं। चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में 'देवतीर्थ', तर्जनी के मूल भाग में 'पितृतीर्थ', कनिष्ठा के मूल भाग में 'प्रजापतितीर्थ' और अंगूठे के मूल भाग में 'ब्रह्मतीर्थ' माना जाता है।
इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में 'अग्नितीर्थ' और बाएं हाथ के बीच में 'सोमतीर्थ' और उंगलियों के सभी पोरों और संधियों में 'ऋषितीर्थ' है. इनका दर्शन भी कल्याणकारी माना गया है। सुबह किसी
भी काम की शुरुवात से पहले या कही बाहर जाते समय माँ –बाप के चरण स्पर्श जरूर करने
चाहिए इससे सौभाग्य मे व्रधी होती है। बड़ो के आशीर्वाद से आने वाले संकटों से
रक्षा होती है।
जब व्यक्ति पूरे विश्वास के साथ अपने हाथों को देखता है, तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसके शुभ कर्मों में
देवता भी सहायक होंगे। जब वह अपने हाथों पर भरोसा करके सकारात्मक कदम उठाएगा, तो भाग्य भी उसका साथ देगा।
इससे दशा सुधरती है और
सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सुबह हाथों के दर्शन के पीछे यही मान्यता काम करती
है।