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- सेक्स यानी पुरुष-स्त्री लिंगभेद…….विषय पर इतना संकोच क्यो.......?
Posted by : achhiduniya
24 April 2015
आने वाली पीड़ी को पथ भ्रष्ट होने से बचाया........
आज के वैज्ञानिक और तकनीकी के युग मे सेक्स के विषय मे बात करने को एक
कुंठित मानसिकता के साथ जोड़ कर देखा जाता है जो ठीक नही है। जबकी पुरातन युग मे भी
इस पर कई प्रकार के शोध हो चुके है।
जैसा कि आपने सुना होगा वात्सल्य के 64 आसन,राजा महाराजाओ की एक नही तीन या पाँच रानीयों का होना। उनके
दरबार मे नर्तकियों का होना कही न कही सेक्स से संबधित है,पूजा,इबादत,प्रेयर- प्रार्थना,अरदास से तो नही हो सकता। फिर आज के भौतिक युग मे इस विषय को इतना छुपाया
या इसपर बात करने से इतना डरा क्यू...?जाता है।
आपका जन्म भी कामुकता
की वजह से ही हुआ है। आप इस दुनिया में इसी तरह से आए हैं। जो लोग जीवन के साथ लय
में नहीं हैं, वे
लोग इस तरह की बातें करते हैं कि किसी पवित्र इंसान का जन्म कामुकता की वजह से
नहीं होता, क्योंकि
उनका मानना है कि कामुकता गंदी चीज है। अब अगर किसी को पवित्र बनना है, तो फिर उसे तो निश्चित
रूप से कामुकता से पैदा नहीं होना चाहिए।
लोग जीवन के सामान्य से जीवविज्ञान को जब
स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो, आध्यात्मिकता की बात तो भूल ही
जाइए। जब आप जीवविज्ञान को ही नहीं मान रहे हैं, तो जीवन के उच्चतर
पहलुओं को मानने और करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आप मंदिर के भीतर भी जाते हैं, तो वहां भी एक लिंग है, जो कि कामुकता का ही एक
प्रतीक है, लेकिन
यहां इसे आप पूरी तरह से एक अलग ही नजरिये से देख रहे हैं।
धर्म के नाम पर एक तरह
की दिखावटी लज्जा दुनिया भर में फैल चुकी है। जो लोग इसे पाप कहते है, वही लोग इस धरती के
सबसे असंयमी और कामुक इंसान बन गए है। जिसका
परिणाम हम और आप आए दिन समाचार माध्यमों से देख और सुन रहे है....फला...फला.....संत,मौलवी,पादरी,फादर ने......मासूम
बच्ची के साथ.......... इसे मानिए या मत मानिए, लेकिन सच यही है कि इसी
वजह से इन जैसी
बातें निकल कर आती हैं।
खजुराहो की ही नहीं, हर मंदिर की बाहरी तरफ
इस तरह की कम से कम एक कामोत्तेजक तस्वीर होती है। मंदिर की दीवारों पर मैथुन
मुद्राओं को दर्शाती हुई तस्वीरें हैं। लेकिन इस संस्कृति ने लज्जा का दिखावा करना
कभी नहीं जाना। खासतौर पर चंद्रवंशियों ने अपने जीवन के बारे में कुछ भी नहीं
छिपाया। उन्हें लगता था कि इंसानी शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं है जो छिपाने लायक हो
या जिस पर इंसान को शर्म आनी चाहिए। हां, इतना अवश्य था कि उनका
धर्म उन्हें नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देता था। लेकिन कहीं भी मंदिर के भीतर इस
तरह की कामोत्तेजक सामग्री नहीं पाई जाती।
ठंडे पानी से स्नान करने के बाद आपकी
भौतिकता कम हो जाती है, इसीलिए
हर मंदिर में ठंडे पानी का एक सरोवर होता है जिससे कि आप उसमें डुबकी लगा सकें और
मंदिर में जाने से पहले आपके भीतर की भौतिकता हल्की हो जाए और वहां आप कुछ खास तरह
के अनुभव कर सकें।
लेकिन यह सब चारदीवारों के भीतर किया जाना चाहिए। इसे इतना
सार्वजनिक करने की क्या जरूरत है? आपसे कोई नहीं कह रहा है कि यह सब
आप सड़कों पर करें। क्योकि सेक्स उस ज्वाला मुखी की तरह होता है जिसे
जितना दबाया जाता है उतने ही वेग से बड़ता है।
लेकिन इस विषय को आज कि बदलती जीवन
शैली के साथ चलते हुए,चर्चा के दवारा जागरूक रहने और जागरूक करने कि जरूरत
है,जिससे आने वाली पीड़ी को पथ भ्रष्ट होने से बचाया जा सके।