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- कल की चिंता आज क्यों......?
Posted by : achhiduniya
17 September 2015
कई बार ऐसा होता है की हम वर्तमान को छोड़ कर भविष्य की चिंता मे अपना समय अधिक जाया करते है,जिससे हमारा वर्तमान यानी आज पूरी तरह खराब होने लगता है। इसका केवल मन पर ही नही शरीर पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ने लगता है,जिससे हम बीमार होने लगते है। जीवन मे हमेशा आगे बड़ने के बारे मे सोचना चाहिए लेकिन चिंता नही करनी चाहिए उसके लिए समझदारी से कदम उठाने चाहिए। आज जो हमारे पास है उसी मे संतोष से गुजारा करने का प्रयास करना चाहिए। आज एक कहानी के माध्यम से आपको समझाने का प्रयास करते है। एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था। एक दिन उसे अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। उसने तत्काल अपने लेखा अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति,जमीन जायदाद का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए पता तो चले मेरे पास कुल कितनी सम्पदा,जमीन जयदाद है। सप्ताह भर बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ की सेवा में उपस्थित हुआ। सेठ ने पूछा- कुल कितनी सम्पदा,जमीन जायदाद है। लेखाधिकारी नें कहा सेठ जी मोटे तौर पर कहा जाए
तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ
कामधंधा किए आनन्द से सुख
भोग सके इतनी सम्पदा,जमीन जायदाद है। लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ चिंता में डूब गए,तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?वे रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, उनका मन स्थिरता व शान्त्ति के किए साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित किया
गया।
सेठ को भी यह विचार पसंद आया। चलो अच्छा है, संत अवश्य कोई विद्या जानते होंगे जिससे मेरे दुख दूर हो जाए।सेठ सीधा संत समागम में पहूँचा और एकांत में पहुचे हुए संत से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा। सेठ नें कहा महाराज मेरे दुख का तो पार नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान,यज्ञ,विधी आदि करने को तैयार हूँ। संत ने समस्या समझी और बोले इसका तो हल बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो सेठ बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है वह एक दम गरीब और अकेली रहती है उसका न कोई कमानेवाला है और न वह खुद कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। अगर वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा और तुम्हारी समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। सेठ को बड़ा आसान उपाय मिल गया अब उससे सब्र नही हो रहा था। घर पहुंच कर सेवक के साथ एक किलो भर आटा लेकर पहुँच गया।बुढिया के झोपडे के पास जाकर सेठ नें कहा माताजी मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए। सेठ ने कहा फिर भी रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा क्या करूंगी रख के मुझे आवश्यकता नहीं है। सेठ ने कहा अच्छा कोई बात नहीं एक किलो नहीं तो यह आधा किलो तो रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा आज खाने के लिए जरूरी आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त आटे की जरूरत नहीं है। सेठ ने कहा तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा,कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता है कल के लिए कल प्रबंध हो जाएगा। बूढ़ी मां ने आटा लेने से साफ इन्कार कर दिया। सेठ की आँख खुल गई। जब एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। चिंता उस हवन कुंड के समान है जो आग बुझने के बाद भी धुआँ छोड़ती है।इसलिए कहते है संतोषी सदा सुखी.....मित्र Dalbeer singh के द्वारा प्राप्त कहानी जिसे संशोधन कर आपसे सांझा की गई।
सेठ को भी यह विचार पसंद आया। चलो अच्छा है, संत अवश्य कोई विद्या जानते होंगे जिससे मेरे दुख दूर हो जाए।सेठ सीधा संत समागम में पहूँचा और एकांत में पहुचे हुए संत से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा। सेठ नें कहा महाराज मेरे दुख का तो पार नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान,यज्ञ,विधी आदि करने को तैयार हूँ। संत ने समस्या समझी और बोले इसका तो हल बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो सेठ बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है वह एक दम गरीब और अकेली रहती है उसका न कोई कमानेवाला है और न वह खुद कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। अगर वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा और तुम्हारी समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। सेठ को बड़ा आसान उपाय मिल गया अब उससे सब्र नही हो रहा था। घर पहुंच कर सेवक के साथ एक किलो भर आटा लेकर पहुँच गया।बुढिया के झोपडे के पास जाकर सेठ नें कहा माताजी मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए। सेठ ने कहा फिर भी रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा क्या करूंगी रख के मुझे आवश्यकता नहीं है। सेठ ने कहा अच्छा कोई बात नहीं एक किलो नहीं तो यह आधा किलो तो रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा आज खाने के लिए जरूरी आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त आटे की जरूरत नहीं है। सेठ ने कहा तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए। बूढ़ी मां ने कहा बेटा,कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता है कल के लिए कल प्रबंध हो जाएगा। बूढ़ी मां ने आटा लेने से साफ इन्कार कर दिया। सेठ की आँख खुल गई। जब एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। चिंता उस हवन कुंड के समान है जो आग बुझने के बाद भी धुआँ छोड़ती है।इसलिए कहते है संतोषी सदा सुखी.....मित्र Dalbeer singh के द्वारा प्राप्त कहानी जिसे संशोधन कर आपसे सांझा की गई।