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- क्या है पिंड दान और क्यो जरूरी.....?
Posted by : achhiduniya
02 October 2015
आज की
जीवन शैली
मे युवावर्ग
यह भूलता
जा रहा
है कि
अपने पूर्वजो
यानी जो
अब इस
दुनिया
मे नही
रहे उनके
मोक्ष
के लिए
उनके निमित
कराई जाने वाली
पूजा को
पिंडदान
कहते है। इस शरीर को भी पिण्ड कहते हैँ। इसे परमात्मा को अर्पण करना भी एक प्रकार का पिण्डदान है।यही निश्चय करना है कि मुझे अपना जीवन ईश्वर को अर्पित करना है।जो अपना जीवन ईश्वर को समर्पित करता है उसी का जीवन सार्थक है और उसी का पिण्डदान सच्चा है।
जीवन
मृत्यु के त्रास से छुड़ाने वाला केवल सत्कर्म ही है और वह सत्कर्म भी अपना ही किया हुआ स्वयं ही अपनी आत्मा का उद्धार करता है।मनुष्य स्वयं ही अपना उद्धार कर सकता है।पिंडदान
क्यो....? आवश्यक इस
पर विचार
करते है
शास्त्रो
कि माने
तो जिस
व्यक्ति
कि अंतिम
इच्छा
अधूरी
रह जाती
उसे मोक्ष
की प्राप्ती
नही होती
यानी उसकी
आत्मा
भटकती
है,ऐसा
कहा जाता
है।ऐसी
स्थती
मे घर
के लोगो
पर अकारण
ही परेशानीया
आती रहती
है,जिससे
ब्राह्मण-पंडित
पूजा करने
और श्राद्ध
करने,भोजन
दान करने
को उचित
उपाय मानते
है।
आप
भी अपने
निमित
जीतेजी
अपनी पूजा
कर सकते
है। अपने पिण्ड का दान करने अर्थात् अपने शरीर को ही परमात्मा को अर्पण करने से हमारा कल्याण होगा।अपना
पिण्डदान हमे स्वयं अपने हाथोँ से ही करना होगा यही उत्तम होगा।जो पिण्ड मेँ है वही ब्रह्माण्ड मेँ है।इस शरीर रुपी पिण्ड परमात्मा को अर्पण करना है। अन्यथा केवल श्राद्ध करने से कोई मुक्ति नहीँ मिलती।अपने व्यवहार मे सच्चाई,सहायता,सहनशीलता,संतोष को लाकर जीतेजी मोक्ष को पा सकते है।