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- सरदार जी के बारह बज गए……. क्या है इस जुमले की हकीकत.....?
Posted by : achhiduniya
12 December 2015
हम
आपको बताते हैं की इस 12 बजे वाले जुमले की पीछे की हकीकत क्या.....है ? निश्चित ही इसे पढ़कर इसका प्रयोग करने वालों को
शर्मिंदगी जरूर महसूस होगी। 1739 में जब आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला करते हुए,हिन्दुस्तान की बहुमूल्य संपदा को लूटना शुरू कर
दिया।इन हवसी आक्रमणकारियों ने करीब 2200 भारतीय महिलाओं को बंधक बना लिया। उस वक्त सरदार
जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे। इन्होने लुटेरों पर हमला करने की
योजना बनायी।किन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी।इसलिए उन्होंने
आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया।
फिर महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया। सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया। यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा।अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में हिन्दू औरतों को बेंचना शुरू कर दिया। सिखों ने अपनी मिडनाईट(12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी। एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए महिलाओं को बचा लिया। सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की। रात 12 बजे के समय में हमला करते समय मुस्लिम लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए” और इस तरह से यह सिलसिला शुरू हुआ।
आज मुगलों की औलादों ने सरदारों का मजाक उड़ाना शुरू किया। जो सिलसिला बदस्तूर जारी है। इसे और ज्यादा बल 1984 के बाद मिला। सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है।उन विदेशी लुटेरों से रक्षित स्त्रियों के वंशजों द्वारा ‘लुटेरों की ही टिप्पणी’ को दोहराना अनजाने में ही सही पर,किसी देशद्रोह से कम नहीं है। सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा। गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है ”सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोबिंद सिंह कहलाऊं”।
फिर महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया। सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया। यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा।अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में हिन्दू औरतों को बेंचना शुरू कर दिया। सिखों ने अपनी मिडनाईट(12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी। एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए महिलाओं को बचा लिया। सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की। रात 12 बजे के समय में हमला करते समय मुस्लिम लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए” और इस तरह से यह सिलसिला शुरू हुआ।
आज मुगलों की औलादों ने सरदारों का मजाक उड़ाना शुरू किया। जो सिलसिला बदस्तूर जारी है। इसे और ज्यादा बल 1984 के बाद मिला। सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है।उन विदेशी लुटेरों से रक्षित स्त्रियों के वंशजों द्वारा ‘लुटेरों की ही टिप्पणी’ को दोहराना अनजाने में ही सही पर,किसी देशद्रोह से कम नहीं है। सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा। गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है ”सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोबिंद सिंह कहलाऊं”।