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- बाल श्रम को मजबूर...... शिक्षा से कोसो दूर....... देश के 1.02 करोड बच्चे
Posted by : achhiduniya
16 May 2016
दिल्ली
जैसे महानगरों में निर्माण क्षेत्र में काम करनेवाले मजदूरों के बच्चों की स्थिति
दयनीय है जहां उनके लिए न तो रहने का ठिकाना है और न पढाई-लिखाई की व्यवस्था।
स्वराज आंदोलन के योगेंद्र यादव के अनुसार, पढे-लिखे बाबू से लेकर अनपढ मजदूर तक,
हर कोई चाहता है कि उसका बच्चा पढ-लिख जाए,लेकिन
शिक्षा तो दूर, ऐसे
बच्चे मजदूरी करने को विवश हैं। उन्होंने कहा कि इनके काम के घंटे तय नहीं होते और
मजदूरी 25 से 50 रुपए तक देकर पल्ला
झाड लिया जाता है। साथ ही इन्हें प्रताडित भी किया जाता है। ऐसे बच्चों के लिए
शिक्षा पाना तो दूर की कौडी बना हुआ है।
चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 1.02 करोड बच्चे काम करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वे स्कूलों से दूर हैं। 2001 से 2011 के दौरान शहरी बाल श्रम में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जाने-माने चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य के अनुसार हमारे ही देश का एक मासूम बचपन ऐसा भी है जो खेतों में, फैक्ट्रियों में काम कर रहा है, ठेली लगाकर सामान बेच रहा है, रेशम के धागे से कपडे तैयार कर रहा है, चाय की दुकान पर बर्तन धो रहा है, स्कूल की बसों में हेल्परी कर रहा है, फूल बेच रहा है और न जाने क्या-क्या करने पर मजबूर है।
लेकिन
कारखानों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन,
होटलों, ढाबों पर काम करने से लेकर कचरे के ढेर में कुछ ढूंढता
मासूम बचपन आज न केवल 21वीं सदी में भारत की आर्थिक वृद्धि
का एक स्याह चेहरा पेश करता है बल्कि आजादी के 68 वर्ष बाद
भी सभ्य समाज की उस तस्वीर पर सवाल उठाता है जहां हमारे देश के बच्चों को हर सुख-सुविधाएं
मिल सके।
चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 1.02 करोड बच्चे काम करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वे स्कूलों से दूर हैं। 2001 से 2011 के दौरान शहरी बाल श्रम में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जाने-माने चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य के अनुसार हमारे ही देश का एक मासूम बचपन ऐसा भी है जो खेतों में, फैक्ट्रियों में काम कर रहा है, ठेली लगाकर सामान बेच रहा है, रेशम के धागे से कपडे तैयार कर रहा है, चाय की दुकान पर बर्तन धो रहा है, स्कूल की बसों में हेल्परी कर रहा है, फूल बेच रहा है और न जाने क्या-क्या करने पर मजबूर है।