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- अजहर....फिल्म समीक्षा
Posted by : achhiduniya
15 May 2016
बालाजी
और सोनी पिक्चर द्वारा बनाई गई फिल्म 'अजहर' उनके कामयाबी के
शिखर पर पहुंचने से लेकर बदनामी की दलदल में धंसने की दास्तां पर आधारित है,
जिसमें प्रमुख रूप से अजहरुद्दीन पर लगे मैच फिक्सिंग के आरोपों वाले
मामले पर ही फोकस किया गया है। लगातार तीन शतक जडकर भारतीय क्रिकेट टीम में चमके हैदराबाद
के मो अजहरुद्दीन (इमरान हाशमी) देखते ही देखते कामयाबी के आसमान पर छा जाते हैं और
उनको भारतीय टीम का कप्तान बना दिया जाता है। कप्तान बनकर उनका साथी खिलाडियों के साथ
मनमुटाव शुरू होता है, लेकिन असली गाज तब गिरती है, जब 99 टेस्ट मैच खेलने के बाद अजहर को मैच फिक्सिंग करने
के आरोप में बर्खास्त कर दिया जाता है। लंदन से आई वकील मीरा (लारा दत्ता) अजहर के
खिलाफ केस की पैरवी करती है। अजहर का केस उनके बचपन के दोस्त रेड्डी (कुणाल राय कपूर)
लडते हैं। फ्लैश बैक में दिखाया जाता है कि कैसे मैच फिक्स करने वाले बुकी अजहर से
संपर्क करते हैं। दूसरी ओर, अपनी पत्नी नौरीन (प्राची देसाई)
को छोडकर अजहर एक्ट्रेस संगीता (नरगिस फाखरी) के इश्क में पडते हैं। अपनी पत्नी को
तलाक देते हैं।
कानूनी लडाई में उलझे अजहर को उनके दोस्तों से साथ नहीं मिलता, लेकिन उनका दोस्त रेड्डी हिम्मत नहीं हारता और अदालत से अजहर को इंसाफ मिलता है। उन पर लगा बैन हटा दिया जाता है। करियर के पहले तीन टेस्ट मैचों में लगातार शतक जडकर वंडरब्वॉय बने मोहम्मद अजहरुद्दीन जहां भारतीय क्रिकेट के जगमगाते सितारे बने, वहीं मैच फिक्सिंग के आरोपों ने उनके करियर पर एक ऐसा दाग लगा दिया, जो कभी धुल नहीं पाया। मैच फिक्सिंग वाले मामले में बेकसूर साबित करने के लिए ही बनाई जा रही है और इसी लाइन पर काम किया गया, लेकिन पटकथा बेहद कमजोर रही। अजहर की निजी जिंदगी, क्रिकेटर के तौर पर कामयाबी और फिर मैच फिक्सिंग के स्कैंडल में तालमेल की कमी नजर आई। अजहर किस वजह से अपनी पत्नी को तलाक देकर संगीता से शादी करने का फैसला करते हैं, किसी को समझ में नहीं आया। कई मौकों पर जबरदस्ती की कल्पनाशीलता का इस्तेमाल किया गया। अजहर ने कभी भी मैन ऑफ द मैच संगीता के नाम नहीं किया, लेकिन इसे उनकी लव स्टोरी के साथ कनेक्ट कर दिया गया। संगीता का किरदार तो और ज्यादा कमजोर है। समझ में नहीं आता कि वे किस बात पर शादीशुदा और क्रिकेटर अजहर से कनेक्ट होती चली गईं।
नौरीन का किरदार सिर्फ रोने-धोने वाली पत्नी तक सीमित रखा गया। मैच फिक्सिंग के स्कैंडल की बात करें, तो यहां भी मामला गडबड है। फिल्म की कहानी के मुताबिक, यदि अजहर बुकी से मिलते हैं, करोड की रकम स्वीकार करते हैं, तो फिर उनको बेकसूर ठहराने की कोई दलील का ग्राउंड नहीं बचता। कानूनी दलीलें तो बेहद कमजोर हैं। मीरा क्यों ये केस लडने के लिए लंदन से आती है, तमाम कमजोरियों के बावजूद इमरान हाशमी ने परदे पर अजहर का किरदार उतारने में भरपूर मेहनत की है। अजहरुद्दीन के लुक्स से लेकर स्टाइल तक वे काफी हद तक अजहर बनने में कामयाब रहे। फिल्म का संगीत अच्छा है। सभी गाने सुनने में अच्छे लगते हैं। तकनीकी रूप से भी फिल्म अच्छी है। टोनी डिसूजा के निर्देशन में बनी इस फिल्म का लेखन बेहद कमजोर है।
कानूनी लडाई में उलझे अजहर को उनके दोस्तों से साथ नहीं मिलता, लेकिन उनका दोस्त रेड्डी हिम्मत नहीं हारता और अदालत से अजहर को इंसाफ मिलता है। उन पर लगा बैन हटा दिया जाता है। करियर के पहले तीन टेस्ट मैचों में लगातार शतक जडकर वंडरब्वॉय बने मोहम्मद अजहरुद्दीन जहां भारतीय क्रिकेट के जगमगाते सितारे बने, वहीं मैच फिक्सिंग के आरोपों ने उनके करियर पर एक ऐसा दाग लगा दिया, जो कभी धुल नहीं पाया। मैच फिक्सिंग वाले मामले में बेकसूर साबित करने के लिए ही बनाई जा रही है और इसी लाइन पर काम किया गया, लेकिन पटकथा बेहद कमजोर रही। अजहर की निजी जिंदगी, क्रिकेटर के तौर पर कामयाबी और फिर मैच फिक्सिंग के स्कैंडल में तालमेल की कमी नजर आई। अजहर किस वजह से अपनी पत्नी को तलाक देकर संगीता से शादी करने का फैसला करते हैं, किसी को समझ में नहीं आया। कई मौकों पर जबरदस्ती की कल्पनाशीलता का इस्तेमाल किया गया। अजहर ने कभी भी मैन ऑफ द मैच संगीता के नाम नहीं किया, लेकिन इसे उनकी लव स्टोरी के साथ कनेक्ट कर दिया गया। संगीता का किरदार तो और ज्यादा कमजोर है। समझ में नहीं आता कि वे किस बात पर शादीशुदा और क्रिकेटर अजहर से कनेक्ट होती चली गईं।
नौरीन का किरदार सिर्फ रोने-धोने वाली पत्नी तक सीमित रखा गया। मैच फिक्सिंग के स्कैंडल की बात करें, तो यहां भी मामला गडबड है। फिल्म की कहानी के मुताबिक, यदि अजहर बुकी से मिलते हैं, करोड की रकम स्वीकार करते हैं, तो फिर उनको बेकसूर ठहराने की कोई दलील का ग्राउंड नहीं बचता। कानूनी दलीलें तो बेहद कमजोर हैं। मीरा क्यों ये केस लडने के लिए लंदन से आती है, तमाम कमजोरियों के बावजूद इमरान हाशमी ने परदे पर अजहर का किरदार उतारने में भरपूर मेहनत की है। अजहरुद्दीन के लुक्स से लेकर स्टाइल तक वे काफी हद तक अजहर बनने में कामयाब रहे। फिल्म का संगीत अच्छा है। सभी गाने सुनने में अच्छे लगते हैं। तकनीकी रूप से भी फिल्म अच्छी है। टोनी डिसूजा के निर्देशन में बनी इस फिल्म का लेखन बेहद कमजोर है।