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- घांस की तरह विनम्र बने..........
Posted by : achhiduniya
27 May 2016
कभी-कभी
इंसान थोड़ा कुछ पा लेता है तो मानो उसका गुरूर सांतवे आसमान पर चड़ जाता है। चाहे
हम कितने भी धनवान बने,कितने ही ऊंचे औहदे पर पहुँच जाए,कितनी ही कामयाबी हासिल कर ले लेकिन अपने मन मे हमेशा विनम्रता जरूर रखे
क्योकि आप सभी को मालूम है सोने की लंका का मालिक रावण भी अपने अभिमान के कारण ही
काल का ग्रास बना। आइए इसे एक छोटी से कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते
है। एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया। नदी को लगा कि मुझमें
इतनी ताकत है कि मैं पहाड, मकान, पेड,
पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूं।
नदी ने बडे ही गर्वीले और अभिमानपूर्ण शब्दों में समुद्र से कहा - बताओ मैं
तुम्हारे लिए क्या लाऊं.....? जो भी तुम चाहो मकान, वृक्ष, पर्वत, पशु, मानव आदि जो तुम चाहो उसे मैं जड़ से उखाड़ कर ला सकती हूं। समुद्र समझ गया
कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा - ''यदि तुम
मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी सी घास उखाड़ कर ले
आओ।' समुद्र की बात सुनकर नदी बोली- ''बस
इतनी सी बात है! अभी आपकी सेवा में हाजिर करती हूं।''
नदी ने अपने जल का पूरा वेग घास पर लगाया। पर घास नहीं उखड़ी नदी ने एक बार, दो बार, अनेक बार जोर लगाया, सभी प्रयत्न किए, पर बार-बार असफलता ही हाथ लगी। आखिर में हारकर नदी समुद्र के पास पहुंची और बोली- ''मैं वृक्ष, मकान, पहाड. आदि को उखाड़कर तो ला सकती हूं, पर घास को उखाड़कर नहीं ला सकती। जब भी घास को उखाड़ने के लिए पूरा जोर (वेग) लगाकर उस पर प्रहार करती हूं, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूं।''समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए बोला -''जो पहाड़ या वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं, किंतु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे कोई प्रचंड वेग भी उखाड़ नहीं पाता।'' नदी ने जब समुद्र की बातें धीरज से सुनीं और समझीं, तब उसका घमंड चूर-चूर हो गया।इसलिए कहते है विनम्रता की ताकत किसी मिसाइल पावर से कम नही चाहे तो आजमा कर देख ले।
नदी ने अपने जल का पूरा वेग घास पर लगाया। पर घास नहीं उखड़ी नदी ने एक बार, दो बार, अनेक बार जोर लगाया, सभी प्रयत्न किए, पर बार-बार असफलता ही हाथ लगी। आखिर में हारकर नदी समुद्र के पास पहुंची और बोली- ''मैं वृक्ष, मकान, पहाड. आदि को उखाड़कर तो ला सकती हूं, पर घास को उखाड़कर नहीं ला सकती। जब भी घास को उखाड़ने के लिए पूरा जोर (वेग) लगाकर उस पर प्रहार करती हूं, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूं।''समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए बोला -''जो पहाड़ या वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं, किंतु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे कोई प्रचंड वेग भी उखाड़ नहीं पाता।'' नदी ने जब समुद्र की बातें धीरज से सुनीं और समझीं, तब उसका घमंड चूर-चूर हो गया।इसलिए कहते है विनम्रता की ताकत किसी मिसाइल पावर से कम नही चाहे तो आजमा कर देख ले।