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- कैसे हो बच्चो की अच्छी परवरिश.......?
Posted by : achhiduniya
09 May 2016
हम
अपने बच्चे की हर बुरी हरकत या शरारत को नजरअंदाज कर उसे शह देते हैं जिससे वह
जिद्दी व शरारती बन जाता है।जब घर आए मेहमानों के सामने वह उल्टी-सीधी शरारत करता
है तो आपको शर्मसार होना पडता है। इसी प्रकार जब आप अपने बच्चे को लेकर कहीं जाते
या जाती हैं, वह वहां भी शरारत करने से बाज नहीं
आता। सामने वाला संकोच की वजह से भले ही उस समय कुछ न कहे, किंतु
उसे बहुत बुरा लगता है। ऐसे शरारती बच्चों की पीठ-पीछे लोग तारीफ नहीं, बुराई ही करते हैं। बहुत से अभिभावक अपने शरारती बच्चों को कहीं अपने साथ
ले जाना पसंद नहीं करते, लेकिन यदि आप उन्हें घर से ही
समझाकर ले जाएं, तो उनके कारण आपको परेशानी का सामना नहीं
करना पडेगा। आखिर बच्चे शरारतें क्यों करते हैं.......? इसके
अनेक कारण हो सकते हैं जिसमें सबसे बडा कारण बडों का ध्यान आकर्षित करना है।
जब घर के बडे उसे नजरअंदाज करते हैं तो वह ऐसी कोई शरारत जरूर करेगा जिससे आपका ध्यान उसकी ओर जाए। कई बार मां-बाप को तंग करने या चिढाने के लिए शरारतें करते है। बच्चों की शरारत को रोकने के लिए उन्हें मारना-पीटना या प्रताडित करना ठीक नहीं। इससे वे ढीठ हो जाते हैं। शरारत करने पर उन्हें कमरे में बंद कर देना या अन्य किसी तरह की सजा देना भी उचित नहीं। उस पर इतनी पाबंदी भी नहीं लगाए कि जो उसके बचपन को दफन कर दे। उन्हें यह बताएं कि शरारती बच्चों को कोई पसंद नहीं करता और जो बच्चे शरारत नहीं करते, वे सबके प्रिय बनते हैं। पने बच्चे को प्यार करना, पुचकारना, दुलारना तो समझ में आता है लेकिन उनकी शरारतों को अनदेखा करना ठीक नहीं। यदि उनकी शरारतें बढती जाएंगी तो इससे न केवल परिजन ही परेशान होंगे अपितु पास-पडोस तथा स्कूल से भी उसकी शिकायते आने लगेंगी। छोटी-मोटी शरारतों को कोई भले ही अनदेखा कर दे, लेकिन यदि उनकी शरारतों से किसी को परेशानी उत्पन्न होती है, व्यवधान होता है या नुकसान पहुंचता है तो वे यही कहेंगे कि मां-बाप ने जरा भी सलीका नहीं सिखाया। कुछ बच्चे कभी शांत बैठ ही नहीं सकते। उन्हें हर समय कोई न कोई शरारत सूझती रहती है। वे उसका अंजाम जाने बगैर उसे करते हैं, फिर भले ही इसके लिए उन्हें डांट ही क्यों न खानी पडे।
जब बच्चे का मन न तो पढाई में लगे और न ही खेलकूद में तो उसे खुराफात सूझती है। घर में दादा-दादी, चाचा-ताऊ, नाना-नानी, मामा, बुआ आदि के अत्यधिक लाड-प्यार की वजह से भी बच्चे शरारती बन जाते हैं। यदि बच्चे के माता-पिता उसे उसकी शरारत पर टोकते हैं तो घर के बुजुर्ग बच्चे का बचाव कर उसे शह देते हैं। इस तरह बच्चे की शरारती प्रवृत्ति बढती जाती है। बच्चों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसकी शरारत सही है या गलत। कुछ बच्चे बुरी संगत के कारण भी शरारती बन जाते हैं। जब बच्चे स्कूल में पढते हैं और वहां उनकी दोस्ती उद्दंड किस्म के बच्चों से होती है तो वे शरारत के नए गुर उनसे सीखकर आते हैं। ऐसे भी बच्चे हैं जिनका शरारत करने का कोई उद्देश्य नहीं होता पर उन्हें ऐसा करने में बहुत मजा आता है। यानी वे मजा लेने के लिए शरारत करते हैं। जब भी बच्चा कोई ऐसी शरारत करे जो किसी को नुकसान पहुंचा सकती हो, तो इसे इसके लिए रोकिए। बच्चों को काबू में रखना या उन्हें अनुशासन का पाठ पढाना बहुत जरूरी है।
जब घर के बडे उसे नजरअंदाज करते हैं तो वह ऐसी कोई शरारत जरूर करेगा जिससे आपका ध्यान उसकी ओर जाए। कई बार मां-बाप को तंग करने या चिढाने के लिए शरारतें करते है। बच्चों की शरारत को रोकने के लिए उन्हें मारना-पीटना या प्रताडित करना ठीक नहीं। इससे वे ढीठ हो जाते हैं। शरारत करने पर उन्हें कमरे में बंद कर देना या अन्य किसी तरह की सजा देना भी उचित नहीं। उस पर इतनी पाबंदी भी नहीं लगाए कि जो उसके बचपन को दफन कर दे। उन्हें यह बताएं कि शरारती बच्चों को कोई पसंद नहीं करता और जो बच्चे शरारत नहीं करते, वे सबके प्रिय बनते हैं। पने बच्चे को प्यार करना, पुचकारना, दुलारना तो समझ में आता है लेकिन उनकी शरारतों को अनदेखा करना ठीक नहीं। यदि उनकी शरारतें बढती जाएंगी तो इससे न केवल परिजन ही परेशान होंगे अपितु पास-पडोस तथा स्कूल से भी उसकी शिकायते आने लगेंगी। छोटी-मोटी शरारतों को कोई भले ही अनदेखा कर दे, लेकिन यदि उनकी शरारतों से किसी को परेशानी उत्पन्न होती है, व्यवधान होता है या नुकसान पहुंचता है तो वे यही कहेंगे कि मां-बाप ने जरा भी सलीका नहीं सिखाया। कुछ बच्चे कभी शांत बैठ ही नहीं सकते। उन्हें हर समय कोई न कोई शरारत सूझती रहती है। वे उसका अंजाम जाने बगैर उसे करते हैं, फिर भले ही इसके लिए उन्हें डांट ही क्यों न खानी पडे।
जब बच्चे का मन न तो पढाई में लगे और न ही खेलकूद में तो उसे खुराफात सूझती है। घर में दादा-दादी, चाचा-ताऊ, नाना-नानी, मामा, बुआ आदि के अत्यधिक लाड-प्यार की वजह से भी बच्चे शरारती बन जाते हैं। यदि बच्चे के माता-पिता उसे उसकी शरारत पर टोकते हैं तो घर के बुजुर्ग बच्चे का बचाव कर उसे शह देते हैं। इस तरह बच्चे की शरारती प्रवृत्ति बढती जाती है। बच्चों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसकी शरारत सही है या गलत। कुछ बच्चे बुरी संगत के कारण भी शरारती बन जाते हैं। जब बच्चे स्कूल में पढते हैं और वहां उनकी दोस्ती उद्दंड किस्म के बच्चों से होती है तो वे शरारत के नए गुर उनसे सीखकर आते हैं। ऐसे भी बच्चे हैं जिनका शरारत करने का कोई उद्देश्य नहीं होता पर उन्हें ऐसा करने में बहुत मजा आता है। यानी वे मजा लेने के लिए शरारत करते हैं। जब भी बच्चा कोई ऐसी शरारत करे जो किसी को नुकसान पहुंचा सकती हो, तो इसे इसके लिए रोकिए। बच्चों को काबू में रखना या उन्हें अनुशासन का पाठ पढाना बहुत जरूरी है।