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- कॅरियर बनाने के बारे में सोच रहे..तो टेक्सटाइल डिजाइनिंग व वस्त्र निर्माण अच्छा क्षेत्र..
Posted by : achhiduniya
23 June 2016
भारत
में टेक्सटाइल सेक्टर के तहत करियर की और नई संभावनाएं बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं।
30 दिसंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की
अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में सरकार ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए
संशोधित टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड स्कीम (टप्स) को मंजूरी दे दी। इससे टेक्सटाइल
सेक्टर में करीब एक लाख करोड़ रुपए का निवेश होने और 30 लाख
लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। विश्व बाजार में भारतीय कपड़े व डिजाइन की
मांग और खपत ने बीते एक दशक में टेक्सटाइल डिजाइनिंग के कॅरियर को जो ऊंचाई प्रदान
की है वह शायद पहले कभी देखने को नहीं मिली है।
फैशन जगत के विस्तार ने तो टेक्सटाइल के क्षेत्र में क्रांति ही ला दी है और इस क्रांति से युवाओं के लिए कॅरियर का एक और संभावनाओं से भरपूर मार्ग प्रशस्त हुआ है। टेक्सटाइल डिजाइनिंग एवं इंजीनियरिंग के सुनहरे भविष्य के मद्देनजर अगर इसे दुनिया की एक बड़ी उभरती इंडस्ट्री कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। फैशन इंडस्ट्री में आए भारी बूम के कारण वर्तमान में टेक्सटाइल डिजाइनिंग काफी तकनीकी विषय बन गया है और इसमें पर्याप्त विविधता देखी जा रही है। वस्त्रों में अनोखापन लाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग हो रहा है, जिसके लिए टेक्सटाइल डिजाइनर में सृजनात्मक योग्यता तथा बेहतर तकनीकी ज्ञान एक अनिवार्य पहलू माना जाने लगा है। इस इंडस्ट्री के तीन प्रमुख विभाग-रिसर्च एंड डेवलपमेंट, मैन्युफेरिंग और मर्चेंडाइजिंग शामिल हैं। टेक्सटाइल डिजाइनिंग एवं इंजीनियरिंग का संबंध सीधे तौर पर इंजीनियरिंग और विज्ञान के सिद्धांतों से संबद्ध है।
फाइबर डिजाइनिंग और कंट्रोल, वस्त्रों से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं, उत्पादों और मशीनरी के क्षेत्र में इन सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है। भारत में टेक्सटाइल उद्योग के दो बड़े क्षेत्र हैं। एक हेंडलूम क्षेत्र है, जिसे अन ऑगेर्नाइज्ड जोन के रूप में भी जाना जाता है और दूसरा मैकेनाइज्ड क्षेत्र है, जिसे ऑगेर्नाइज्ड क्षेत्र के रूप में हम जानते हैं। दोनों ही क्षेत्र अपनी अलग-अलग अहमियत रखते हैं और समान रूप से प्रगति कर रहे हैं। गौरतलब है कि टेक्सटाइल डिजाइनिंग वस्त्र निर्माण से जुड़ा क्षेत्र है। टेक्सटाइल डिजाइनर वस्त्र, छपाई, रंगाई, कशीदाकारी तथा डिजाइन विकास में प्रशिक्षित होता है। वह कपड़े के रेशे व सूत के इतिहास के विषय में अध्ययन करता है व जानकारी प्राप्त करता है। उसके लिए तकनीकी ज्ञान भी जरूरी माना जाता है जैसे करघे को चलाना, विभिन्न प्रकार के सांचों को आपस में मिलाना आदि। टेक्सटाइल डिजाइनर अपने विचार को वास्तविकता में बदलने से पहले कपड़े की गुणवत्ता के संदर्भ में अपने मौलिक ज्ञान का उपयोग करता है।
फैशन ट्रेंड, लोकप्रिय रंग, सूत इत्यादि की समझ भी इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने हेतु नितांत आवश्यक है। टेक्सटाइल डिजाइनिंग में व्यापार से संबंधित बातों का पूर्व आकलन किया जाता है क्योंकि उत्पाद को बाजार में लाने में लगभग वर्षभर का समय लग जाता है। डिजाइनर को अपने रचनात्मक कौशल से बाजार के मुताबिक डिजाइन प्रस्तुत करना होता है। मौलिक विचार के लिए उसे एक खाका भी बनाना होता है। एक टेक्सटाइल डिजाइनर डिजाइनिंग के खाके और रंगाई के अलावा अन्य बहुत से पहलुओं पर काम करता है। डिजाइन स्टूडियो में नमूना तैयार करने में लंबा समय लगता है। नई डिजाइनिंग तैयार करने से पहले कपड़े की पृष्ठभूमि तथा डिजाइन की अवधारणा को समझना होता है क्योंकि किसी उत्पाद की सफलता या असफलता इन्हीं बातों पर निर्भर करती है। इसके लिए पुस्तकालय में बैठकर गंभीर अध्ययन तथा विश्लेषण करने की भी आवश्यकता होती है।
टेक्सटाइल डिजाइनर को रंग की अवधारणा के विषय में अच्छा ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा चित्रांकन तथा रचनात्मक कौशल का होना भी जरूरी है। यह कार्यक्षेत्र लंबे समय तक काम करने की मांग करता है, इसलिए व्यक्ति का परिश्रमी होना अति आवश्यक है। डिजाइनर में फैशनबोध का होना भी जरूरी है तथा उपभोक्ता या बाजार की जरूरत के विषय में भी पूर्वज्ञान होना चाहिए। इसके लिए उम्मीदवार में समस्याओं के समाधान और नई योजनाओं के निर्माण की योग्यता होनी चाहिए। कम शब्दों में कहा जाए तो टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एवं डिजाइनिंग में विज्ञान के सिद्धांतों का प्रायोगिक योग है। शैक्षणिक स्तर पर देखा जाए तो उम्मीदवार गणित, रसायन और भौतिक शास्त्र में निपुण होना चाहिए।
तार्किक योग्यता, टीम के साथ काम करने की क्षमता, मुश्किलों में संकटमोचक बनने का गुण, कम्प्यूटर दक्षता तथा टेक्निकल डिजाइनिंग में निपुणता आवश्यक है।देश के अनेक पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज तथा विश्वविद्यालय टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एवं डिजाइनिंग के रोजगारोन्मुखी कोर्स संचालित करते हैं। स्नातक डिग्री कोर्स यानी बीई या बी.टेक. के लिए उम्मीदवार का विज्ञान विषय (गणित) में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है।
फैशन जगत के विस्तार ने तो टेक्सटाइल के क्षेत्र में क्रांति ही ला दी है और इस क्रांति से युवाओं के लिए कॅरियर का एक और संभावनाओं से भरपूर मार्ग प्रशस्त हुआ है। टेक्सटाइल डिजाइनिंग एवं इंजीनियरिंग के सुनहरे भविष्य के मद्देनजर अगर इसे दुनिया की एक बड़ी उभरती इंडस्ट्री कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। फैशन इंडस्ट्री में आए भारी बूम के कारण वर्तमान में टेक्सटाइल डिजाइनिंग काफी तकनीकी विषय बन गया है और इसमें पर्याप्त विविधता देखी जा रही है। वस्त्रों में अनोखापन लाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग हो रहा है, जिसके लिए टेक्सटाइल डिजाइनर में सृजनात्मक योग्यता तथा बेहतर तकनीकी ज्ञान एक अनिवार्य पहलू माना जाने लगा है। इस इंडस्ट्री के तीन प्रमुख विभाग-रिसर्च एंड डेवलपमेंट, मैन्युफेरिंग और मर्चेंडाइजिंग शामिल हैं। टेक्सटाइल डिजाइनिंग एवं इंजीनियरिंग का संबंध सीधे तौर पर इंजीनियरिंग और विज्ञान के सिद्धांतों से संबद्ध है।
फाइबर डिजाइनिंग और कंट्रोल, वस्त्रों से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं, उत्पादों और मशीनरी के क्षेत्र में इन सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है। भारत में टेक्सटाइल उद्योग के दो बड़े क्षेत्र हैं। एक हेंडलूम क्षेत्र है, जिसे अन ऑगेर्नाइज्ड जोन के रूप में भी जाना जाता है और दूसरा मैकेनाइज्ड क्षेत्र है, जिसे ऑगेर्नाइज्ड क्षेत्र के रूप में हम जानते हैं। दोनों ही क्षेत्र अपनी अलग-अलग अहमियत रखते हैं और समान रूप से प्रगति कर रहे हैं। गौरतलब है कि टेक्सटाइल डिजाइनिंग वस्त्र निर्माण से जुड़ा क्षेत्र है। टेक्सटाइल डिजाइनर वस्त्र, छपाई, रंगाई, कशीदाकारी तथा डिजाइन विकास में प्रशिक्षित होता है। वह कपड़े के रेशे व सूत के इतिहास के विषय में अध्ययन करता है व जानकारी प्राप्त करता है। उसके लिए तकनीकी ज्ञान भी जरूरी माना जाता है जैसे करघे को चलाना, विभिन्न प्रकार के सांचों को आपस में मिलाना आदि। टेक्सटाइल डिजाइनर अपने विचार को वास्तविकता में बदलने से पहले कपड़े की गुणवत्ता के संदर्भ में अपने मौलिक ज्ञान का उपयोग करता है।
फैशन ट्रेंड, लोकप्रिय रंग, सूत इत्यादि की समझ भी इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने हेतु नितांत आवश्यक है। टेक्सटाइल डिजाइनिंग में व्यापार से संबंधित बातों का पूर्व आकलन किया जाता है क्योंकि उत्पाद को बाजार में लाने में लगभग वर्षभर का समय लग जाता है। डिजाइनर को अपने रचनात्मक कौशल से बाजार के मुताबिक डिजाइन प्रस्तुत करना होता है। मौलिक विचार के लिए उसे एक खाका भी बनाना होता है। एक टेक्सटाइल डिजाइनर डिजाइनिंग के खाके और रंगाई के अलावा अन्य बहुत से पहलुओं पर काम करता है। डिजाइन स्टूडियो में नमूना तैयार करने में लंबा समय लगता है। नई डिजाइनिंग तैयार करने से पहले कपड़े की पृष्ठभूमि तथा डिजाइन की अवधारणा को समझना होता है क्योंकि किसी उत्पाद की सफलता या असफलता इन्हीं बातों पर निर्भर करती है। इसके लिए पुस्तकालय में बैठकर गंभीर अध्ययन तथा विश्लेषण करने की भी आवश्यकता होती है।
टेक्सटाइल डिजाइनर को रंग की अवधारणा के विषय में अच्छा ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा चित्रांकन तथा रचनात्मक कौशल का होना भी जरूरी है। यह कार्यक्षेत्र लंबे समय तक काम करने की मांग करता है, इसलिए व्यक्ति का परिश्रमी होना अति आवश्यक है। डिजाइनर में फैशनबोध का होना भी जरूरी है तथा उपभोक्ता या बाजार की जरूरत के विषय में भी पूर्वज्ञान होना चाहिए। इसके लिए उम्मीदवार में समस्याओं के समाधान और नई योजनाओं के निर्माण की योग्यता होनी चाहिए। कम शब्दों में कहा जाए तो टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एवं डिजाइनिंग में विज्ञान के सिद्धांतों का प्रायोगिक योग है। शैक्षणिक स्तर पर देखा जाए तो उम्मीदवार गणित, रसायन और भौतिक शास्त्र में निपुण होना चाहिए।
तार्किक योग्यता, टीम के साथ काम करने की क्षमता, मुश्किलों में संकटमोचक बनने का गुण, कम्प्यूटर दक्षता तथा टेक्निकल डिजाइनिंग में निपुणता आवश्यक है।देश के अनेक पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज तथा विश्वविद्यालय टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एवं डिजाइनिंग के रोजगारोन्मुखी कोर्स संचालित करते हैं। स्नातक डिग्री कोर्स यानी बीई या बी.टेक. के लिए उम्मीदवार का विज्ञान विषय (गणित) में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है।