- Back to Home »
- Entertainment / AjabGajab »
- 'सुल्तान' फिल्म समीक्षा कहानी के साथ.......
Posted by : achhiduniya
07 July 2016
सुल्तान' बनने से लेकर अपने प्यार को हासिल करने तक के समय की रचना बखूबी की गई है।
अब सवाल उठता है कि क्या 'सुल्तान' मनोरंजन
करती है? इस सवाल का जवाब है, हां.
सलमान की अन्य फिल्मों की तरह यह भी फुल एंटरटेनिंग फिल्म है। फिल्म के पहले हिस्से
में सलमान 20 साल के युवक के रोल में हैं। सुल्तान (सलमान
खान) रेसलिंग यानी कि कुश्ती की खिलाड़ी आरफा (अनुष्का शर्मा) के प्यार में पड़ जाता
है। वह एक साधारण डिश टीवी ऑपरेटर है और आरफा नहीं चाहती कि वह ऐसे साधारण-से लड़के
के साथ अपनी भावी जिंदगी गुजारे वह तो ओलंपिक में कुश्ती की प्रतियोगिता जीतने
वाले पहलवान के साथ शादी करने के सपने संजोती है। उसके प्यार की खातिर सुल्तान
पहलवान बनने का फैसला करता है।
वह राज्य स्तरीय कुश्ती स्पर्धा आसानी से जीतकर पुरस्कार भी हासिल करता है। उसकी इस सफलता की वजह से आरफा सुल्तान को चाहने लगती है और उससे शादी करती है। सलमान ने हरियाणवी सुल्तान का किरदार बखूबी साकार किया है, लेकिन अनुष्का की पंजाबी कुड़ी सलमान के सामने फीकी लगती है। इससे पहले कई फिल्मों में अनुष्का पंजाबी कुड़ी बनी हैं, इसलिए उनके किरदार में नयापन महसूस नहीं होता। अब्बास अली जफर के निर्देशन की वजह से फिल्म किसी ईसीजी यानी इलेक्ट्रॉनिक कॉर्डियोग्राम की तरह लगती है। कभी फिल्म की रफ्तार बढ जाती है, तो कभी धीमी पड़ जाती है। कभी फिल्म बोरिंग तो कभी इंटरेस्टिंग लगने लगती है। कुछ चीजें फिल्म में बेवजह डाली गई हैं, जिन्हें टाला जा सकता था।
90 के दशक में मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों में ऐसा मेलोड्रामा होता था। कई सीन बेवजह खींच-तान कर डाले जाते थे। कुछ ऐसा ही 'सुल्तान' के साथ भी हुआ है। फिल्म देखते समय बार-बार यही लगता है कि इस फिल्म की लंबाई कम से कम 30 मिनट तक घटाई जा सकती थी। फिल्म देखने के बाद एक बात याद आती है कि हर पहलवान को अखाड़े में अपने लिए खुद से ही लड़ना पड़ता है, उसी तरह सलमान भी हर वर्ष अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक करने की तैयारी में नजर आते हैं।
वह राज्य स्तरीय कुश्ती स्पर्धा आसानी से जीतकर पुरस्कार भी हासिल करता है। उसकी इस सफलता की वजह से आरफा सुल्तान को चाहने लगती है और उससे शादी करती है। सलमान ने हरियाणवी सुल्तान का किरदार बखूबी साकार किया है, लेकिन अनुष्का की पंजाबी कुड़ी सलमान के सामने फीकी लगती है। इससे पहले कई फिल्मों में अनुष्का पंजाबी कुड़ी बनी हैं, इसलिए उनके किरदार में नयापन महसूस नहीं होता। अब्बास अली जफर के निर्देशन की वजह से फिल्म किसी ईसीजी यानी इलेक्ट्रॉनिक कॉर्डियोग्राम की तरह लगती है। कभी फिल्म की रफ्तार बढ जाती है, तो कभी धीमी पड़ जाती है। कभी फिल्म बोरिंग तो कभी इंटरेस्टिंग लगने लगती है। कुछ चीजें फिल्म में बेवजह डाली गई हैं, जिन्हें टाला जा सकता था।
90 के दशक में मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों में ऐसा मेलोड्रामा होता था। कई सीन बेवजह खींच-तान कर डाले जाते थे। कुछ ऐसा ही 'सुल्तान' के साथ भी हुआ है। फिल्म देखते समय बार-बार यही लगता है कि इस फिल्म की लंबाई कम से कम 30 मिनट तक घटाई जा सकती थी। फिल्म देखने के बाद एक बात याद आती है कि हर पहलवान को अखाड़े में अपने लिए खुद से ही लड़ना पड़ता है, उसी तरह सलमान भी हर वर्ष अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक करने की तैयारी में नजर आते हैं।