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- पूरा झुक जाना, लेकिन टूटना नहीं....
Posted by : achhiduniya
07 July 2016
एक
पुरातन कथा के अनुसार जैन गुरु जंगल की पथरीली ढलान पर अपने एक शिष्य के साथ कहीं
जा रहे थे। शिष्य का पैर फिसल गया और वह लुढकने लगा। वह ढलान के किनारे से खाई में
गिर ही जाता लेकिन उसके हाथ में बांस का एक छोटा पेड़ आ गया और उसने उसे मजबूती से
पकड़ लिया। बांस पूरी तरह से मुड़ गया लेकिन न तो जमीन से उखड़ा और न ही टूटा। शिष्य
ने उसे मजबूती से थाम रखा था और ढलान पर से गुरु ने भी मदद का हाथ बढाया। वह सकुशल
पुन: मार्ग पर आ गया। आगे बढते समय गुरु ने शिष्य से पूछा, तुमने देखा गिरते समय तुमने बांस को पकड़ लिया था। वह बांस पूरा मुड़ गया लेकिन फिर भी उसने तुम्हें सहारा दिया और
तुम बच गए। हां.शिष्य ने कहा। गुरु ने बांस के एक तने को पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
और कहा, बांस की भांति बनो। फिर उन्होंने बांस को छोड़ दिया
और वह लचककर अपनी जगह लौट गया।
'बलशाली हवाएं बांसों के झुरमुट को पछाड़ती हैं,लेकिन यह आगे-पीछे डोलता हुआ मजबूती से धरती में जमा रहता है और सूर्य की ओर बढता है। तुम्हें भी जीवन में कई बार लगा होगा कि तुम अब टूटे, तब टूटे कि अब तुम एक कदम भी आगे नहीं जा सकते, अब जीना व्यर्थ है। जी, ऐसा कई बार हुआ है। शिष्य बोला। ऐसा तुम्हें फिर कभी लगे तो इस बांस की भांति पूरा झुक जाना, लेकिन टूटना नहीं। यह हर तनाव को झेल जाता है, बल्कि यह उसे स्वयं में अवशोषित कर लेता है और पुन: मूल अवस्था में लौट जाता है। जीवन को भी इतना ही लचीला होना चाहिए।
'बलशाली हवाएं बांसों के झुरमुट को पछाड़ती हैं,लेकिन यह आगे-पीछे डोलता हुआ मजबूती से धरती में जमा रहता है और सूर्य की ओर बढता है। तुम्हें भी जीवन में कई बार लगा होगा कि तुम अब टूटे, तब टूटे कि अब तुम एक कदम भी आगे नहीं जा सकते, अब जीना व्यर्थ है। जी, ऐसा कई बार हुआ है। शिष्य बोला। ऐसा तुम्हें फिर कभी लगे तो इस बांस की भांति पूरा झुक जाना, लेकिन टूटना नहीं। यह हर तनाव को झेल जाता है, बल्कि यह उसे स्वयं में अवशोषित कर लेता है और पुन: मूल अवस्था में लौट जाता है। जीवन को भी इतना ही लचीला होना चाहिए।