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- जाने पंचमुखी का राज....पंचमुखी हनुमान कारज करे रास...
Posted by : achhiduniya
17 March 2017
गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते
हैं। रामायण के मुताबिक श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुखी पांच दिशाओं में
हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक पंचमुखी हनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने
के लिए हुआ हैं। हर रूप एक मुख वाला,त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुखी नरसिंह,गरुड,अश्व,वानर और वराह रूप
है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने
गएं हैं। हनुमान के पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं।
पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं। रुद्र के
अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है। पंचमुखी हनुमान
के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं जिसकी प्रभा करोडों सूर्यों के तेज समान हैं।
पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। पश्चिम
दिशा वाला मुख गरुड का हैं जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं।
हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है और इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य,यश,दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। है। हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप नृसिंह का है,जो भक्तों के भय,चिंता,परेशानी को दूर करता हैं। हनुमान जी इन्हे सभी युगों का मालिक माना जाता है। फिर चाहे वो सतयुग हो या द्वापरयुग। लेकिन कभी सोचा है कि हनुमान जी पंचमुखी कैसे बने…..? हनुमान जी के पंचमुखी रूप के पीछे भी एक कहानी है। आईए जानते हैं वो पूरी कहानी। अहिरावण जिसे रावण का मायावी भाई माना जाता था। जब रावण परास्त होने कि स्थिति में था। तब उसने अपने मायावी भाई का सहारा लिया और रामजी की सेना को निंद्रा में डाल दिया। इस पर जब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेने गए तो उनकी भेट उनके मकरपुत्र से हुई। मकर पुत्र को परास्त करने के बाद उन्हें पाताल लोक में 5 जले हुए दिए दिखे, जिसे बुझाने पर अहिरावण का नाश होना था। इस स्थिति में हनुमान जी ने उत्तर दिशा में वराह मुख,दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख,पश्चिम में गरुड़ मुख,आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। इस प्रकार हनुमान जी को पंचमुखी कहलाया जाने लगा।
हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है और इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य,यश,दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। है। हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप नृसिंह का है,जो भक्तों के भय,चिंता,परेशानी को दूर करता हैं। हनुमान जी इन्हे सभी युगों का मालिक माना जाता है। फिर चाहे वो सतयुग हो या द्वापरयुग। लेकिन कभी सोचा है कि हनुमान जी पंचमुखी कैसे बने…..? हनुमान जी के पंचमुखी रूप के पीछे भी एक कहानी है। आईए जानते हैं वो पूरी कहानी। अहिरावण जिसे रावण का मायावी भाई माना जाता था। जब रावण परास्त होने कि स्थिति में था। तब उसने अपने मायावी भाई का सहारा लिया और रामजी की सेना को निंद्रा में डाल दिया। इस पर जब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेने गए तो उनकी भेट उनके मकरपुत्र से हुई। मकर पुत्र को परास्त करने के बाद उन्हें पाताल लोक में 5 जले हुए दिए दिखे, जिसे बुझाने पर अहिरावण का नाश होना था। इस स्थिति में हनुमान जी ने उत्तर दिशा में वराह मुख,दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख,पश्चिम में गरुड़ मुख,आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। इस प्रकार हनुमान जी को पंचमुखी कहलाया जाने लगा।