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- बुढ़ापे को रोकने का अचूक उपाए न दवा ना दारू.....?
Posted by : achhiduniya
14 March 2017
पिछले
दिनों एंटी-एजिंग क्रीम व अन्य प्रसाधनों पर हुए एक शोध कार्य में इस बात का
खुलासा किया गया कि वृद्धावस्था की गति को रोकने या कम करने वाली तथा कथित
एंटी-ऑक्सिडेंट युक्त एंटी-एजिंग क्रीम अथवा डाइट शरीर की झुर्रियां कम करने या
वृद्धावस्था को रोकने में किसी भी तरह सक्षम नहीं होती या फिर उनका नगण्य प्रभाव
ही शरीर पर पड़ता है। वास्तव में प्रभाव पड़ता भी है तो क्रीम अथवा डाइट का नहीं
अपितु क्रीम अथवा डाइट के इस्तेमाल के फलस्वरूप व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन
का। हां, वृद्धावस्था को रोकने का
एंटी-एजिंग फॉर्मूला है तो वो है एंटी-एजिंग मानसिकता। उम्र के अहसास को परिवर्तित
करके ही हम चिर युवा बने रह सकते हैं। जब आप बुढ़ापे के विरुद्ध कमर कसते हैं तो
इसका सीधा सा अर्थ है कि आपने बुढ़ापे को स्वीकार कर लिया है। बालों का सफेद होना अथवा
शारीरिक क्षमता में कमी क्या बुढ़ापे के लक्षण हैं ?
कुछ हद तक तो ये बात ठीक है लेकिन बुढ़ापा या वृद्धावस्था वास्तव में मन की एक अवस्था है। बुढ़ापे से बचने का जो एकमात्र महत्वपूर्ण उपाय है वो है उसे स्वीकार ही न करना। जब तक आप स्वीकार नहीं करेंगे, आप बूढ़े हो ही नहीं सकते और यह स्वीकृति होती है मन से। मन में हमेशा युवा बने रहेंगे तो न बुढ़ापा दस्तक देगा और न शारीरिक कमजोरी। किसी व्यक्ति को देखने मात्र से उसकी वास्तविक उम्र का पता नहीं चलता। कुछ लोग कम उम्र में ही वृद्ध नजर आने लगते हैं तो कुछ रिटायरमेंट के बाद भी युवा नजर आते हैं और इसका कारण है उनकी शारीरिक बनावट तथा आनुवंशिकता के साथ-साथ उनका बुढ़ापे के प्रति दृष्टिकोण या मनोस्थिति। यदि हम आयु की बात करें तो आयु भी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।
एक होती है शारीरिक उम्र तथा दूसरी होती है मानसिक उम्र। इसी प्रकार वृद्धावस्था भी शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही तरह की होती है। शारीरिक वृद्धावस्था को मन की शक्ति द्वारा रोकना संभव है लेकिन जो मन से बूढ़ा हो गया, उसका कोई उपचार नहीं। जैसा मन वैसा तन। जब कोई बूढ़ा न होने की ठान लेता है तो वह चिर युवा बना रहता है और अंत तक सक्रिय व सक्षम भी। वस्तुत: मनुष्य उतना ही बूढ़ा या जवान है जितना वह अनुभव करता है। बुढ़ापा तन का नहीं, मन का होता है।
मन जवां तो तन जवां। आप की सोच इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण है अत: सोच में सकारात्मक परिवर्तन द्वारा सदैव युवा बने रहें और सक्रिय जीवन व्यतीत करें। बढ़ती उम्र के अहसास को परिवर्तित करके, विषाक्त मनोभावों तथा आदतों से छुटकारा पाकर, जीवन में सक्रियता अथवा क्रियाशीलता बनाए रखकर, जीवन में लचीला होने की विधि सीखकर तथा अपने जीवन में प्रेम को अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व बनाकर हम सदैव युवा बने रह सकते हैं। वैसे भी यदि आप सक्रिय जीवन व्यतीत करते हैं तो बुढ़ापा पास नहीं फटकता।
कुछ हद तक तो ये बात ठीक है लेकिन बुढ़ापा या वृद्धावस्था वास्तव में मन की एक अवस्था है। बुढ़ापे से बचने का जो एकमात्र महत्वपूर्ण उपाय है वो है उसे स्वीकार ही न करना। जब तक आप स्वीकार नहीं करेंगे, आप बूढ़े हो ही नहीं सकते और यह स्वीकृति होती है मन से। मन में हमेशा युवा बने रहेंगे तो न बुढ़ापा दस्तक देगा और न शारीरिक कमजोरी। किसी व्यक्ति को देखने मात्र से उसकी वास्तविक उम्र का पता नहीं चलता। कुछ लोग कम उम्र में ही वृद्ध नजर आने लगते हैं तो कुछ रिटायरमेंट के बाद भी युवा नजर आते हैं और इसका कारण है उनकी शारीरिक बनावट तथा आनुवंशिकता के साथ-साथ उनका बुढ़ापे के प्रति दृष्टिकोण या मनोस्थिति। यदि हम आयु की बात करें तो आयु भी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।
एक होती है शारीरिक उम्र तथा दूसरी होती है मानसिक उम्र। इसी प्रकार वृद्धावस्था भी शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही तरह की होती है। शारीरिक वृद्धावस्था को मन की शक्ति द्वारा रोकना संभव है लेकिन जो मन से बूढ़ा हो गया, उसका कोई उपचार नहीं। जैसा मन वैसा तन। जब कोई बूढ़ा न होने की ठान लेता है तो वह चिर युवा बना रहता है और अंत तक सक्रिय व सक्षम भी। वस्तुत: मनुष्य उतना ही बूढ़ा या जवान है जितना वह अनुभव करता है। बुढ़ापा तन का नहीं, मन का होता है।
मन जवां तो तन जवां। आप की सोच इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण है अत: सोच में सकारात्मक परिवर्तन द्वारा सदैव युवा बने रहें और सक्रिय जीवन व्यतीत करें। बढ़ती उम्र के अहसास को परिवर्तित करके, विषाक्त मनोभावों तथा आदतों से छुटकारा पाकर, जीवन में सक्रियता अथवा क्रियाशीलता बनाए रखकर, जीवन में लचीला होने की विधि सीखकर तथा अपने जीवन में प्रेम को अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व बनाकर हम सदैव युवा बने रह सकते हैं। वैसे भी यदि आप सक्रिय जीवन व्यतीत करते हैं तो बुढ़ापा पास नहीं फटकता।