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- मोबाइल फोन पर पनपते हैं किटाणु+सूक्ष्मजीवाणु....?
Posted by : achhiduniya
24 March 2017
पश्चिमी देशों की खबरों के अनुसार मोबाइल
फोन अकसर शौचालयों की सीट से भी ज्यादा गंदे होते हैं। कुछ स्मार्ट फोनों पर तो
ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं,
जिनपर दवाओं का असर ही नहीं होता।यह चौंका देने वाले परिणाम सरकारी
संस्थान राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने निकाले हैं। ये
वैज्ञानिक मोबाइल फोनों की स्क्रीन पर सूक्ष्म जीवों की तीन नई प्रजातियों की
पहचान करने में कामयाब रहे हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित इस
प्रयोगशाला ने ऐसे दो बैक्टीरिया और फंगस की पहचान की है, जिनका
जिक्र वैज्ञानिक साहित्य में पहले कभी नहीं किया गया।
वर्ष 2015 में यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में मॉलिक्यूलर माइक्रोबायोलॉजी एंड इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर विलियम डीपाओलो द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि शौचालयों की सीट पर तीन विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं लेकिन मोबाइल फोनों पर औसतन 10-12 विभिन्न प्रकार के फफूंद और बैक्टीरिया पाए जाते हैं। चूंकि मोबाइल फोन रसोई से लेकर सार्वजनिक परिवहन तक लगभग हर तरह के वातावरण में ले जाए जाते हैं, ऐसे में फोन पर आए पसीने और मैल में ये सूक्ष्मजीव अच्छी तरह पनप जाते हैं। इनमें से दो बैक्टीरिया का नाम लाएसिनबैकिलस टेलीफोनिकस और माइक्रोबेक्टीरियम टेलीफोनिकम और फफूंद की नई प्रजाति का नाम पायरेनोकाएटा टेलीफोनी रखा गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक चेतावनी भरा निष्कर्ष जारी करते हुए कहा कि सूक्ष्मजीवों की 12 प्रजातियां ऐसी हैं, जो एंटी-बायोटिक्स के खिलाफ लड़ाई जीतने में कामयाब हो रही हैं और इन सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए जल्दी ही नए रसायनों की खोज की जानी जरूरी है। मोबाइल फोन को स्वच्छ रखने का सबसे आसान तरीका है कि इन्हें शौचालय न ले जाया जाए और समय-समय पर साबुन के पानी में एक कपड़े को हल्का सा भिगोकर इसे साफ कर लिया जाए। इसे इस्तेमाल करने के पहले हैंडसेट को पूरी तरह सुखा लिया जाए। ऐसा कहा जाता है कि मोबाइल की सफाई के लिए व्यवसायिक द्रव्यों और सेनीटाइजरों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और मोबाइल साफ करने से पहले उसे ऑफ कर देना चाहिए।
मोबाइल फोनों की स्वच्छता से जुड़े ये निष्कर्ष कहते हैं कि भारत में स्थिति इतनी भी खराब नहीं है। हालांकि 1.3 अरब जनसंख्या वाले इस देश में शौचालयों से ज्यादा मोबाइल फोन हैं।
वर्ष 2015 में यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में मॉलिक्यूलर माइक्रोबायोलॉजी एंड इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर विलियम डीपाओलो द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि शौचालयों की सीट पर तीन विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं लेकिन मोबाइल फोनों पर औसतन 10-12 विभिन्न प्रकार के फफूंद और बैक्टीरिया पाए जाते हैं। चूंकि मोबाइल फोन रसोई से लेकर सार्वजनिक परिवहन तक लगभग हर तरह के वातावरण में ले जाए जाते हैं, ऐसे में फोन पर आए पसीने और मैल में ये सूक्ष्मजीव अच्छी तरह पनप जाते हैं। इनमें से दो बैक्टीरिया का नाम लाएसिनबैकिलस टेलीफोनिकस और माइक्रोबेक्टीरियम टेलीफोनिकम और फफूंद की नई प्रजाति का नाम पायरेनोकाएटा टेलीफोनी रखा गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक चेतावनी भरा निष्कर्ष जारी करते हुए कहा कि सूक्ष्मजीवों की 12 प्रजातियां ऐसी हैं, जो एंटी-बायोटिक्स के खिलाफ लड़ाई जीतने में कामयाब हो रही हैं और इन सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए जल्दी ही नए रसायनों की खोज की जानी जरूरी है। मोबाइल फोन को स्वच्छ रखने का सबसे आसान तरीका है कि इन्हें शौचालय न ले जाया जाए और समय-समय पर साबुन के पानी में एक कपड़े को हल्का सा भिगोकर इसे साफ कर लिया जाए। इसे इस्तेमाल करने के पहले हैंडसेट को पूरी तरह सुखा लिया जाए। ऐसा कहा जाता है कि मोबाइल की सफाई के लिए व्यवसायिक द्रव्यों और सेनीटाइजरों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और मोबाइल साफ करने से पहले उसे ऑफ कर देना चाहिए।
मोबाइल फोनों की स्वच्छता से जुड़े ये निष्कर्ष कहते हैं कि भारत में स्थिति इतनी भी खराब नहीं है। हालांकि 1.3 अरब जनसंख्या वाले इस देश में शौचालयों से ज्यादा मोबाइल फोन हैं।