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- सोच समझ करे दान......पुण्य और पाप का भागीदार दानी भी होता हैं...
Posted by : achhiduniya
22 February 2018
काफी समय पहले की बात है एक भिखारी संत कबीर साहब के पास आया और कुछ खाने के लिए मांगने लगा। भिखारी काफी दिन से भूखा था। तब कबीर जी कपडे़ बुन रहे थे। कबीर जी ने भिखारी से कहा कि मेरे पास इस समय खाने के लिए कुछ भी नही है और ना ही पैसे है फिर कबीर जी ने उस भिखारी को पश्चिम के धागे का गोला देते हुए कहा कि इस समय मेरे पास यही है। इसे बेचकर कुछ खा लेना। वह भिखारी चला गया। रास्ते मे एक तलाब आया तलाब मे मछलियाँ बहुत थी। भिखारी ने उस धागे का जाल बनाकर मछली को पकड़ने के लिए तलाब मे फेंका क्योकि वह धागा कमाई वाले संत कबीर जी का था। इसलिए उस जाल मे काफी मछलियाँ आई। वह भिखारी सारा दिन मछलियाँ पकड़ता रहा। शाम को उसने सारी मछलियाँ बेच दी। वह भिखारी रोज ऐसे ही करता। उसने धीरे धीरे कई जाल बना लिए और कुछ ही सालो मे वह बहुत अमीर आदमी बन गया। एक दिन उस भिखारी ने सोचा कि क्यो ना उस संत के दर्शन किए जाए। भिखारी संत कबीर जी के पास सोना चांदी और अच्छे कपडे़ ले गया। कबीर जी ने पहले तो उसे पहचाना नही पर जब उस भिखारी ने सारी बात बताई। तो कबीर जी बहुत पछताए और उस भिखारी को कहा कि तुमने जितनी भी मछलियो को मारा है। उन सब का आधा पाप मुझे लगेगा। क्योंकि मै तुमही वो धागा नही देता तो तुम कभी मछलियाँ नही पकड़ते। कबीर जी ने उसका सब सामान लोटा दिया और आगे से अच्छे काम करने का उद्देश्य दिया। सोच समझ के दान करो क्योंकि दान से प्राप्त पुण्य और पाप का भागीदारी दानी भी होता हैं।
