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- विज्ञानं निष्ठ,तर्कशुद्ध,निर्भय श्री तथागत गौतम बुद्ध....
Posted by : achhiduniya
30 April 2018
सबसे पहले बैसाख पूर्णिमा के महत्व को समझना जरूरी है,इस दिन सिद्धार्थ गौतम बुध्द का जन्म ,उनका यशोधरा से विवाह, ज्ञान प्राप्ति तथा महा निवार्ण यह चारो घटनाये हुए थी।यह चारो घटनाये बैसाख पूर्णिमा के दिन घटी यह कोई साधारण बात नही ना ये कोई चमत्कार है। इसका अपना एक अलग महत्व है। यह वस्तु स्थति है इस सत्य को कोई नकार नही सकता ,जिनका आज जन्म दिवस महोत्सव मना रहे है। ऐसे स्थिर प्रग्य महामानव को त्रिवार नमन विश्व बंधुत्व समानता तथा मनुष्य स्वतंत्रता एक दूजे के प्रति प्रेम भावना ,करुना की भावना इत्यादी मानव हितो के गुणों का जतन करने वाले विज्ञानं निष्ठ, तर्कशुद्ध, निर्भय और विशुद जीवन मार्ग पर आधारित अलोकिक ऐसे पवित्र धम्म कि स्थापना करने वाले विश्व के पहलेक्रन्तिकारी महामानव अर्थात श्री तथागत गौतम बुद्ध है। सिद्धार्थ गौतम ने रोहिणी नदी के विवाद में ग्रह त्याग कर सन्यास ले लिया। कपिल वस्तु से राजगढ़ आने पर मगधीपती राजा बिंबिसार ने उनसे मुलाखत राजा बिंबिसार ने उन्हें राजसी उपभोग के विषय में उपदेश किया।
आप पुनह: कपिल वस्तु से लौटकर राजसी उपभोग ले यह कहा अगर यह शक्य ना ही तो मेरा आधा राज्य में आपको देता हु। आप यहा राज करे यह निवेदन किया, मगर सन्यास का मार्ग ना अपनाये तभी सिद्धार्थ राजा बिंबिसार को गम्भीरता तथा विचार पूर्वक जवाब दिया कि सर्व साधारणत: सुख का मतलब उपभोग को माना जाता है। मगर इन्हे कसौटी पर उतारा जाए तो इनमे से एक भी उपयोग लेने लायक नही यह दिखाई देता है। जैसे प्यास मिटने के लिए पानी कि जरूरत होती है,भूख मिटाने के लिए अन्न कि जरूरत पड़ती है।
अपनी नग्नता को ढकने के लिए तथा ठंडी हवा से बचने के लिए कपड़ो कि जरूरत होती है। नींद के नशे को मिटाने के बिस्तर होता है। सफर कि थकान से बचने के लिए वाहन होता है और खड़े रहने के तकलीफ से बचने के लिए आसन होता है। शरीर कि शुध्धी और स्वास्थ के लिए स्नान एक साधन होता है केवल बाहरी चीजे मतलब मनुष्य के दुखो को मिटाने का साधन नही है इसलिए केवल रोटी कपड़ा और मकान आदी मुलभुत जरुरतो को प्राथमिकतान देते हुए मनुष्य कल्याण के लिए सुख को ढूंढने के लिए,ज्ञान अर्थात शिक्षा महत्वपूर्ण है। तथागत ने प्राप्त किया हुआ ज्ञान (चिंतन ) के माध्यम से ही मनुष्य कल्याण का खास रास्ता ढूंढा,जिससे व्यक्ति के सर्वंगिक विकास में मदद होती है। यह संदेश उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को दिया। व्यक्ति विकास कि द्रष्टि से मनुष्य को शिक्षा-ज्ञान का कितना महत्व है। यह हमारे देश केअनेक महामानवो ने समझा।
मनुष्य का सुख उसका कल्याण किस चीज में है इसे ढुडते हुए महामानवो ने पाया कि प्रथमत:प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित तथा ज्ञानी होना जरूरी है। शिक्षाज्ञान मानव कल्याण के सुख के प्रमुख अंग है।इनके विकास राज-मार्ग है। यह राज मार्ग सबसे पहले गौतम बुद्ध ने विश्व को दिखाया। भगवान बुद्ध के जीवन के विविध पहलू है। इन विविध पहलुओ का अभ्यास विविध अंगो से तथा द्रष्टि कोनो से होना आज कि जरूरत है, तथागत गौतम बुद्ध के व्यक्तित्व में जिस प्रकार के चुम्बकीय तत्व थे। उसी प्रकार लोग उनके व्यक्ति मत्व से प्रभावित हो गये थे। मगर इसे कई गुना ज्यादा लोग उनके तत्वज्ञान कि सभ्यता से प्रभावित हुए थे और उनके अनुयायी बन गये थे।बुध्ध के तत्वज्ञान और व्यक्तिमत्व कि पकड़ इतनी मजबूत है कि भारत भूमि के इस पुत्र ने केवल भारत को ही नही सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया। भारत के इतिहास में इतना प्रतिभा सम्पन्न ,प्रखर बुध्जिवी ध्येयवादी और मानवतावादी आजतक कोई नही हुआ और इसके आगे होना भी संभव नही,
जिसे सम्पूर्ण विश्व सन्माननमन करे। बुध्ध इस तरह के स्व्यम प्रज्ञा के मनुष्य थे।जिन्होंने पहली बार विश्व को प्रखर बुध्धिवाद और ध्येयवाद की शिक्षा दी भगवान बुध्ध कहते थे।अत दिपोभव , अत विरहत, अत सरणी अर्थात मनुष्य प्राणियों स्वयम के दीप बनो ,स्वयम प्रकाशमान हो और स्वयम की शरण जाकर विचरण करे। किसी और की शरण न जाये,कोई अन्य आपको शरण जाने योग्य नही आप स्वयम ही स्वयम के शरणस्थ है। इसमे विश्व की सभ्यता और संस्क्रती के इतिहास में भगवान बुध्ध ने पहली बार परा प्रकति,देव, ईश्वर,आत्मा और परमात्मा की सकलपना से मुक्त होने का महामंत्र दिया,जिसका जतन करना आज के काल की जरूरत है। बुध्ध का चरित्र और चारित्र्य पानी के निर्मल प्रवाह की तरह था। वे करुना के महासागर थे। गरीब दुखियारो के वह पालनकर्ता,मित्र सखा और मार्गदर्शक थे। विश्व के इतिहास में ऐसे महापुरुष अपवादात्मक होते है।ऐसे सम्यक सम्बुद्ध मुक्ति के मार्ग्दशक है।