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बलात्कार पीड़िता जीवित,मृतक,नाबालिग,दिमागी रूप से अस्वस्थ्य हो,उनकी पहचान मीडिया रिपोर्टिंग मे सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए......सुप्रीम कोर्ट
Posted by : achhiduniya
25 April 2018
सुप्रीम कोर्ट बलात्कार पीड़िता के नाम को सार्वजनिक करने के मसले पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि यहां तक कि ऐसे मामलों में जिनमें बलात्कार पीड़िता जीवित हो या नाबालिग हो या दिमागी रूप से अस्वस्थ्य हो, उनकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह उनकी निजता का अधिकार है और वे पूरी जिंदगी इस कलंक’ के साये में नहीं जी सकती। पीठ ने कहा, मृतक की गरिमा या सम्मान के बारे में भी सोचना चाहिए। मीडिया रिपोर्टिंग बिना बलात्कार पीड़िता का नाम उजागर किए भी हो सकती है। मृतक की भी गरिमा होती है। वास्तव में पीठ भारतीय दंड संहिता की धारा-228 ए के मसले पर परीक्षण कर रही है। यह धारा यौन अपराधों में पीड़िता की पहचान को उजागर करने से संबंधित है। पीठ ने इस मसले का परीक्षण करने का निर्णय लेते हुए यह भी सवाल उठाया कि क्या अभिभावकों की अनुमति के बाद भी क्या नाबालिग बलात्कार पीड़िता के नाम को उजागर किया जा सकता है? पीठ ने कहा कि यहां तक कि दीमागी रूप से बीमार हो, उनका भी निजता का अधिकार होता है।
नाबालिग कल जब बालिग हो और जीवनभर उसे कलंक के साये में जीना पड़ेगा। इस मामले में अमाइकस क्यूरी वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को धारा-228 ए को स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया पर इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट को प्रेस की स्वतंत्रता और पीड़िता के अधिकार में संतुलित करना चाहिए। पीठ ने यह स्वीकार किया कि इस मामले में स्पष्टीकरण जरूरी है। पीठ ने केंद्र को इस संबंध में निर्देश लाने का निर्देश देते हुए सुनवाई आठ मई के लिए टाल दी।

