Posted by : achhiduniya 21 July 2018


माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है। तक़रीबन 32 साल के अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा। बेटा, तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या ? माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी। माँ मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है। सुदीप ने कहा। जैसी तेरी इच्छा। मरी सी आवाज़ में माँ बोली। और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में। वृद्धा-आश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर जिन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धा-आश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी। एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। 
तो वहाँ बैठी एक महिला बोली, " प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी। तब सुदीप कुल चार साल का था।पति की मौत के बाद, प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। तब किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका। वृद्धा-आश्रम में करीब 6 महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया, और कहा, सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो ? माँ, अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ। सुदीप का जवाब था। तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा। इस तरह तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धा-आश्रम के लोग भी कहने लगे कि देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, मुझे तो लगता कि डॉक्टर विदेश-पिदेश नही गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था। तभी किसी और बुजुर्ग ने कहा,  मगर वो तो शादी-शुदा भी नहीं था। अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड', जिसने कहा होगा पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी। दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। 
बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी। दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में। इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ। उसे मरे तो तीन साल हो गये। शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग अचंभित हो गये। उनमें से एक बोला, अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था। वो मोबाईल तो मेरे पास है, जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है। शर्मा जी बोले। पर ऐसा क्यों ? किसी ने पूछा। तब शर्मा जी बोले कि करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, शर्मा जी मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। 
मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे। मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा। यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं। प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया। माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था कि कुछ बेटे अपने बूढ़े माँ/बाप को वापस अपने घर ले गये।

{ 1 comments... read them below or add one }

  1. ये कहानी मेरे father Dr. Subhash Goel की लिखी हुई है।

    कुछ समय से, व्हाट्सप्प पर ये बिना credits के ही share की जा रही है। इसका original नाम 'माँ और ममता' है। Original पोस्ट लिंक: https://www.facebook.com/groups/falakstories/posts/1480814415290617

    Please let me know how can I get the name of the original writer added here.

    Thanks a lot!

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