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- राहुल गांधी भले ही अध्यक्ष नहीं लेकिन पर्दे के पीछे से उनका ही पार्टी पर कंट्रोल जारी....कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने खोली पोल
राहुल गांधी भले ही अध्यक्ष नहीं लेकिन पर्दे के पीछे से उनका ही पार्टी पर कंट्रोल जारी....कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने खोली पोल
सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद का कार्यकाल बढ़ने के बाद भी पार्टी के अंदर का मतभेद खुलकर सामने आ रहा है। पार्टी के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह ने एक बयान देकर इस मुद्दे की आग में घी डालने वाले काम किया है। उनका कहना था कि कांग्रेस पार्टी के अन्दर असंतोष आज का नहीं वरन उसी दिन से है जिस दिन सोनिया गांधी पिछले साल पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनाई गई थीं। यही नहीं, उनका यह भी कहना था कि राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष का पद भले ही छोड़ दिया था,लेकिन पार्टी पर उनका नियंत्रण कायम रहा जिसका सबूत पार्टी पदाधिकारियों की नियुक्ति है। दिग्विजय का यह भी कहना था कि राहुल गांधी भले ही अध्यक्ष नहीं रहे लेकिन पर्दे के पीछे से उनका पार्टी पर नियंत्रण जारी रखना कई लोगों को खटका। जिसके चलते कांग्रेस में बागी नेताओं की संख्या, राज्यसभा
चुनाव के बाद और बढ़ी। यही नहीं उनका यह भी कहना था कि राहुल का मुकुल या केसी वेणुगोपाल की जगह राजीव सातव के नामांकन के लिए हामी भरना, पार्टी के लिए और महंगा पड़ा। इंडिया टुडे की खबर के अनुसार कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जारी पत्र पर पूरे देश के सभी राज्यों से करीब 100 नेता दस्तखत करने वाले थे,लेकिन आधे से ज्यादा इसमें पीछे हट गए क्योंकि उन्हें अब कार्रवाई का डर था और शायद पार्टी से निकले जाने का भी भय था, लेकिन सूत्रों के अनुसार इस पत्र में तो गांधी और नेहरू परिवार के योगदान की तारीफ की गई है, खासकर सोनिया गांधी के कार्यों की विशेष सराहना है। इसके बावजूद पत्र पर दस्तखत
करने वाले नेताओं को बागी माना जा रहा है। इसमें एक बात यह भी उभरकर सामने आई है कि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी के कई बड़े नेता इसमें शामिल होंगे,लेकिन उन्होंने दस्तखत नहीं किए और चुप्पी साध ली। वहीं कई प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों ने बागी नेताओं के इस रुख को बहुत गलत बताया। यही नहीं कांग्रेस की इस मीटिंग के बाद कुछ मुख्यमंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों ने फोन किया और माफी मांगी थी जिसमें उन्होंने अपना खेद जताया और कहा कि उक्त पत्र दिल्ली से ही भेजा गया था,लेकिन इसके पहले भी कई बार सोनिया गांधी के कार्यकाल के मध्य राहुल गांधी पर यह आरोप लगा हैं कि वे खुद पार्टी का संचालन कर रहे हैं,लेकिन वे इस बात को नकारते रहे हैं और कहते रहे हैं कि वे सिर्फ सांसद हैं और वे कोई फैसले नहीं करते,लेकिन देखने वाली बात यह है कि राजस्थान के पार्टी प्रभारी अजय माकन को राहुल गांधी की पसंद माना जाता है। यही नहीं पूर्व में हुई कुछ नियुक्तियां के पीछे राहुल गांधी का ही इशारा माना जाता है। जहाँ यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी जैसे नेता राहुल गांधी की पसंद हैं वहीं कर्नाटक के पार्टी अध्यक्ष डीके शिवकुमार और सीएलपी नेता भूपिंदर हुड्डा की नियुक्ति ही इसीलिए हुई क्योंकि वहां दूसरा कोई विकल्प भी तो नहीं था। लिहाजा इस पर राहुल गाँधी थोड़े रुष्ट भी हैं। चाहे जो हो लेकिन यह तो साफ़ हुआ है कि दबी आवाज से ही सहीं लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी में राहुल गाँधी के कार्यों में प्रश्न उठ रहे हैं और शायद इस मुद्दे पर अब पार्टी नेता और कार्यकर्ता अब दो राय भी रख रहे हैं जिसकी ताजा मिसाल दिग्विजय सिंह हैं जो इस पर प्रकाश डाल रहे हैं।


