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- भारत सरकार को मात देकर 20,000 करोड़ रुपए का रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का केस जीत लिया वोडाफोन ने....
Posted by : achhiduniya
25 September 2020
द हेग कोर्ट ने शुक्रवार को भारत सरकार के खिलाफ सुनाए गए फैसले में कहा कि भारतीय टैक्स डिपार्टमेंट ने निष्पक्ष और बराबरी से काम नहीं किया है। हेग की अदालत में वोडाफोन की तरफ से DMD पैरवी कर रही थी। भारत सरकार और वोडाफोन के बीच यह मामला 20,000 करोड़ रुपए के रेट्रोस्पेक्टिव पूर्व प्रभावी टैक्स को लेकर था। वोडाफोन और सरकार के बीच कोई सहमति ना बन पाने के कारण 2016 में कंपनी ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का रुख किया था। जहां आज उसके हक में फैसला आया है। 2007 में
वोडाफोन ने हांगकांग के हचिसन ग्रुप के मालिक हचिसन हामपोआ के मोबाइल बिजनेस हचिसन-एस्सार में 67 फीसदी हिस्सेदारी 11 अरब डॉलर में खरीदी थी। वोडाफोन ने यह हिस्सेसदारी नीदरलैंड और केमैन आईलैंड स्थित अपनी कंपनियों के जरिए ली थी। इस डील पर भारत का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वोडाफोन से कैपिटल गेन टैक्स मांग रहा था। हालांकि जब कैपिटल गेन टैक्स चुकाने पर राजी हुई तक रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स की भी मांग की गई। यानी यह डील 2007 में
हुई थी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट लगातार विदहोल्डिंग टैक्स की मांग कर रहा था। इसके बाद कंपनी ने 2012 में इस डिमांड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अपने फैसले में कहा था कि वोडाफोन ने इनकम टैक्स एक्ट 1961 को ठीक समझा है। 2007 में यह डील टैक्स के दायरे में नहीं थी तो अब इस पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि इसके बाद सरकार ने फाइनेंस एक्ट 2012 के जरिए रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लागू कर दिया। यानी सरकार ने 2012 में यह कानून बनाया कि 2007 में वोडाफोन और हचसन की डील टैक्सेबल होगी। वोडाफोन ने 3 जनवरी 2013 को कहा था कि उससे 14,200 करोड़ रुपए का टैक्स मांगा गया है। इसमें प्रिंसिपल और ब्याज था,लेकिन कोई पेनाल्टी नहीं जोड़ी गई थी। 10 जनवरी 2014 को इस फैसले को चुनौती दी और दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पा रही थी। इसके बाद 12 फरवरी 2016 को वोडाफोन को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से 22,100 करोड़ रुपए का टैक्स नोटिस मिला। साथ ही यह धमकी दी गई कि अगर कंपनी टैक्स नहीं चुकाती है तो भारत में उसकी संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी।{साभार}