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- किडनी शरीर का मुख्य अंग क्यू ....? रोग-उपचार से जुड़ी महत्व पूर्ण जानकारी...
Posted by : achhiduniya
21 September 2020
जब लम्बे समय से किसी व्यक्ति की पेशाब में प्रोट्रीन सामान्य से अधिक जाता रहता है। पेशाब करते समय पेशाब में झाग बनना दिखायी दे या पेशाब दूधिया कलर या दूध जैसी सफेद जाये। जिसके चलते उसे दिन व दिन कमजोरी महसूस होना, कमर में दर्द बने रहना, बार-बार पेशाब आना, वजन घटते जाना, पैरों में सूजन आना, पैरों में भारीपन होना जैसे लक्षण शुरुआत में दिखाई देते है। यही से वास्तविक किड़नी फेल्युअर की शुरुआत हो जाती है। व्यक्ति इन सभी को अनदेखा कर सिर्फ ताकत या कमजोरी की दवा लेता रहता
है इस तरह व्यक्ति 5-8 माह निकाल देता है। जितनी तेजी या मात्रा से प्रोट्रीन निकलता है ठीक उतनी ही तेजी से रोग की तीव्रता बढ़ती है। लम्बे समय से प्रोट्रीन लॉस (कमी) के चलते किड़नी की कार्य क्षमता कम होने लगती है,जिसके चलते किड़नी में बदलाब आने लगते है जैसे पेशाब में क्रियटिनिन कम जाना या खून से क्रियटिनिन को अलग न कर पाना, जिसके चलते क्रियटिनिन खून में ही बने रहने लगता है जिससे ब्लड सीरम में क्रियटिनिन की मात्रा बढ़ने लगती है। लम्बे समय तक ऐसा होने से धीरे धीरे किड़नी का साइज भी घटने (कम) लगता है। लोग क्रियटिनिन के बढ़ने को किड़नी फेल्युअर का मुख्य कारण मानते है जो की पूर्णत: गलत है। दवाओं से क्रियटिनिन, पोटेशियम, यूरिया कम करना या मशीन से कम करवाना किड़नी रोग का पूर्ण निदान नही है अगर किड़नी को ठीक करना है तो उसके लिये प्रोट्रीन का जाना रोकना होगा। जो कि स्थाई और सही समाधान है। सिर्फ क्रियटिनन को कम करने से किड़नी कभी भी ठीक नहीं होगी यह एक कटु सत्य है। होम्योपैथिक या आयुर्वेदिक दवाओं से पेशाब में जा रहा प्रोट्रीन बंद हो जाता है या सामान्य अवस्था में आ जाता है तब शरीर स्वंय किड़नी को हील (ठीक) करने लगता है जिससे किड़नी की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है और G.F.R. बढ़कर सामान्य (90+) की तरफ आने लगता है जिसके चलते क्रियटिनिन छनकर पेशाब के रास्ते जाने लगता है जिससे सीरम क्रियटिनिन कम या सामान्य हो जाता है अर्थात् किड़नी नॉर्मल हो जाती है। इस सम्पूर्ण हीलिंग प्रक्रिया में कम से कम 18 से 30 माह (व्यक्ति विशेष के लिये कम या ज्यादा हो सकता है) का समय हो सकता है।# किडनी फैलुअर के मुख्य कारण:- A. बी.पी. कम या ज्यादा होना। B. लम्बे समय से शुगर होना।C. लम्बे समय से थायरॉइड होना। D. जिम के समय में हाई प्रोटीन का सेवन करना। E. लम्बे समय से अंग्रेज़ी दवाओं का सेवन। F. लम्बे समय से किड़नी में पथरी का होना। G. लम्बे समय से यूरिन इंफेक्शन का होना। H. लम्बे समय से पेशाब में प्रोट्रीन का जाना। I. लम्बे समय से पुरुषों में प्रोस्टेट की समस्या। J. लम्बे समय से महिलाओं में सफेद पानी की समस्या। K. लम्बे समय से लीवर संबंधित समस्या। जिन्हे बी.पी. या शुगर या थायरॉइड की समस्या है और उन्हें हर 3 माह में यह 2 टेस्ट