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कौन-सी बातें घरेलू हिंसा या अत्याचार के दायरे में आती है क्या है महिलाओ के नैतिक अधिकार....? जाने कानूनी महत्वपूर्ण जानकारी..
Posted by : achhiduniya
29 September 2020
देश में आए दिन हो रहे महिलाओं पर अत्याचारो की घटनाओं में बडोतरी हुई है, उसे देखते हुए आपके लिए यह जानना जरूरी है की आखिर किसे अत्याचार माने किसे घरेलू हिंसा...? कोरोना काल में आम महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। कई बार कानूनी जानकारी के कमी के चलते महिलाएं चाहकर भी हिंसा के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं। घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून
(Protection of Women from Domestic Violence Act) सख्त होने के साथ-साथ सुलझे हुए भी हैं, जिनके बारे में जानना काफी मददगार हो सकता है। सबसे पहले तो जानते हैं कि आखिर घरेलू हिंसा क्या है और कौन सी बातें इसके दायरे में आती हैं। घरेलू हिंसा यानी कोई भी ऐसा काम,जो किसी महिला और बच्चे 18 वर्ष से कम आयु की लड़की या लड़का के स्वास्थ्य,सुरक्षा,जीवन पर मुश्किल लाता हो। इसमें मारपीट से लेकर मानसिक नुकसान और आर्थिक क्षति भी शामिल है। ये अधिनियम तलाकशुदा महिलाओं को भी उनके पूर्व पतियों से भी सुरक्षा प्रदान करने के इरादे से बना है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि तलाक के बाद पूर्व पति या उसके परिवार के लोग महिला या उसके परिवार को कई तरह की धमकियां देते हैं या फिरछवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। ये सारी बातें
घरेलू हिंसा के दायरे में आती हैं।# घरेलू
हिंसा की 4 श्रेणियां हैं:- इसमें शारीरिक हिंसा सबसे गंभीर समस्या है,जो कि सबसे आम भी है। किसी महिला या 18 साल के कम उम्र के
बच्चों के साथ मारपीट,धक्का देना,पैर या हाथों से मारना,किसी
वस्तु से मारपीट,या कोई भी ऐसा तरीका जो महिला को शारीरिक तकलीफ
दे। इस श्रेणी में आने वाली हिंसा है। एक और श्रेणी है लैंगिक हिंसा। महिला को
अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना,बलात्कार करना,दुर्व्यवहार करना,अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक
प्रतिष्ठा को आहत करना इसके अंतर्गत आता है। आर्थिक हिंसा भी एक गंभीर परेशानी है।
इसके तहत बच्चों की पढ़ाई, खाना-कपड़ा और सेहत के लिए धन न
उपलब्ध कराना,रोजगार चलाने से रोकना, महिला
द्वारा कमाए जा रहे पैसे का हिसाब उसकी मर्जी के खिलाफ लेना, जैसी बातें शामिल हैं। अब बात करते हैं मौखिक और भावनात्मक
हिंसा की। ये कैटेगरी सबसे फैली हुई है। कई बार अपराध सह रही महिला को अंदाजा भी
नहीं होता है और तानों से उसका आत्मसम्मान खत्म हो जाता है। इसके तहत किसी भी वजह
से उसे अपमानित करना,उसके चरित्र पर दोषारोपण लगाना, शादी मर्जी के खिलाफ करना, आत्महत्या
की धमकी जैसी बातें आती हैं।# कौन ले सकता है कानून की मदद:-
घरेलू हिंसा कानून काफी समझ-बूझकर बनाया गया है। इसमें बारीकियों का ध्यान रखा गया
ताकि किसी भी
श्रेणी में आने वाली महिलाएं इससे बाहर न छूट जाएं। जैसे घरेलू संबंध
सिर्फ पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के संबंध नहीं,बल्कि
इसके तहत मां,बहन,बेटी,भाभी जैसे रिश्ते भी आते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो इसमें वे
सारे रिश्ते आते हैं,जिसमें वर्तमान में दो लोग एक
साथ रहते हैं या अतीत में घर साझा कर चुके हों। हिंसा की शिकायत सिर्फ पीड़िता ही
नहीं, बल्कि उसका कोई जाननेवाला भी कर सकता है।# कौन कर सकता है शिकायत:- घरेलू हिंसा के सभी पहलुओं को देखते
हुए ये तय
किया गया कि हिंसा की शिकायत सिर्फ पीड़िता ही नहीं, बल्कि उसका कोई जाननेवाला भी कर सकता है। पीड़ित महिला की ओर से
कोई भी व्यक्ति,फिर चाहे वो रिश्तेदार हो,पड़ोसी या फिर दोस्त,शिकायत
दर्ज करवा सकता है। यहां तक कि घटना के बारे में सुन चुके या देख चुके लोग और
सामाजिक कार्यकर्ता भी इसकी शिकायत कर सकते हैं,जो
पीड़िता की शिकायत की तरह ही ली जाएगी अगर किसी को यह अंदेशा है कि किसी महिला पर
घरेलू हिंसा की जा सकती है तो इसकी भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। # क्या राहत मिल सकती हैं:- इस
अधिनियम की शुरूआत साल 2005 में
हुई और 26 अक्टूबर 2006 को इसे लागू किया गया। पीड़िता इस कानून के तहत किसी भी
तरह की राहत मांग सकती है,जिसमें शारीरिक हिंसा रोकने से
लेकर आर्थिक मदद शुरू करने जैसी कई बातें शामिल हैं। साथ ही पीड़िता चाहे तो
भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रिमिनल याचिका भी
दायर कर सकती है, जिसके साबित होने पर दोषी को तीन साल तक की जेल हो
सकती है। चूंकि घरेलू हिंसा की शिकार महिला पहले से ही काफी परेशानियां झेल चुकी
होती है, ऐसे में उसे कानूनी मदद दिलवाने की जिम्मेदारी सरकार की होती
है। साथ ही साथ उसे रहने के लिए ठिकाना देना और चिकित्सकीय मदद अगर जरूरत हो भी
सरकारी जिम्मेदारी है। इसके लिए सोशल वर्कर मदद करते हैं।