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- वैवाहिक बलात्कार पर चली बहस दिल्ली हाईकोर्ट में क्या निकला निष्कर्ष...?
Posted by : achhiduniya
15 January 2022
दिल्ली हाई कोर्ट में
दलील दी कि जब पति अपनी पत्नी पर जबरदस्ती करता है, तो
निश्चित रूप से वो प्रेम नहीं कर रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को
न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किया गया है। मामले में न्यायमूर्ति राजीव शकधर और
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की खंडपीठ सुनवाई कर रही है। ये खंडपीठ वैवाहिक बलात्कार
के अपराधिकरण से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। न्यायमित्र राव ने सुप्रीम
कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी महिला प्यार करने के लिए मजबूर
नहीं कर
सकता। उन्होंने कहा कि ये सिद्धांत कि कोई भी महिला को प्यार करने के लिए
मजबूर नहीं कर सकता आईपीसी की धारा 375 की
नींव है,लेकिन अपवाद के लिए जब एक पति अपनी
पत्नी को मजबूर करता है, तो निश्चित रूप से वो प्यार
करने में शामिल नहीं होता है। बलात्कार संबंधी कानून के तहत पतियों के मामले में
अपवाद को खत्म करने का समर्थन करते हुए एक न्यायमित्र ने शुक्रवार को दिल्ली हाई
कोर्ट के समक्ष प्रश्न रखा कि क्या यह उचित है कि आज के जमाने में एक पत्नी
को
बलात्कार कहने के अधिकार से वंचित किया जाए और उसे इस कृत्य के लिए अपने पति के
खिलाफ क्रूरता के प्रावधान का सहारा लेने को कहा जाए? वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली
अर्जियों पर फैसला लेने में न्यायालय की मदद करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त किए
गए वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि कोई यह नहीं कहता कि पति को कोई अधिकार
नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि क्या उसे उक्त प्रावधान के तहत कानून की
कठोरता से बचने का अधिकार है या क्या वह मानता है कि कानून उसे छूट देता है या उसे
मामले में जन्मसिद्ध अधिकार है। भारतीय दंड संहिता
की धारा 375 (बलात्कार) के तहत प्रावधान किसी व्यक्ति द्वारा उसकी पत्नी के
साथ शारीरिक संबंधों को बलात्कार के अपराध से छूट देता है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 साल से
अधिक हो। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष
उन्होंने दलील दी कि अगर प्रावधान यही संदेश देता है तो क्या यह किसी पत्नी या
महिला के अस्तित्व पर मौलिक हमला नहीं है? उन्होंने
कहा कि क्या कोई यह दलील दे सकता है कि यह तर्कसंगत, न्यायोचित
और निष्पक्ष है कि
किसी पत्नी को आज के समय में बलात्कार को बलात्कार कहने के
अधिकार से वंचित किया जाना चाहिए बल्कि उसे आईपीसी की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत राहत मांगनी चाहिए। सुनवाई
में न्यायमूर्ति हरिशंकर ने कहा कि प्रथमदृष्टया उनकी राय है कि इस मामले में
सहमति कोई मुद्दा नहीं है। मामले में सुनवाई 17 जनवरी
को जारी रहेगी। {साभार}