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- बीआईएस की बाध्यता क्या फुटवियर व्यापार को कर देगी चौपट....?
Posted by : achhiduniya
04 June 2022
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर निर्माता
है। पूरे भारत में फैली दस हजार से ज्यादा निर्माण इकाइयां और लगभग 1.5 लाख
फुटवियर व्यापारी 30 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं जिनमें ज्यादातर
फुटवियर बेहद सस्ते और पैरों की केवल सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं। मकान और कपडे
की तरह फुटवियर भी एक जरूरी वस्तु है जिसके बिना कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता है।
इसमें बड़ी आबादी घर में काम करने वाली महिलाएं, मजदूर, छात्र एवं आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न वर्ग के लोग हैं।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत देश के फुटवियर निर्माताओं और
व्यापारियों को बीआईएस की बाध्यता से फिलहाल एक वर्ष के लिए टाल दी है। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री
प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि फुटवियर व्यापार के सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय
संगठन इंडियन फुटवियर एसोसिएशन ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को विश्वास दिया है कि बेशक बीआईएस की
बाध्यता न हो लेकिन फिर भी देश भर में फुटवियर निर्माता अच्छी गुणवत्ता का सामान
बनाएंगे जिससे भारत के फुटवियर उत्पादों का दुनिया भर में
बड़ी मात्रा में निर्यात
हो सके। केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के जरिए फुटवियर व्यापारियों और
निर्माताओं पर बीआईएस मानकों की बाध्यता के आदेश को 1 वर्ष के लिए स्थगित किया है।
अधिसूचना के मुताबिक अब यह आदेश देश में 1 जुलाई से लागू होगा। इसी क्रम में कल
कैट के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष विवेक जौहरी
से भी मुलाकात कर फुटवियर पर 5 फीसदी जीएसटी कर लगाने की जोरदार वकालत की है। भारतीय
और खंडेलवाल ने बताया
कि भारत में 85 फीसदी
फुटवियर का उत्पादन बड़े पैमाने पर छोटे और गरीब लोगों द्वारा किया जाता है या घर
में चल रहे उद्योग एवं कुटीर उद्योग में किया जाता है। इस वजह से भारत में फुटवियर
निर्माण के बड़े हिस्से पर बीआईएस मानकों का पालन करना बेहद मुश्किल काम है। देश
की 60 फीसदी आबादी 30 रुपये से 250 रुपये की कीमत के फुटवियर पहनती है वहीं लगभग 15 फीसदी आबादी रुपये 250 से
रुपये 500 की कीमत के फुटवियर का इस्तेमाल करती और 10 फीसदी लोग 500 रुपये से 1000 रुपये तक के जूते का उपयोग करते हैं। शेष 15 फीसदी लोग बड़ी
फुटवियर कंपनियों या आयातित ब्रांडों द्वारा
निर्मित चप्पल, सैंडल या जूते खरीदते हैं। भारत में फुटवियर के
निर्माण में क्योंकि 85 फीसदी निर्माता बहुत छोटे
पैमाने पर निर्माण करते हैं एवं निर्माण की बुनियादी जरूरतों से भी महरूम हैं
इसलिए उनके लिए सरकार द्वारा फुटवियर के लिए निर्धारित बीआईएस मानकों का पालन करना
असंभव होगा। साधू संतों की खड़ाऊं, पंडितों द्वारा उपयोग की जाने
वाली चप्पल,
मजदूरों द्वारा पहने जाने वाले रबड़ और प्लास्टिक
के फुटवियर पर क्या बीआईएस मानकों का पालन संभव है, इस पर
विचार करना बहुत जरूरी है। इन मानकों का पालन केवल बड़े स्थापित निर्माताओं या
आयातित ब्रांडों द्वारा ही किया जा सकता है। भारत विविधताओं का देश है जहां गरीब
तबके, निम्न या मध्यम वर्ग, उच्च
मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के लोगों के विभिन्न वर्ग अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार
विभिन्न प्रकार के फुटवियर पहनते हैं, ऐसी
परिस्थितियों में केवल एक लाठी से सबको हांकना फुटवियर उद्योग के साथ बड़ा अन्याय
होगा।{साभार}