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मुस्लिमों में निकाह हलाला व चार पत्निया रखने {बहुविवाह} पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ करेगी सुनवाई...
Posted by : achhiduniya
30 August 2022
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की 27 वर्षीय फरजाना ने
बहु विवाह और हलाला को असंवैधानिक करार देने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट
में दायर की है। इससे पहले भी बहुविवाह
और हलाला के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं और इस मामले की सुनवाई सुप्रीम
कोर्ट की संविधान पीठ को करनी है। हलाला के तहत तलाकशुदा महिला को अपने पति के साथ
दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है। दूसरे पति
जब तलाक देगा तभी वह महिला अपने पहले पति से निकाह कर सकती है, जबकि
बहुविवाह नियम मुस्लिम पुरुष को चार पत्नी रखने की इजाजत
देता है। सुप्रीम कोर्ट ट्रिपल तलाक के बाद अब मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह
हलाला पर समीक्षा करेगा। बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम
कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र, NCW, राष्ट्रीय
अल्पसंख्यक आयोग और NHRC से जवाब मांगा। इस मामले पर
पांच जजों की पीठ दशहरे के बाद सुनवाई करेगी। 9 याचिकाओं
पर नोटिस जारी किया गया। याचिकाकर्ता और तीन बच्चों की मां समीना बेगम दो बार तीन
तलाक
का शिकार हो चुकी हैं। याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत)
आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को
संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है। साथ ही
भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से
लागू हो। याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498 A के तहत एक
क्रूरता है। निकाह-हलाला
आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि कुरान में बहुविवाह
की इजाजत इसलिए दी गई है,ताकि उन महिलाओं और बच्चों की
स्थिति सुधारी जा सके, जो उस समय लगातार होने वाले
युद्ध के बाद बच गए थे और उनका कोई सहारा नहीं था पर इसका मतलब
यह नहीं है कि इसकी
वजह से आज के मुसलमानों को एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस मिल गया है। याचिका
में उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों और उन देशों का भी जिक्र किया गया है, जहां बहुविवाह पर रोक है। समीना ने कहा है कि सभी तरह के पर्सनल
लॉ का आधार समानता होनी चाहिए, क्योंकि संविधान महिलाओं के
लिए समानता,
न्याय और गरिमा की बात कहता है।
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