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- एक्सपायर कंडोम देने पर कंपनी के खिलाफ केस, जाने रोचक कहानी रबर बैंड की...
Posted by : achhiduniya
17 October 2022
देश में सेक्स को लेकर बहुत ही भ्रांतिया फैली है
वही कंडोम बेचना व खरीदना समाज में आज भी ओछे काम के रूप में देखा जाता है। फिल्मकार ने दवा कंपनियों व डाक्टरो की मिलीभगत का सूंदर चित्रण
किया है। दवा कंपनियां किस तरह डॉक्टरों को कमीशन देकर आम लोगों की जिंदगी में उथल
पुथल लाने व उनकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करती है,इसे
हल्के फुल्के ढंग से मगर बेहतरीन तरीके से उकेरा गया है। फिल्म इस बारे में भी बात
करती है कि दवा कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए किस तरह एक्सपायरी डेट वाली
दवाएं बाजार तक पहुंचाती हैं। इसमें डॉक्टर, मेडिकल
स्टोर वाले और दवा कम्पनी से जुड़े लोग किस तरह शामिल होते हैं,इसका बेहतरीन चित्रण है। कहानीः- फिल्म
की कहानी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद अपने पिता चैधरी साहब की दुाकन
संभालने वाले आकाश (मनीष रायसिंघन) के इर्द गिर्द घूमती है। जिसके दोस्त नन्नो वकालत पास करने के बावजूद पिता
की दवा
की दुकान पर बैठता है। नन्नो अपनी दुकान पर कंडोम को रबरबैंड के नाम
से बेचता है,जिससे कोई भी लड़का बिना हिचक से खरीद सके। आकाश को अपने अमीर पिता के साथ रह रही काव्या (अविका गोर) से प्यार
हो जाता है। दोनों की नोकझोंक के बाद दोस्ती, प्यार
और फिर शादी होती है। दोनों अभी बच्चा नही चाहते हैं। इस बात से आकाश के माता पिता भी सहमत हैं। अब
आकाश
सुरक्षा के लिए अपने दोस्त नन्नो की दुकान पर कंडोम खरीदने जाता है,मगर वहां नन्नो की जगह
उनके पिता बैठे होते हैं। झिझक के साथ वह कंडोम/ रबरबैंड खरीदकर लाता है। कहानी में मोड़ उस समय आता है,जब आकाश द्वारा कंडोम का इस्तेमाल करने के बावजूद काव्या
गर्भवती हो जाती है। क्योंकि कंडोम फट गया था। इससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल
मच जाती है.मगर सच जाने बगैर आकाश के मन में शक पैदा होता है कि काव्या के करीबी
दोस्त रोहन (रोमिल चैधरी) का इस मामले में हाथ है. आकाश उस पर बेवफाई का इल्जाम
लगाता
है तो काव्या नाराज होकर और गुस्से में अपने मायके चली जाती है। बाद में जब
आकाश को एहसास होता है कि खराब और एक्सपायरी डेट वाला कंडोम होने के कारण वह
सुरक्षा देने में सफल नहीं हुआ था,तब आकाश
कंडोम बनाने वाली कंपनी ‘वी केअर’ पर अदालत में मुकदमा दर्ज करवाता है। यहां से फिल्म की एकदम नई
कहानी शुरू होती है। इस केस को उसका करीबी दोस्त नन्नो (प्रतीक गांधी) ही लड़ता है।
जबकि बचाव पक्ष की वकील सबसे विख्यात एडवोकेट करुणा राजदान (अरूणा ईरानी) होती है, जो अब तक एक केस भी नहीं हारी,जहां
मजेदार बहस के साथ ही हर इंसान के अंदर एक जागरूकता
लाने वाली बहस होती है। आकाश द्वारा अदालत के अंदर जज से
पूछे गए सवाल के चलते हर इंसान बहुत कुछ सीख सकेगा। बहरहाल,जज कंडोम बनाने
वाली कंपनी को दोषी ठहराते हैं। एक महिला होते हुए भी सारिका संजोत ने महिलाओं की
सुरक्षा व उनके स्वास्थ्य के हित को ध्यान में रखकर इस तरह के विषय पर फिल्म बनायी
है। फिल्मकार सारिका संजोत की बतौर लेखक व निर्देषक यह पहली फिल्म है। महिला होते
हुए भी पहले प्रयास में ही एक
बोल्ड विषय को उठाकर उन्होने साहस का परिचय दिया है।
मगर इसकी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा व संवाद हैं। फिल्म के कुछ संवाद अषेभनीय हैं। मसलन
-अदालत के अंदर अपनी वरिष्ठ वकील अरूणा ईरानी से प्रतीक गांधी से बातचीत के संवाद
अति अषोभनीय हैं,लेकिन कंडोम खरीदने वाला छिछोरा नहीं बल्कि
जेंटलमैन होता है। अथवा काव्या है,तभी तो
कांफिडेंस है। जैसे कुछ संवाद अवष्य फिल्म के संदेष को आगे बढ़ाते हैं। फिल्म की
गति काफी धीमी है। मगर उन्होने सुरक्षित सेक्स पर चर्चा के महत्व को भी उकेरा है। निर्माताः सारिका संजोत,सहनिर्माताः नरेश दुदानी,लेखक व
निर्देशकः-सारिका संजोत,कलाकारः-मनीष रायसिंघन, अविका गोर,प्रतीक गांधी,राजेष जैस,अरूणा ईरानी, पेंटल, गौरव गेरा व अन्य,फिल्म अवधिः दो घंटे।
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