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- RO फिल्टर की इस हकीकत को जान कर RO वॉटर पीना छोड़ देंगे आप...
Posted by : achhiduniya
12 November 2022
RO {रिवर्स ऑस्मोसिस} तकनीक पर हमेशा ये संशय बना रहा है कि ये पानी से जरूरी मिनरल जैसे
कैल्शियम और मैग्निशियम को भी खत्म कर डालता है।
साथ ही पानी की सफाई के प्रोसेस में होने वाली बर्बादी के लिए भी ये तकनीक
सवालों के घेरे में रही है। आरओ पानी साफ करने के चक्कर में 80 फीसदी तक पानी को बेकार बहा देता है। रिवर्स ऑस्मोसिस {RO} तकनीक पानी की अशुद्दियों को साफ करने में सबसे अच्छी है,यही मानकर हर घर में आरओ तो लग गए,लेकिन इतने सालों
में में आरओ सिस्टम खुद की अशुद्दियों से पार नहीं पा सका। 1970 में 10 साल तक एक स्टडी करने के बाद 1980 में विश्व स्वास्थय संगठन ने भी पूरी तरह मिनरल मुक्त पानी
को नुकसानदेह
ही माना था। यहां डब्लूएचओ ने 300 एमजी प्रति लीटर से कम
टीडीएस वाले पानी को पीने के लिहाज से उत्तम क्वालिटी माना है। आपको बताते हैं कि
आरओ वाटर यानी डी-मिनरलाइज़ड वाटर क्या होता है–डिस्टीलेशन,
डी-आयोनाइजेशन और मेम्ब्रेन फिल्टरेशन जैसी प्रक्रियाओं से गुज़रने
के बाद पानी मिनरल से मुक्त हो जाता है। नैनो फिल्टरेशन और इलेक्ट्रो डायलिसिस
जैसी अलग अलग तकनीकों से लैस आरओ यानी रिवर्स ऑस्मोसिस तकनीक से गुजर कर निकले
पानी में बहुत से मिनरल नहीं होते।
पीने लायक पानी को वेदों में भी परिभाषित किया
गया है। रिग्वेद के हिसाब से पानी शीतलम यानी ठंडा, सुशीनी
यानी साफ और सिवम यानी उसमें ज़रुरी खनिज लवण होने चाहिए और पानी इश्टम यानी
पारदर्शी होना चाहिए। पानी विमलम लहु शद्गुनम यानी सीमित मात्रा के एसिड बेस के
साथ होना चाहिए यानी जरूरी नहीं कि हर घर में नल से सप्लाई हो रहे पानी को आरओ ही
शुद्द कर सकता है। आरओ बनाने वाली कंपनियों के प्रतिनिधि ने वाटर क्वालिटी इंडियन
एसोसिएशन के सदस्यों ने दलील दी कि देश के 13 राज्यों के 98 ज़िले ऐसे हैं जहां पानी को आरओ तकनीक से ही पीने योग्य बनाया जा सकता
है,लेकिन ये उन्होंने भी माना कि पानी को शुद्ध करने के प्रोसेस में 80 प्रतिशत पानी बर्बाद चला जाता है और 20 फीसदी ही
पीने के लिए बचता है। जल संकट को झेल रही दुनिया में ऐसी तकनीक पर सवाल उठने
लाज़मी हैं जो रोजाना पानी बर्बाद कर रही हो। वैसे अब एनजीटी के ताज़ा आदेश में इस
तथ्य पर मुहर लग गई है कि हर पानी को साफ करने के लिए आरओ ज़रुरी नहीं है। नेशनल
ग्रीन
ट्राइब्य़ूनल यानी एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिए कि जहां पानी
में टीडीएस की मात्रा 500 एमजी प्रति लीटर से कम हैं,वहां आरओ के इस्तेमाल पर बैन लगाए और लोगों को डीमिनरल्जाइज़ड पानी के
नुकसान के प्रति जागरुक भी करे।
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