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- हम सबसे पारदर्शी संस्थान हैं,कॉलेजियम को अपना काम करने दें... सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
Posted by : achhiduniya
02 December 2022
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन
गोगोई की आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' के
अनुसार, राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रदीप
नंदराजोग और दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र मेनन के
नाम 12 दिसंबर, 2018 को कॉलेजियम की बैठक में सुप्रीम कोर्ट में
पदोन्नति के लिए मंज़ूरी मिली थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने जुलाई 2022 में आरटीआई
अधिनियम के तहत 12 दिसंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट
कॉलेजियम की बैठक के एजेंडे, ब्योरे और प्रस्ताव की मांग
वाली अपील को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में आवेदक, आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज को जानकारी देने से इनकार
कर
दिया था। इसके बाद वो दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची थीं। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र
शर्मा और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने कहा कि 10 जनवरी, 2019 के कॉलेजियम के प्रस्ताव का एक अवलोकन इंगित करता है कि 12
दिसंबर, 2018 को कॉलेजियम की बैठक सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति पर
विचार करने के लिए हुई थी। साथ ही हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के ट्रांसफर के अन्य
प्रस्तावों पर विचार होना था।कॉलेजियम के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम
टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो सिस्टम काम कर रहा है, उसे पटरी से न उतरने दें।
कॉलेजियम को अपना काम करने दें। हम
सबसे पारदर्शी संस्थान हैं। कॉलेजियम के पूर्व सदस्यों का अब फैसलों पर टिप्पणी
करना फैशन हो गया है। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने ये
टिप्पणी आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की याचिका पर की। अंजलि भारद्वाज ने
दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें आरटीआई कानून के तहत 12 दिसंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक के एजेंडे, ब्योरे और प्रस्ताव की मांग
वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश प्रशांत भूषण ने कहा, क्या कॉलेजियम के फैसले आरटीआई के तहत जवाबदेह हैं? यही सवाल है। क्या इस देश के लोगों को जानने का अधिकार नहीं है? कोर्ट ने ही कहा था कि आरटीआई मौलिक अधिकार है। अब सुप्रीम
कोर्ट पीछे हट रहा है। जस्टिस शाह ने जवाब दिया, उस
कॉलेजियम की बैठक में कोई प्रस्ताव पास नहीं हुआ। हम पूर्व सदस्यों द्वारा की गई
किसी भी बात पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। अब कॉलेजियम के पूर्व सदस्यों का
फैसलों पर टिप्पणी करना फैशन हो गया है। हम सबसे पारदर्शी संस्थान हैं। हम पीछे
नहीं हट रहे हैं। बहुत से मौखिक फैसले लिए जाते हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने
फैसला सुरक्षित रख लिया।
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