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- "छतरीवाली” उर्फ कंडोमवालीयानी गर्भ निरोधक-अनचाहे गर्भ पर आधारित फिल्म जाने कहानी....
Posted by : achhiduniya
20 January 2023
निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर की फिल्म छतरीवाली कहानी हरियाणा के करनाल शहर की है। साइंस
पढ़ी सान्या ढींगरा (रकुल प्रीत सिंह) को नौकरी की तलाश है। वह ट्यूशन पढ़ा कर घर
चला रही है। मां मोहल्ले के लड़कों के साथ जुआ-सट्टा लगा कर पैसा बनाने के चक्कर
में रहती है। सान्या को कंडोम बनाने वाली कंपनी में कंडोम टेस्टर की नौकर मिल जाती
है। इसी बीच उसे शहर में पूजा-पाठ के सामान की दुकान चलाने वाले ऋषि (सुमित व्यास)
से प्यार होता है। शादी होती है। अब कहानी इस घर में शिफ्ट हो
जाती है। जहां ऋषि
के बड़े भाई,
भाई जी (राजेश तैलंग) बायलॉजी टीजर हैं, मगर सोच में दकियानूसी। भाई की पत्नी चार बार गर्भपात करा चुकी
है। हमेशा बीमार रहती है। यहीं से सान्या और भाई जी आमने-सामने आ जाते हैं। बड़ों
को लिए कंडोम और बच्चों के लिए यौन शिक्षा जरूरी है। छतरीवाली कॉमिक ट्रेक पर चलने
की कोशिश करती है, लेकिन हंसाने वाले कोई बड़े मौके यहां नहीं हैं।
बल्कि कंडोम को लेकर होने वाली झिझक से जुड़े कुछ सीन कॉमेडी पैदा
करने की कोशिश
करते हैं। सतीश कौशिक कंडोम कंपनी के मालिक की भूमिका में अलग नजर आते हैं। उनका
अंदाज आकर्षक है। राजेश तैलंग कहानी को गंभीर ट्रेक पर बनाए रखते हैं। सुमित व्यास लगातार रकुल प्रीत सिंह को सपोर्ट
करते खड़े रहते हैं। भाई जी की पत्नी के रूप में प्राची शाह और बेटी के रूप में
रीवा अरोड़ा के किरदार अहम हैं, और उन्होंने इन्हें अच्छे से
निभाया है। रकुल कहानी का नेतृत्व करती हैं और उन्होंने अपना काम बिना लाउड हुए
सहज ढंग से किया है। इस
फिल्म को देखते हुए आपको पिछले साल आई फिल्म जनहित में
जारी याद आती है क्योंकि उसकी स्टोरी लाइन भी इससे काफी मिलती जुलती है,लेकिन यौन शिक्षा का मुद्दा उठाते हुए छतरीवाली अपना रास्ता अलग
बनाती है। छतरीवाली इस बात पर जोर देती है कि कंडोम का इस्तेमाल अनचाहे गर्भ और
स्त्री के स्वास्थ्य के लिहाज से जरूरी है और इसकी जिम्मेदारी पुरुष को उठानी
चाहिए। सान्या पूरे मोहल्ले की स्त्रियों को अपने इस मिशन में जोड़ती है कि पति
कंडोम इस्तेमाल नहीं करते, तो उन्हें नजदीक आने से रोकें।
इसका दूसरा पक्ष भी कहानी में दिखता है और दांव पलट जाता है। जो स्त्रियों की
असुरक्षा दिखाता है। कंडोम के समानांतर फिल्म यौन शिक्षा को मुद्दा बनाती है। बायोलॉजी
टीचर प्रजनन यानी रीप्रोडक्शन का अध्याय सिर्फ लड़कों को पढ़ाता है। वह भी सिर्फ
पुरुष अंग के बारे में लड़कियों को अध्यापिका पढ़ाती है, केवल स्त्री अंगों के बारे में वजह यह कि परीक्षा में इस पाठ का
सवाल वैकल्पिक रहेगा,लेकिन जीवन तो दोनों के मिलने
से चलता है। अतः अनजान बने रहना हल नहीं है। एक लिहाज से यह जरूरी फिल्म है। जिसे
देखना चाहिए। यौन विषय से जुड़ी होने के बावजूद फिल्म में न तो ऐसे दृश्य हैं, जो असहज करें,न ही कानों में खटकने वाले
संवाद। निर्देशकः तेजस प्रभा विजय देओस्कर। सितारेः रकुल प्रीत सिंह, सुमित व्यास, सतीश कौशिक, डॉली अहलूवालिया, राजेश
तैलंग, राकेश बेदी, प्राची शाह, रीवा अरोड़ा।
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