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- योग-युक्त रहकर ही हम रोग-मुक्त रह सकते हैं..राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का सम्बोधन
Posted by : achhiduniya
10 February 2023
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 10 फरवरी 2023 भुवनेश्वर
में ज्ञानप्रभा मिशन के स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया और उसे संबोधित किया। सभा
को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि वह
ज्ञानप्रभा मिशन के स्थापना दिवस समारोह का हिस्सा बनकर खुश हैं, जो मां की शक्ति और क्षमता को जगाने और एक स्वस्थ मानव समाज के
निर्माण के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है
कि इस मिशन का नाम परमहंस योगानंद जी की मां के नाम पर रखा गया है जो उनकी प्रेरणा
थीं। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे ऋषियों ने हमें माता, पिता, गुरु और अतिथि को भगवान के
समान मानना सिखाया,लेकिन क्या हम इस
शिक्षा को
अपने जीवन में अपनाते हैं? यह एक बड़ा सवाल है। क्या
बच्चे अपने माता-पिता की उचित देखभाल कर रहे हैं? अक्सर
अखबारों में बुजुर्ग माता-पिता की दुखभरी कहानियां छपती हैं। उन्होंने कहा कि
माता-पिता को भगवान कहना और उनके चित्रों की पूजा करना ही अध्यात्म नहीं है।
माता-पिता का ख्याल रखना और उनका सम्मान करना जरूरी है। उन्होंने सभी से वरिष्ठ
नागरिकों, बुजुर्गों और बीमारों की सेवा को अपने जीवन-व्रत के रूप में
अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह मानव धर्म है। इस तथ्य को
ध्यान में
रखते हुए कि ज्ञानप्रभा मिशन क्रिया योग को
लोकप्रिय बनाने में सक्रिय है। राष्ट्रपति ने कहा कि योग का कोई भी रूप हो-योग भारत का एक
प्राचीन विज्ञान और आध्यात्मिक अभ्यास है। जिसका
उद्देश्य एक स्वस्थ मानव समाज का निर्माण करना है। स्वस्थ जीवन के लिए इलाज से
बेहतर बचाव है। अगर हम योग-युक्त (योग से जुड़े) रहते हैं, तो हम रोग-मुक्त (बीमारियों
से मुक्त) रह सकते हैं। योग के माध्यम से हम स्वस्थ शरीर और शांत मन प्राप्त कर
सकते हैं। आज की दुनिया में भौतिकवादी खुशी पहुंच से बाहर नहीं है, लेकिन मन की शांति बहुतों की पहुंच से परे हो सकती है।
उनके लिए
योग ही मन की शांति पाने का एकमात्र तरीका है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी
भौतिकवादी अपेक्षाएं और आकांक्षाएं बढ़ रही हैं, लेकिन
हम धीरे-धीरे अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष से दूर होते जा रहे हैं। पृथ्वी के
संसाधन सीमित हैं, लेकिन मनुष्य की इच्छाएं असीमित हैं। वर्तमान
विश्व प्रकृति के असामान्य व्यवहार को देख रहा है जो जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के
तापमान में वृद्धि में परिलक्षित होता है। हमारी आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित
भविष्य देने के लिए प्रकृति के अनुकूल जीवन शैली आवश्यक है। भारतीय परंपरा में, ब्रह्मांड एक और अभिन्न है। मनुष्य इस ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा
अंश मात्र है। हमने विज्ञान में चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो, हम प्रकृति के मालिक नहीं, उसकी
संतान हैं। हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। हमें प्रकृति के अनुरूप जीवन
शैली अपनानी चाहिए।
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