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- न्यायालयों में 5.02 करोड़ से अधिक मामले लंबित क्यू..? संसद में कानून मंत्री ने बताई वजह..
Posted by : achhiduniya
26 July 2023
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल
ने राज्यसभा को बताया,इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम
[ICMIS] से
प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 1 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 69,766 मामले लंबित हैं. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड [NJDG] पर मौजूद जानकारी के मुताबिक 14 जुलाई तक हाई कोर्ट में 60,62,953 और जिला और
अधीनस्थ अदालतों में 4,41,35,357 मामले लंबित हैं। मेघवाल ने राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा है कि देश की
अलग-अलग अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं। कानून
मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट,
25 हाई कोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों में 5.02 करोड़ से अधिक मामले
लंबित हैं। मिड डे की खबर के मुताबिक
सॉलिसिटर स्तुति गालिया ने मामलों के
लंबित होने के कई कारणों को बताया। इसमें न्यायाधीशों की कमी, लंबी प्रक्रियात्मक और तकनीकी आवश्यकताएं, न्यायाधीशों का बार-बार स्थानांतरण और संसाधनों और बुनियादी
ढांचे की कमी शामिल है। इसके अलावा कई मामलों में, नियामक /
सरकारी विभाग शिकायतों को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में नाकामयाब रहते हैं। इससे इन विभागों के खिलाफ या उनसे जुड़े बड़ी संख्या में मामले
लंबित हो जाते हैं। गलिया ने इस बात पर जोर दिया कि अगर नियामक/सरकारी विभाग प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों को निभाते
हैं तो नागरिकों को अदालतों का दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं होगी, और इस तरह न्यायपालिका पर बोझ कम हो जाएगा।
कानून मंत्री का
कहना है कि अदालतों में मामलों के लंबित होने के लिए कई कारकों को जिम्मेदार
ठहराया जा सकता है। पर्याप्त संख्या में
जजों और न्यायिक अफसरों की अनुपलब्धता, अदालत के
कर्मचारियों और कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, साक्ष्यों
का न जुटाया जाना, बार, जांच एजेंसियों, गवाहों और
वादियों जैसे हितधारकों का सहयोग भी शामिल है। मामलों के निपटान में देरी की एक
वजह अलग-अलग तरह के मामलों के निपटान के लिए संबंधित अदालतों की तरफ से निर्धारित
समय सीमा की कमी, बार-बार मामले में सुनवाई का टलना
और सुनवाई के लिए मामलों की निगरानी, लंबित
मामलों को ट्रैक करने की व्यवस्था की कमी भी देरी में अहम भूमिका निभाती है।
सरकार
ने कहा कि अदालतों में मामले के निपटान के लिए पुलिस, वकील, जांच एजेंसियां और गवाह किसी भी
मामले में अहम किरदार और मदद पहुंचाते हैं। इन्ही किरदारों या सहयोगियों द्वारा
सहायता प्रदान करने में देरी से मामलों के निपटान में भी देरी की वजह बनती है। मिड
की खबर के मुताबिक जानकारों का कहना है कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कई
समाधान पेश किए गए हैं। सबसे पहले ज्यादा अदालतों की स्थापना करना जरूरी है। ज्यादा
न्यायाधीशों की नियुक्ति करना भी एक तरीका है। संरचनात्मक संशोधन और नए सिस्टम की
जरूरत है। इसके अलावा कई अदालतों में अभी भी आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण की कमी है, जिससे पूरा सिस्टम फेल हो जाता है। जानकारों का ये कहना है कि
कई बार न्यायाधीश पूर्व सूचना के बावजूद नहीं बैठते है। नतीजतन पूरे बोर्ड को
छुट्टी दे दी जाती है, वकीलों और वादियों सहित शामिल सभी
पक्षों के लिए समय का बड़ा नुकसान होता है। वहीं कोर्ट में रिक्तियों को लंबे समय
से नहीं भरा गया है। देश भर में कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की भी जरूरत
है। न्यायालयों के कामकाज को बुनियादी ढांचा प्रदान करना और गुणवत्तापूर्ण बनाना
भी जरूरी है।
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