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- MSP गैरंटी के साथ WTO से बाहर करने की मांग पर अड़े किसान,जाने क्या है WTO…?
Posted by : achhiduniya
26 February 2024
किसानों के आंदोलन करने के पीछे का मकसद ही यही है कि उन्हें
MSP, फसलों की
खरीद और पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम को लेकर कानूनी गारंटी दी जाए। वहीं भारत
साल 1995 से ही विश्व
व्यापार संगठन (WTO) का
सदस्य और WTO के नियम
किसानों की मांग से बिल्कुल उलट हैं। यही कारण है कि किसान चाहते हैं कि भारत WTO से बाहर आकर MSP से
जुड़ी उनकी मांगों को मान ले। आंदोलन कर रहे किसानों का कहना है कि सरकार को फ्री
ट्रेड एग्रीमेंट भी रद्द कर देने चाहिए ताकि उसे भारत के किसी भी किसानों को अन्य
देश या संगठन की शर्तों के आगे झुकना न पड़े। जब भारत WTO में शामिल हुआ था उसी वक्त तय कर लिया गया था कि वह अपने देश
में MSP तय करने
की कोई गारंटी नहीं देगा। इसके अलावा, WTO में
शामिल होने की और भी कई शर्तें होती हैं जिन्हें सभी सदस्य देशों को स्वीकार करना
होता है। WTO दो देशों
के बीच व्यापार की प्रक्रिया को आसान बनाने का काम करता है। साथ ही यह
व्यापार से
जुड़े समझौतों पर बातचीत करने का एक मंच भी है। यहां व्यापार से जुड़े सभी तरह की
समस्याओं का निपटारा किया जाता है। WTO का नियम
कहता है कि विश्व व्यापार संगठन से जुड़े सदस्य देशों को अपने कृषि उत्पाद को दी
जाने वाली डोमेस्टिक हेल्प की मात्रा को सीमित करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि
ज्यादा सब्सिडी अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नुकसान पहुंचा सकती है। WTO के नियमों में ट्रेड बैरियर यानी व्यापार से संबंधित बाधाओं
को कम करने और सर्विस मार्केट को खोलने के लिए अलग-अलग देशों के कमिटमेंट भी शामिल
हैं।
कई देशों का कहना है कि भारत अगर किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी फिक्स करने
का फैसला करता है तो इससे वैश्विक कृषि कारोबार पर भी काफी असर पड़ेगा। विश्व
व्यापार संगठन (WTO) एक
वैश्विक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो यह अलग- अलग देशों के बीच व्यापार के
नियम तय करता है। भारत की बात की जाए तो यह देश न सिर्फ WTO के संस्थापक सदस्यों में शामिल है, बल्कि इस संगठन का सक्रिय भागीदार भी है। वर्तमान में विश्व
व्यापार संगठन में 164 सदस्य
हैं, जो 98 फीसदी विश्व व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं। फ्री ट्रेड
एग्रीमेंट को मुक्त व्यापार संधि भी कहा जाता है। इसके तहत दो देशों के बीच होने
वाले व्यापार को और आसान बना दिया जाता है।
इतना ही नहीं आयात या निर्यात होने
वाले उत्पादों पर सब्सिडी,सीमा
शुल्क,नियामक
कानून और कोटा को या तो बहुत कम कर दिया जाता है या फिर पूरी तरह से खत्म कर दिया
जाता है। ये सरकारों की व्यापार संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) की पॉलिसी के बिलकुल
उलट होता है।
MSP को मिनिमम सपोर्ट प्राइस कहते हैं। ये भारत सरकार की ओर से तय की गई किसानों
के फसल की कीमत होती है। इसे आसान भाषा में समझे तो जनता तक पहुंचाए जाने वाले
अनाज को सरकार किसानों से MSP पर खरीदती है। फिर इसे राशन व्यवस्था या अलग अलग योजनाओं के तहत जनता तक
पहुंचाया जाता है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार खाद, बीज, बिजली, सिंचाई और न्यूनतम
समर्थन मूल्य यानी MSP जैसे इनपुट पर कोई भी देश उत्पादन मूल्य के 5
से 10% तक ही सब्सिडी दे
सकता है। हालांकि इससे ज्यादा सब्सिडी देता है। पिछले कुछ सालों की ही बात की जाए
तो भारत ने साल 2019-20 में कुल चावल उत्पादन 46.07 बिलियन डॉलर का किया था। जिसमें से किसानों को 13.7%
यानी 6.31 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई थी, जो कि WTO की 10% की सीमा से ऊपर है। 10% से ज्यादा सब्सिडी देने के कारण भारत को WTO में कई देशों का विरोध भी झेलना पड़ता है।