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- आखिर MSP की बला है क्या जिस पर किसान और सरकार के बीच मचा है बवाल....?
Posted by : achhiduniya
22 February 2024
फसलों का उचित दाम दिए जाने के लिए केंद्र सरकार ने 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर
कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) का गठन
किया था। CACP ही MSP तय करता
है। देश में पहली बार 1966-67 में MSP की दर से फसलों की खरीदी की गई थी। सरकार ने किसानों को
पांचवीं बार बातचीत का ऑफर दिया है। ऑफर पर विचार करने के लिए किसानों ने अपना
दिल्ली मार्च अगले 2 दिनों के लिए टाल दिया है। MSP यानी
न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसानों
के हित के लिए सरकार ने ये व्यवस्था बनाई है। इसके तहत सरकार फसल की एक न्यूनतम
कीमत तय करती है।अगर बाजार में फसलों के दाम कम भी हो जाएं, तो किसान
आश्वस्त रहता है कि उसकी फसल सरकार कम से कम इस
कीमत में जरूर खरीद लेगी। आमतौर पर MSP किसान की
लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज्यादा होती है। हालांकि MSP सरकार की नीति है,कानून
नहीं। इसे सरकार घटा-बढ़ा सकती है। चाहे तो इसे बंद भी कर कर सकती है। किसानों को
यही डर सताता है। आंदोलन की वजह और गारंटी मांगने की वजह भी यही है। सरकार साल में
दो बार यानी एक बार ख़रीफ की फसल और एक बार रबी की फसल के दौरान MSP का ऐलान करती है।
ख़रीफ की फसल उन फसलों को कहते हैं,जिन्हें जून-जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर के आसपास काटते
हैं,जबकि रबी की फसल सर्दियों के मौसम में अक्टूबर से दिसंबर तक लगाई जाती है। रबी की फसलों में गेंहू, आलू, मटर, चना, अलसी, सरसो और जौ प्रमुख रूप से शामिल हैं। अभी तक सरकार 23 फसलों के लिए MSP का ऐलान
करती है। इनमें 7 अनाज हैं-
धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, जौ, रागी और
मक्का। 3 किस्म की
दालें हैं- अरहर/तूर, चना, मूंग, उड़द और
मसूर। 7 तिलहन
हैं- मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, तोरिया, तिल, सूरजमुखी
बीज, कुसुम बीज यानी सनफ्लावर सीड्स
और रामतिल बीज। इसके अलावा 4 अन्य
फसलों कच्चा कपास, कच्चा
जूट, नारियल और गन्ने के लिए भी
सरकार MSP तय करती
है। राज्य सरकार भी इसे लागू कर सकती है।
सरकार MSP वाली सभी 23 फसलों का
पूरा उत्पादन खरीद लेती है,तो
सरकारी खजाने पर इसका गहरा प्रभाव होगा। ये बहुत ही भारी खर्च होगा। हालांकि, कुछ रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि सभी फसलों पर MSP गारंटी देने पर सरकार पर 10 लाख करोड़ का भार आ जाएगा,लेकिन इन अनुमानों का कोई आधार नहीं
है।