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- एक ही महिला से दो पुरुषों की शादी जाने क्या है बहुपतित्व की पारंपरिक प्रथा का रहस्य....?
Posted by : achhiduniya
23 July 2025
हाल
ही में एक ऐसी शादी देश में चर्चा का विषय बनी जिसने नई बहस को जन्म दिया साथ ही सदियों
से चलती आ रही इस तरह की शादी की रस्म व रीति रिवाज से भी अवगत कराया आइए आपको बताते
है कुछ खास बातें दरअसल,हिमाचल प्रदेश के हट्टी जनजाति के दो भाइयों ने
सिरमौर जिले के शिलाई गांव में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में एक ही महिला से
शादी की। यह विवाह ट्रांस-गिरि क्षेत्र के कुछ हिस्सों में आज भी प्रचलित
बहुपतित्व (Polyandry) की पारंपरिक प्रथा के तहत किया गया। प्रदीप और कपिल
नेगी ने कहा कि सुनीता चौहान से विवाह का फैसला आपसी सहमति से और बिना किसी बाहरी
दबाव के लिया गया। प्रदीप ने कहा,हमने इस परंपरा का सार्वजनिक रूप से पालन किया, क्योंकि
हमें इस पर गर्व है, और यह एक संयुक्त निर्णय था। विदेश में काम करने वाले कपिल ने
कहा,हम
एक संयुक्त परिवार के रूप में अपनी पत्नी के लिए समर्थन, स्थिरता
और प्यार सुनिश्चित कर रहे हैं। हमने हमेशा ट्रांसपेरेंसी में भरोसा किया है। 12 जुलाई
को शुरू हुए तीन दिवसीय विवाह समारोह में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। विवाह के
दौरान स्थानीय लोकगीत और डांस परफोर्मेंस भी की गई। इस समारोह के वीडियो सोशल
मीडिया पर वायरल हो गए हैं। कुन्हाट गांव की रहने वाली सुनीता ने कहा कि वह इस
परंपरा से वाकिफ थीं और उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की। उन्होंने कहा कि वह अपने बीच
बने बंधन का सम्मान करती हैं।हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानून ऐसे विवाहों को जोड़ीदारा शब्द
के तहत मान्यता देते हैं।
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार इसी क्षेत्र
के बधाना गांव में पिछले छह साल में कम से कम पांच ऐसे बहुपति विवाहों की सूचना
मिली है। हट्टी समुदाय, जिसे 2022 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था, मुख्यतः
हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड सीमा पर रहता है। इस क्षेत्र में बहुपति प्रथा ऐतिहासिक
रूप से मौजूद रही है। हालांकि बढ़ती साक्षरता, सामाजिक बदलाव और आर्थिक विकास के कारण पिछले कुछ
वर्षों में इसकी व्यापकता में कमी आई है। पीटीआई के मुताबिक गांव के बुज़ुर्गों का
कहना है कि इस तरह की शादियां अब भी चुपचाप होती हैं और समुदाय के कुछ हिस्सों में
सामाजिक रूप से स्वीकार्य हैं। अनुमान है कि ट्रांस-गिरि क्षेत्र के लगभग 450 गांवों
में हट्टी समुदाय के तीन लाख सदस्य रहते हैं।
इसी तरह की परंपराएं कभी उत्तराखंड
के जौनसार बाबर और हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जैसे पड़ोसी आदिवासी इलाकों में भी
देखी जाती थीं। केंद्रीय हट्टी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने पीटीआई से
कहा कि यह प्रथा हजारों वर्षों में सुदूर पहाड़ी इलाकों की सामाजिक-आर्थिक
परिस्थितियों को देखते हुए विकसित हुई है। उन्होंने कहा कि बहुपति प्रथा संयुक्त
परिवारों में यहां तक कि सौतेले भाइयों के बीच भी एकता बनाए रखने में मदद करती है
और इसे सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के एक साधन के रूप में भी देखा जाता है।
शास्त्री ने कहाअगर आपका परिवार बड़ा है, ज़्यादा पुरुष हैं तो आप आदिवासी समाज में ज्यादा
सुरक्षित हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की व्यवस्थाएं दूर-दूर तक फैली कृषि
भूमि के प्रबंधन के लिए भी व्यावहारिक हैं, जिसके लिए परिवार के सदस्यों की दीर्घकालिक देखभाल और
श्रम की आवश्यकता होती है।