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राहुल गांधी आप संसद सदस्य (एमपी) बन जाते हैं और सभी को बदनाम करते हैं,लेकिन...सुप्रीम कोर्ट ने क्यू कही यह बात...?
Posted by : achhiduniya
04 August 2025
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की चीन द्वारा भारत की
जमीन पर कब्जा करने संबंधी बयान पर कड़ी टिप्पणी की और उनसे पूछा कि उन्हें संसद
में ये मुद्दे उठाने से किसने रोका है। कोर्ट ने पूछा,क्या
आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है? बिना किसी विश्वसनीय सामग्री के आप
ये बयान क्यों दे रहे हैं,अगर आप सच्चे भारतीय होते, तो ये सब बातें नहीं कहते। कांग्रेस
नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के
दौरान भारतीय सेना के बारे में कथित
अपमानजनक टिप्पणी को लेकर उनकी आलोचना करते हुए कहा कि यदि आप सच्चे भारतीय हैं तो
आप ऐसा कुछ नहीं कहते। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति
ए जी मसीह की पीठ ने की,वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ के समक्ष राहुल गांधी का
प्रतिनिधित्व किया। सुनवाई की शुरुआत में सिंघवी ने गांधी के बयान का हवाला देते
हुए कहा कि अगर वह ये सब नहीं कह सकते तो विपक्ष के नेता भी नहीं हो सकते। उन्होंने
पीठ से अपने मुवक्किल के बयान की जाँच करने का आग्रह किया।
न्यायमूर्ति दत्ता ने
कहा, डॉ.
सिंघवी, आपको
जो भी कहना है, कहिए,आप
संसद में क्यों नहीं कहते? आपको सोशल मीडिया पोस्ट में यह सब क्यों कहना है। सिंघवी
ने तर्क दिया, एक
तकनीक है, आप
संसद सदस्य (एमपी) बन जाते हैं और सभी को बदनाम करते हैं,लेकिन जनहित में एक
पार्टी के नेता, बस
देखें कि उन्होंने क्या कहा। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा,डॉ.सिंघवी, हमें
बताइए कि आपको कैसे पता चला कि 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीनियों ने कब्जा कर
लिया है। आपको कैसे पता चला कि आप वहाँ थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय
सामग्री है? बिना
किसी विश्वसनीय सामग्री के आप ये बयान क्यों दे रहे हैं।
न्यायमूर्ति दत्ता ने आगे
कहा,अगर
आप एक सच्चे भारतीय होते, तो आप ये सब बातें नहीं कहते। सिंघवी ने कहा कि यह भी संभव है कि एक सच्चा
भारतीय कहे कि हमारे 20 भारतीय सैनिकों को पीटा गया और मार दिया गया और
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह चिंता का विषय है। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा,जब
सीमा पार संघर्ष होता है,अगर आप खुलासा कर रहे हैं, आप विपक्ष के नेता (एलओपी) हैं। तो
आप (संसद में) सवाल क्यों नहीं पूछते, आप एलओपी हैं। यह क्या है, आप
कहे जा रहे हैं? आपके
पास अनुच्छेद 19(1)(ए)
का अधिकार (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) है, एक जिम्मेदार एलओपी होने के नाते, आप
ऐसा करते हैं। सिंघवी ने कहा कि मानहानि का मुकदमा दायर करके किसी व्यक्ति को
परेशान करने का यह कोई तरीका नहीं है और उन्होंने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के
प्रावधान 1 की
धारा 223 का
हवाला देते हुए कहा कि अब संज्ञान लेने से पहले प्राकृतिक न्याय की आवश्यकता होती
है। सिंघवी ने तर्क दिया, यह एक सर्वमान्य आधार है कि जब वर्तमान मामले में यानी 11 फरवरी 2025 को
संज्ञान लिया गया था, तब कोई प्राकृतिक न्याय नहीं था और न ही 223 (1) प्रावधान का कोई अनुपालन हुआ था।