- Back to Home »
- Religion / Social »
- एक कदम सिर्फ एक कदम....
Posted by : achhiduniya
16 December 2014
विवेक या बुद्धि का उपयोग ही नहीं......
मित्रो प्रणाम ........आपके सिर्फ 300 सेकंड
यानी सिर्फ पाँच मिंट चाहिए । आज जहा नजर जाती है ,किसी
भी गली – महुल्ले, सड़क,पेड़ के नीचे, चौराहे पर मानो देवी - देवताओ ,बाबा कि मजारों का जैसे बाजार सा लग रहा है ।क्या यह श्रद्धा है ....?या घर मे जगह की कमी ...?या सिर्फ धर्म-मजहब का सामाजिक
दिखावा....? क्या हमारी सोच यही तक सीमित है या धर्म-मज़हब के
नाम पर हम अन्धे बनते जा रहे है।
हम यहा किसी की भावनाओ को ठेस नही पहुचाना चाहते लेकिन
हम देखा –देखी मे अपनी समझ का जरा भी उपयोग नही करना चाहते ।आज समाज में अंधानुकरण
व अंधानुगमन की परम्परा चल पड़ी है। अधिकतर लोग ईश्वर, खुदा,गॉड,गुरु संबंधित तथ्यों पर आंख मूंद कर विश्वास करते
हैं। हम अपने विवेक या बुद्धि का उपयोग ही नहीं करते ।
विडम्बना है की आज समाज में
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मानव कहीं भी माथा टेकने से गुरेज नहीं करता इसी के
कारण वह ढोगी बाबाओ ,मौलविओ ,पंडितो ,गुरुओ के चक्कर मे घनचक्कर व बेवकूफ बनते जाता है। आपके साथ एक छोटी सी कहानी
सांझा करेंगे । किसी मजार पर एक फकीर रहते थे। सैंकड़ों भक्त उस मजार पर आकर दान-दक्षिणा
चढ़ाते थे। उन भक्तों में एक बंजारा भी था।
जिसका कपड़े का व्यवसाय था वह बहुत गरीब
था। फिर भी नियमानुसार आकर माथा टेकता फकीर
की सेवा करता और फिर अपने काम पर जाता । कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से
लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता। एक दिन उस फकीर को उस पर दया आ गई उसने अपना “गधा”
उसे भेंट कर दिया।
अब तो बनजारे की आधी समस्याएं हल हो गई। वह सारे कपड़े “गधे” पर
लादता और जब थक जाता तो खुद भी “गधे” पर बैठ जाता। यूं ही कुछ महीने बीत गए एक दिन
“गधे” की मृत्यु हो गई। बनजारा बहुत दुखी हुआ। उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया उसकी
कब्र बनाई और फूट-फूट कर रोने लगा।
समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने जब यह दृश्य देखा
तो सोचा जरूर किसी संत, सिध्ध बाबा की मजार होगी। तभी यह बंजारा
यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है। यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर माथा टेका और अपनी
मन्नत हेतू वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया। कुछ दिनों के उपरांत
ही उस व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई। उसने खुशी के मारे सारे गांव में डंका बजाया कि
अमुक स्थान पर एक पूर्ण फकीर की मजार है। वहां जाकर जो अरदास करो वह पूर्ण होती है।
मन चाही मुरादो की बकशीष ,आशीर्वाद मिल जाती हैं। उस दिन से उस कब्र पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो
गया। दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादे पूरी होने के लिय प्रार्थना करने और अपने गुनाह
बख्शाने वहां आने लगे। बनजारे की तो चांदी
हो गई, बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था। एक दिन वही फकीर
जिन्होंने बंजारे को अपना “गधा” भेंट स्वरूप दिया था वहां से गुजर रहे थे।
उन्हें देखते
ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला, आपके “गधे” ने तो मेरी
जिंदगी बना दी। जब तक जीवित था तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था और मरने के
बाद मेरी आजिवीका का साधन बन गया है। फकीर हंसते हुए बोले, बच्चा
! जिस मजार पर तू नित्य माथा टेकने आता था वह मजार इस “गधे” की मां की थी। दोस्तो यह
कहानी जरूर है, लेकिन इसमे बहुत बड़े राज की बात है वो ये कि आज
भौतिक विज्ञान के युग मे जहा चाँद ,मंगल तक को इंसान ने हिमालय
पर्वत की चोटी कि तरह फतह हासिल कर ली है,लेकिन इसके बाद भी क्या
...?इस प्रकार कि अन्धी सोच वाजिब है। इसका सीधा फायदा उन लोगो
को होता है जो इनकी दकिया नूसी बातो को सच मानकर उनकी बताई गई राहो पर बिना सोचे-समझे
चल पड़ते है।
इन छोटी बातों से ही बड़े धोखाबाजों का बाजार रोज बड़ते जा रहा है,जो आए दिन भोले –भाले लोगो को अपना शिकार बनाते है,जरूरत
है अपनी समझदारी से सतर्क रहने और लोगो मे जागरूकता लाने कि कोशिश करनी चाहिए। आपके
पड़े लिखे समझदार होने का फायदा आपके परिवार ,समाज,देश सभी को मिले इस पर विचार करके एक कदम सिर्फ एक कदम जरूर बड़ाए समाज ,देश को अच्छा बनाने के लिए उस चिड़िया कि तरह जो जंगल की ......आग...यह कहानी
आप हमारे मित्रो के नाम ह्रदय से प्यार भरा संदेश मे जरूर पड़े। आपके समय देने का शुक्रिया
दोस्तो........
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)