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- साढ़ेसाती से चिंतित क्यों.... ?
Posted by : achhiduniya
09 January 2015
क्योकि शनि ...... करने वालो को....
मित्रो प्रणाम .....लोग अक्सर ग्रहो दशा के
नाम से ही डरने लगते है,लेकिन ऐसा नही है। यह माना जाता
है की शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या बुरा प्रभाव करने वाला होता है इसमें क्लेश परेशानी
और अनिष्ट होते हैं परंतु ऐसा नहीं होता साढ़ेसाती साढ़े सात वर्ष की होती है। साढ़ेसाती
के पूरा का पूरा समय खराब नहीं होता।
हमारी अच्छी और बुरी सोच ही इसका प्रभाव दिखती है ।जब शनि जन्म राशि
से बारहवें स्थान में गोचर में भ्रमण करता है तब वह अपनी संपूर्ण तृतिया दृष्टि का
प्रभाव द्वितिय स्थान में भी लगता है। इसी तरह अपनी दृष्टि का प्रभाव वह भाग्य स्थान
में भी डालता है इसलिए उस समय वह धन का नाश और भाग्य का भी नाश करता है।शनि ग्रह जब
जन्म राशि से चतुर्थ व अष्टम स्थान से भ्रमण करना आरंभ करता है तब साढ़ेसाती और ढैय्या
की काल विधि ढाई वर्ष की होती है। जब शनि पंचम स्थान से भ्रमण करेगा तब उसकी दृष्टि
द्वितिय और एकादश स्थानों पर एवं सप्तम स्थान पर भी पड़ती है ,सप्तम स्थान व्यापार और दांपत्य का स्थान माना जाता है। इसलिए इन तीनों स्थानों
के फलित अनिष्ट प्राप्त होंगे, पैरों में दर्द व टांगों से संबंधित
परेशानियां व साढ़ेसती के समय जिसे साढ़ेसाती लग जाती है उस व्यक्ति के पैरों पर कष्ट
होता है अपमान होता है, द्वादश स्थान कुण्डली का अंतिम स्थान
है, पैरों का अधिपत्य द्वादश स्थान के पास होने से पैरों को कष्ट
पंहुचता है।
चतुर्थ एवं अष्टम स्थान का शनि धन स्थान पर दृष्टि डालता है। इस कारण धन
नाश, रोग व कर्ज और विदेश में रहना यही सब बातें होती हैं। बारहवें
शनि की दृष्टि धन भाव एवं छठें स्थान पर होने से कुटुम्ब में क्लेश, धन हानि, परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं, छठें स्थान पर होने से शत्रु पैदा हो जाते हैं परंतु वह टिक नहीं पाते,
बीमारी से भी छुटकारा मिल जाता है। भाग्य स्थान पर रही दृष्टि के कारण
शत्रु पैदा हो जाते हैं,परंतु वह टिक नहीं पाते, बीमारी से भी छुटकारा मिलता है, मन बेचैन रहता है,
कार्य में परेशानियां आती हैं।
आरंभ के 100 दिनों में अर्थिक घाटा क्लेश
आदि होता है आगे के 100 दिनों सब ठीक हो जाता है। हर काम में सफलता और विजय मिलती है
उत्साह बना रहता है आखिरी 20 दिनों में फिर से परेशानी बनी रहती है। जब गोचर शनि जन्म
राशी के द्वितीय स्थान में भ्रमण करता है तब साढ़ेसाती का अंतिम दौर शुरू होता है,
यह समय भी ढ़ाई वर्ष का होता है, इस समय के पहले
200 दिन कष्टदायक होते हैं।
व्यवसाय में नुकसान, गृह कलह यहां
तक की सारा जीवन उथल-पुथल हो जाता है। इसके आगे के 500 दिन में अच्छा होता है । सब
प्रकार की सुख समृद्धि व ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। फिर से 200 दिन दुख भरे होते हैं
बुराई और बदनामी होती है, चिंताएं बढ़ जाती हैं। इस प्रकार से
शनि की साढ़े साती का सुगमता एवं सरलता पूर्वक अध्ययन किया जा सकता है।
इससे घबराने
या डरने की जरूरत नही ,ऐसे समय मे चिंता नही प्रभु चिंतन व नेक
काम ,किसी की मदद –सहायता ,तकलीफ ज्यादा से ज्यादा दूर करने का प्रयास करनी चाहिए
क्योकि शनि भलाई करने वालो को कभी भी नुकसान नही पहुचते ।
पंडित मुरलीधर शर्मा
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